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व्याघात
व्याघात
घ. ७/२.२.६७/१५१ / ८ अधवा काययोगद्वाखण मणजोगे आगदे नियम माघादिस्सर को चैव जगदो घ. ७/ २.२.१२१/९६०/१० कोस वायादेव एसओ गरि बाधादिदे वि कोधस्सेव समुप्पत्तीदो। = = अथवा काययोगके कालके क्षयसे मनोयोगको प्राप्त होकर द्वितीय समयमे व्याघात ( मरण ) को प्राप्त हुए उसको फिर भी काययोग ही प्राप्त हुआ । क्रोध व्याघात से एक समय नही पाया जाता, क्योंकि, व्याघात ( मरण ) को प्राप्त होनेपर भी न क्रोधकी ही उत्पत्ति होती है।
ल. सा. / भाषा / ६० / १२ / १ जहाँ स्थिति काण्डकघात होइ सो व्याघात कहिए।- (विशेष दे, अपकर्ष ४)
व्याघ्रभूति - एक अक्रियावादी - ३० अक्रियावाद ।
व्याघ्रहस्ती - पुन्नाट सघकी गुर्वावली के अनुसार आप पद्मसेनके शिष्य और नागहस्तिके गुरु थे। - दे. इतिहास / ०/८
व्याघ्री- -भरत क्षेत्र में आर्यखण्डकी एक नदी- दे, मनुष्य / ४ |
व्याज - Interest (ध. ५ / २८)
ध.
व्यापक - ४ / १.३.१/८/२ आगासं गगणं देवप गोगाचरि अवगाहन आधेयं वियापण माघारी भूमिति एयो ।
१. आकाश, गगन, देवपथ, गुलकाचरित (यक्षोंके विचरणका स्थान ), अवगाहनलक्षण, आधेय, व्यापक, आधार और भूमि ये सब नोआगम द्रव्य क्षेत्रके एकार्थवाचक नाम हैं-दे, क्षेत्र / १ / १३ । २ जोव शरीरमे व्यापक है पर सर्व व्यापक नहीं है-दे, जीव / ३ ।
व्यापकानुपलब्धि- अनुमानका एक भेददे अनुमान १
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व्यापार
रा. वा./१/१/१/३/२८ व्यावृतिपारा अर्थ प्रापणसमर्थ क्रियाप्रयोग | व्यावृतिपार इस व्युत्पनिके अनुसार अर्थ प्राप्त करनेकी समर्थ क्रिया प्रयोगको व्यापार कहते है ।
प्र. सा /ता, वृ / २०५/२७६/८ चिचमत्कारप्रतिपक्षभूत आरम्भो व्यापार' । = चिचमत्कार मात्र जो ज्ञाता द्रष्टाभाव उससे प्रतिपक्षभूत आरम्भका नाम व्यापार है। व्याप्ति
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-न्या, दो./३/३६४/१०४/२ व्याप्तिर्हि साध्ये वयादौ सत्येव साधन धूमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधन नियतसाहचर्यलक्षणां । एतामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिश्यन्ते साध्य अग्नि आदिके होनेपर हो साधन प्रमादिक होते है तथा उनके नहीं होनेपर नहीं होते, इस प्रकारके साहचर्यरूप साध्य साधनके नियमको व्याप्ति कहते है । इस व्याप्तिको ही साध्यके बिना साधन के न होनेसे अविनाभाव कहते है । - ( विशेष दे. तर्क ११)
रं व्यतिरेकव्याप्त अनुमान
२, अव्याप्त, अतिव्याप्त लक्षण | ३. अन्वयव्यतिरेक व्याप्त दृष्टान्त
४. अन्वय व्यतिरेक व्याप्त हेतु ।
पं. ध // ८६४ व्याप्तित्वं साहचर्यस्य नियमः स यथा मिथ' । सति यत्र य स्यादेव न स्यादेवासतीह यः १८६४ =परस्पर में सहचर नियमको कहते है इस प्रकार है कि वहॉपर जिसके होनेपर जो होवे और जिसके न होनेपर जो नहीं ही होवें । - ( विशेष दे. तर्क ) * अन्य सम्बन्धित विषय
५ व्याप्त व्यापक सम्बन्ध । ६. कारण कार्यमें परस्पर व्याप्ति ।
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- दे. अनुमान । - दे. लक्षण ।
व्युच्छित्ति
व्याप्य - १ व्याप्य व्यापक सम्बन्ध-दे सम्बन्ध । २. व्याप्य हेतु दे हेतु ३. व्याभास असिद्ध व्यामोह - मोपा // २०/२२२/१२ व्यामोह पुत्र मित्रादिस्नेह' । बामाना खीणा वा ओहो वामौह तत्तथोक्तं समाहारो द्वन्द्व । पुत्र कलत्र मित्रादिका स्नेह व्यामोह है । अथवा वाम अर्थात् खियाँका ओमान ओह है बाम ओह ऐसा यहाँपर समास है ।
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व्यावृत्ति -
न्या. वि. / वृ./२/३१/६३/७ व्यावृत्ति स्वलक्षणानां विच्छेद | लक्षणोंका विच्छेद व्यावृति है। स्या / मं /४/१७/१ व्यतिवृत्तिः सर्वथा व्यवच्छेद | रुपा/मं./१४/१६६० व्यावृति
व्यावृत्तिः,
सजातीयविजातीयैभ्य'
व्यावृति विशेष व अपना मे एकार्थ
विमतिपदार्थे इतर पदार्थ प्रतिषेधः ॥ -सजातीय और विजातीय पदार्थोंसे सर्वथा अलग होनेवाली प्रीतिको व्यावृति अथवा विशेष कहते है। अथमा विक्षित पदार्थ दूसरे पदार्थ के निषेधको व्यावृत्ति कहते हैं । /१/१/२ बाबी है।) व्यास -Diameter ( ध ५ / प्र. २८ ) । - दे, गणित / II / ७ / ४ | व्यास - १. पां. पु. / सर्ग / श्लोक -- भीष्मका सौतेला भाई था। धोवरकी कन्यासे उत्पन्न पाराशरका पुत्र था। ( ७/ ११४-११७) । इसके सीन पुत्र पृतराष्ट्र पाण्डव विदु (७/११०) अपर नाम धृतस्था ( ८/१०)। २. महाभारत आदि पुराणोके रचयिता। समय - अत्यन्त प्राचीन । ३ योगदर्शनके भाष्यकार । समय-ई. श./ ४ (दे० योगदर्शन) । ४. व्यास एलापुत्र एक विनयवादी था। - दे० वैनयिक |
- दे. दृष्टान्त । - दे हेतु । -दे सम्बन्ध |
-दे कारण / I / ३ ।
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- अपने
व्युच्छित्ति - घ /२/३.४/पृष्ठ / ति एदम्मि गुण ठाणे एदासि प
दीनं बोदो होलि गुगट्ठागाणि तासि पडी मंसामियाणि ति सिद्धीदो किच बोच्छेदो दुवो उत्पादाच्ये वादाच्छेदो उरपाद सत्य अनु विनाश' अभाव नीरूपिता इति यावत् । उत्पाद एवं अनुच्छेद' उत्पादानुच्छेद भाव एव अभाव इति यावत् । एसो व्यट्ठियणयव्यवहारो। ण च एसो एयतेण चप्पलओ, उत्तरकाले अप्पिदपज्जायस्स विणासँग विसिद्दव्यस्थ पुस्तिकाले वि उभा (२०) । अनुत्पादख अनुच्छेदो विनाश अनुत्पाद एवं अनुच्छेद
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( अनुत्पादानुच्छेद ) असत. अभाव इति यावत्, सत असत्त्वविरोधार। एसो पज्जपियवहारो एवं पूण उप्पावाणुच्छेदम स्सिप जैन सुतकारेण अमामव्यवहारो कदो रोग भागो चै
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यस विदो सेमेदस्स गंवस्त वसामित्तविचयसम्पा घडदित्ति । 1 पदिति (/) १ इस गुणस्थान में इतनी प्रकृतियोंका मन्वन्तर होता है, ऐसा कहनेपर उससे नीचेके गुणस्थान उन प्रकृतियोंके बन्धके स्वामी है यह स्वयमेव सिद्ध हो जाता है । २ दूसरी बात यह है कि व्युच्छेद दो प्रकारका है- उत्पाशनुच्छेद और अनुत्पादशमुछेर उत्पादका अर्थ सत्व और अनु च्छेदका अर्थ विनाश, अभाव अथवा नीरूपीपना है । उत्पाद ही अनुच्छेद सो उपादानुच्छेद (इस प्रकार यहाँ कर्मधारय समास है। उक्त कथनका अभिप्राय भाव या सत्त्वको ही अभाव बतलाना है । यह द्रव्यार्थिक नयके आश्रित व्यवहार है, और यह सर्वथा मिथ्या भी नहीं है. क्योकि, उत्तरकालमें विवक्षित पर्यायके विनाश से विशिष्ट द्रव्य पूर्वकाल में भी पाया जाता है । अनुत्पादका अर्थ असर और अनुच्छेदका अर्थ विनाश है। अनुत्पाद ही अनु
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