Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
व्यंतर
४. व्यंतर लोक निर्देश
६. मध्यलोकमें व्यंतर देवियोंका निवास
ति. प //
ति.प./४/
देवी
स्थान
भवनादि
स्थान
।
देवी
भवनादि
२०५६
२०६२
२०४ | गंगा नदीके निर्गमन स्थानकी दिक्कुमारिया | भवन | २०४३ सौमनस गजदन्त विमलकूट श्रीवत्समित्रा निवास समभूमि
२०५४ विद्य त्प्रभ गजदम्तका स्वस्तिक बला गंगा नदीमे स्थित कमलाकार | बला
..का कनककूट वारिषेणा जम्बूद्वीपकी जगतीमें गंगा नदी | दिक्कुमारी
गन्धमादन गजदन्तपर लोहितकूट भोगवती के बिलद्वारपर
.. , स्फटिक कूट भोगंकृति सिन्धु नदीके मध्य कमलाकार अवना या लवणा
माल्यवान् गजदन्तपर सागरकूट | भोगवती कूट
.. , रजतकूट भोगमालिनी हिमवान् के मूल में सिन्धुकूट सिन्धु
२१७३
| शाल्मलीवृक्ष स्थलकी चौथी वेणु युगलकी हिमवान् पर्वतके ११ मे से ६ कूट | कूटके नामवाली
भूमिके चार तोरण द्वार । देवियों १६७२ पद्म ह्रदके मध्य कमलपर
जम्बूवृक्ष स्थलकी भी चौथी आदर युगलकी १७२८ महा पद्म हृदके ,, ... ह्री
भूमिके चार तोरण द्वार देवियाँ १७६२ तिगिछ......
धृति
|ज.प.// देवकुरु व उत्तरकुरुके २० दहोके | सपरिवार नील- भवन १९७६ सुमेरु पर्वतके सौमनस वनकी मेध करा आदि ८ निवास| ३१-४३ । कमलोंपर ।
कुमारी आदि चारो दिशाओमे ८ कूट
ति. प./५/ रुचकवर पर्वतके ४४ कूट दिक्कन्याएँ | २०४३ | सौमनस गजदन्तका काचन कूट | सुबत्सा
१४४-१७२ .. द्वीप समुद्रोंके अधिपति देव (ति. प/५/३८-४६); (ह, पु./५/६३७-६४६); (त्रि. सा./६६१.६६५) संकेत-द्वो-द्वीप; सा=सागर, --जो नाम इस ओर लिखा है वही यहां भी है।
मलपर
श्री
'
-
ति प./४/३८-४६
ह पु/५/६३७-६४६
त्रि. सा./६६१-६६५
द्वीप या समुद्र
दक्षिण
उत्तर
दक्षिण
उत्तर
दक्षिण
उत्तर
आदर प्रभास प्रिय काल पद्म चक्षु
अनावृत सुस्थित
प्रियदर्शन
अनादर प्रियदर्शन दर्शन महाकाल पुण्डरोक सुचक्षु
पद्म
पुण्डरीक
जंबू द्वी० लवण सा धातकी कालोद पुष्करार्ध मानुष्ोत्तर पुष्कराध पुष्कर सा० वारुणीवर द्वी०
सा क्षीरवर द्वी०
, सा० धृतवर द्वी०
1x1
चक्षुष्मान
सुचक्षु
श्रीप्रभु
वरुण मध्य पाण्डुर विमल प्रभ सुप्रभ उत्तर कनक
विमल सुप्रभ कनक
सा०
क्नक
श्रीधर वरुणप्रभ मध्यम पुष्पदन्त विमल घृतवर महाप्रभ कनकाम पूर्णभद्र महागन्ध नदिप्रभु सुभद्र अरुणप्रभ सर्वगन्ध
कनकप्रभ पुण्यप्रभ
क्षौद्रवर द्वी०
सा०
गन्ध नन्दी
विमलप्रभ महाप्रभ कनकाभ पूर्ण प्रभ महागन्ध नन्दीप्रभ सुभद्र अरुणप्रभ सर्वगन्ध
नदीश्वर द्वी०
गन्ध
नन्दि
भद्र
अरुण
अरुणवर द्वी
सा०
सुगन्ध
चन्द्र अरुण सुगन्ध → कथन नष्ट है -
अरुणाभास द्वी अन्य
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639