Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 596
________________ वेद तद्भवमोक्षो नास्ति भवान्तरे भवतु को दोष इति । प्रश्न- यदि खियोके पूर्वोक्त सब दोष होते है ( दे. आगेके शीर्षक ) तो सीता, रुक्मिणी, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा आदि सतियाँ जिनदीक्षा ग्रहण करके विशिष्ट तपश्चरण के द्वारा १६वे स्वर्ग में कैसे चली गयीं। उतर- इसमें कोई दोष नहीं है, इसलिए कि स्वर्ग से आकर बागे पुरुषवेदसे मोक्षको प्राप्त करेगी। खीको भबसे मोक्ष नहीं है, परन्तु भवान्तरसे मोक्ष हो जाने क्या दोष है। ३. तद्भव मुक्ति निषेधमें हेतु चंचलस्वभाव प्र. सा. प्रक्षेप गाथा/ २२२-२ से ६/२०२ पहडपनादमश्या एतासि वित्त भासया पमदा । तम्हा ताओ पमदा पमादबहुलोत्ति णिचिटठा || संत धुवं मदान मोहपदासा भयं नापि पिता माया तम्हा तासि ण णिव्वाणं ॥४॥ ण विणा वट्टदि णारो एक्कं वा तेसु जीवलोयम्हि । ण हि संउडं च गत्तं तम्हा तासि च संवरण |५| चित्तस्सावो तासि सित्थिन्लं अत्तवं च पक्खलणं । विज्जदि सहसा सामु ॥६॥ खिय प्रणादकी मुर्ति हैं। प्रमादकी बहुलतासे ही उन्हे प्रमदा कहा जाता है | ३| उन प्रमदाओको नित्य मोह, प्रद्वेष, भय, दुगंध आदिरूप परिणाम तथा चित्त चित्र-विचित्र माया बनी रहती है, इसलिए उन्हें मोक्षको प्राप्ति नहीं होती ॥४॥ खियाँ कभी भी दोष रहित नहीं होतीं इसलिए उनका शरीर सदा वस्त्रसे ढका रहता है |५| स्त्रियोंको चित्तकी चचलता व शिथिलता सदा बनी रहती है ६ ( यो सा - ४. तद्भव मुहि निषेधमें हेतु सचेलता सू. पा./मू./२२ लिंग इत्थी हनदि मुंज पि सुरयकाम्म अज्जिय वि एकवस्था वत्थावरणेण भंजेइ | २२| = स्त्रीका लिग ऐसा है- एक काल भोजन करे, एक वस्त्र घरे और भोजन करते समय भी बको न उतारे । हि जम्हा क्योकि प्र. सा. / / प्रक्षेपक / २२१-२/३०२ पिच्छदो इत्वीप सिद्धी दिशा तम्हा तप्पट व सिंगमरवी 12 खियोको निश्चयसे उसी जन्मसे सिद्धि नहीं कही गयी है, इसलिए स्त्रियोका लिग सावरण कहा गया है |२| ( यो सा /अ / ८ / ४४ ) दे, मो./४/५ सय लिगसे मुक्ति सम्भव नही) घ. १/१.१३/३३३ / ९ अस्मादेवा द्रव्यखीणां निवृत्ति सिद्धयेदिति चैत्र, समासादयाख्यानगुणस्थितानां संयमानुपपते। भाषसंयमस्तासां सबाससामप्यविरुद्ध इति चेत, न तासा भावसंयमोऽस्ति भावायमा विनाभाविवखाद्युपादानान्यथानुपपत्ते - प्रश्न- इसी आगमसे ( मनुष्य जियो में संयत गुणस्थानके प्रतिपादक सूत्र नं. १३ से) द्रव्य स्त्रियोका मुक्ति जाना भी सिद्ध हो जायेगा ? उत्तर- नही, क्योंकि, वस्त्रसहित होनेसे उनके संयतासंयत गुणस्थान होता है अतएव उनके संयमकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। प्रश्न-वस्त्र सहित होते हुए भी उन द्रव्य स्त्रियोके भावसंयमके होनेमें कोई विरोध नहीं आना चाहिए ? उत्तर-- उनके भावसयम नहीं है, क्योकि, अन्यथा अर्थात् भावसंयमके माननेपर, उनके भाव असंयमका अविनाभावी वस्त्र आदिका ग्रहण करना नही बन सकता है। ५८९ घ. १२/४.२,६,१२/१९४/११ चीणं णिश्वत्तमरिच, चेहादिपरिचाएण विणा तासिं भावणिग्गंथत्ताभावादो। ण च दव्वत्थिणवंसयवेदेण चेलादिचागो अस्थि, छेदसुत्तेण सह विरोहादो। द्रव्य खियोके निन्यता सम्भव नहीं है, क्योंकि, बखादि परित्यागके बिना उनके भावनिर्ग्रन्थताका अभाव है । द्रव्य स्त्रीवेदी व नपुसकवेदी वस्त्रादिका त्याग करके निर्ग्रन्थ लिंग धारण कर सकते है, ऐसी आशका भी ठीक नहीं है, क्योंकि पैसा स्वीकार करनेपर छेद के साथ विरोध होता है । Jain Education International ७. स्त्रीप्रव्रज्या व मुक्तिनिषेध ५. आर्यिकाको महाव्रती कैसे कहते हो प्रसा/ता वृ./ एक गाथा / २२१-८/३०४/२४ अयम-यदि मोक्षो नास्ति तहि भवदीयमते किमर्थमजिकाना महावतारोपणम् । परिहारमाह- दुपारण कुलय्यवस्थानिमित न पोपचार साक्षाद्भवितुमर्हति । क्तुि यदि तद्भवे मोक्षो भवति स्त्रीणा तर्हि शतवर्ष दीक्षिताया अर्जिकाया अदादिने दीक्षित साधुः कथं वन्द्यो भवति । सैव प्रथमत कि न वन्द्या भवति साधो । प्रश्न- यदि खौको मोक्ष नहीं होता तो आर्थिकाओको महामतीका आरोप किस लिए किया जाता है। उत्तर- साधुसंघकी व्यवस्थामात्र के लिए उपचारसे वे महाव्रत कहे जाते है और उपचार में साक्षात होनेकी सामर्थ्य नहीं है । किन्तु यदि तद्भवसे स्त्री मोक्ष गयी होती तो १०० वर्षकी दीक्षिता आर्थिक के द्वारा आजका नवदीक्षित साधु वन्द्य कैसे होता । वह आर्यिका हो पहिले उस साधुकी या क्यों न होती (मो पाटो / १२ / ३१३/१८); ( और भी दे. आहारक /४/३, वेद / ३/४ गो जी ) ६. फिर मनुष्यणीको १४ गुणस्थान कैसे कहे गये " ११.१.१२/०३३/४] कथं पुनस्तासु चतुर्दश गुणस्थानानीति चेन्न भावस्त्रीविशिष्टमनुष्यगतौ तत्सत्त्वाविरोधात | भाववेदो बादरक्षायान्नोपर्यस्तीति न तत्र चतुर्दशगुणस्थाना संभव इति चेन्न, अत्र वेदस्य प्राधान्याभावात् । गतिस्तु प्रधाना न साराद्विनश्यति । वेदविशेषणायां गतौ न तानि संभवन्तीति चेन्न, विनष्टेऽपि विशेषणे उपचारेण तयपदेशमादधानमनुष्यत तत्सत्त्वाविरोधात् प्रश्न- तो फिर 'स्त्रियों में चौदह गुणस्थान होते है यह कथन कैसे बन सकता है " उत्तर— नहीं, क्योंकि, भावसी में अत् सी बेदयुक्त मनुष्यगति में चौदह गुणस्थानो के सद्भाव मान लेनेमें कोई विरोध नहीं आता है। प्रश्न - बादर कषाय गुणस्थानके ऊपर भाववेद नहीं पाया जाता है, इसलिए भाववेद मे १४ गुणस्थानों का सद्भाव नही हो सकता है ? उत्तर - नहीं, क्योकि, यहाँपर वेदकी प्रधानता नहीं है, किन्तु गति प्रधान है, और वह पहिले नष्ट नही होती है प्रश्न यद्यपि मनुष्यगति १४ गुणस्थान सम्भव हैं, फिर भी उसे बेद विशेषण से युक्त कर देनेपर उसमें चौदह गुणस्थान सम्भव नहीं हो सकते उत्तर नहीं, क्योंकि, विशेषण के नष्ट हो जानेपर भी उपचार से उस विशेषण युक्त सज्ञाको धारण करनेवाली मनुष्य गतिमें चौदह गुणस्थानोका सहभाव गान लेने कोई विरोध नहीं आता है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only = ७. स्त्रीके वस्त्र लिंगमें हेतु प्र. सा./मू / प्रक्षेपक गाथा / २२५/५ - ६ ण विणा वट्टदि णारी एक्कं वा तेसु जीवलोयहि । ण हि सउडं च गतं तम्हा तासि च सवरणं ॥ ५॥ अत्तवच पक्खलणं । विज्जदि सहसा तासु अ उप्पादो सुहममणुआई हि हि यइणं वरे वाहिकखपदेसेस भणिदो हुनुपतासि कह जो होदि 101 सम्हा तं परूिवं निर्ग वासि जिणेहि णिदिट्ठ 181 =१ स्त्रियाँ कभी दोषके बिना नहीं रहतीं इसीलिए उनका शरीर नखसे ढका रहता है और विरक अवस्थामै वस्त्रसहित लिग धारण करनेका ही उपदेश है ।५३ (यो, सा / अ./८/ ४७) । २ प्रतिमास चित्तशुद्धि विनाशक रक्त स्रवण होता है । ६ । ( यो सा/अ/४) ( शुक्लध्यान /३/५) ३. शरीर में बहुत से सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती है। उनके कॉल, योनि और स्तन बहुत-से सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते रहते हैं. इसलिए) उनके पूर्ण सयम नही फल सकता | ७| ( सू. पा /मू./२४); (यो. सा/अ./८/४८०४१) (मो.पा./टी./१२/२१२/१२) ४ इसीलिए " जिनेन्द्र भगवान् स्रियो के लिए सारण जिगका निर्देश किया है। आदि www.jainelibrary.org

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