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वेदान्त
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१. वेदान्त सामान्य
१. वेदान्त सामान्य
१. सामान्य परिचय
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२ शंकर वेदान्त या ब्रह्माद्वैत
शंकर वेदान्तका तत्त्व विचार माया व सृष्टि इन्द्रिय व शरीर पंचीकृत विचार मोक्ष विचार प्रमाण विचार
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| भास्कर वेदान्त या द्वैताद्वैत सामान्य विचार तत्व विचार | मुक्ति विचार
स्या म/परि च/४३८ १. उत्तर मीमासा या ब्रह्ममीमासा ही वेदांत है। वेदो के अन्तिम भागमे उपदिष्ट होनेके कारण ही इसका नाम वेदान्त है। यह अद्वैतवादी है । २. इनके साधु ब्राह्मण ही होते है । वे चार प्रकार के होते है-कुटीचर, बहूदक, हस और परमहस । ३ इनमें से कुटीचर मठमे रहते है, त्रिदण्डी होते है, शिवा व ब्रह्मसूत्र रखते है। गृहत्यागी होते है । यजमानोंके अथवा क्दाचित अपने पुत्रके यहाँ भोजन करते है। ४ बहूदक भी कुटीचरके समान है, परन्तु ब्राह्मणो के घर नीरस भोजन लेते है। विष्णुका जाप करते है, तथा नदी में स्नान करते है। । हस साधु ब्रह्म सूत्र व शिरवा नहीं रखते। कषाय वस्त्र धारण करते है, दण्ड रखते है, गॉवमे एक रात
और नगरमें तीन रात रहते है। धुआ निकलना वन्द हा जाय तब ब्राह्मणो के घर भोजन करते है । तप करते है और देश विशेष में भ्रमण करते है। ६. आत्मज्ञानी हो जानेपर वही हस परमह स कहलाते है। ये चारो वर्गों के घर भोजन करते है। शकरके वेदान्तकी तुलना Bradley के सिद्धान्तोसे की जा सकती है। इसके अन्तर्गत समयसमयपर अनेक दार्शनिक धाराएँ उत्पन्न होती रही जोअद्वतकाप्रतिकार करती हुई भी किन्ही-किन्ही बातोमे दृष्टिभेदको प्राप्त रही। उनमेंसे कुछके नाम ये है-भतृ प्रपच वेदान्त (ई श ७), शकर वेदान्त या ब्रह्माद्वैत (ई. श८), भास्कर वेदान्त, रामानुज वेदान्त या विशिष्टाद्वैत (ई श ११), माध्ववेदान्त या द्वैतवाद (ई श.१२१३), बल्लभ वेदान्त या शुद्धाद्वैत (ई श १५), श्रीकण्ठ बेदान्त या अविभागद्वैत (ई श. १७)।
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रामानुज वेदान्त या विशिष्टाद्वैत सामान्य परिचय तत्त्व विचार ज्ञान व इन्द्रिय विचार सृष्टि व मोक्ष विचार प्रमाण विचार
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२. प्रवर्तक साहित्य व समय
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| निंबाकं वेदान्त या द्वैताद्वैतवाद सामान्य विचार तत्व विचार शरीर व इन्द्रिय
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| माध्व वेदान्त या द्वैतवाद सामान्य परिचय तत्त्व विचार द्रब्य विचार गुण कर्मादि शेष पदार्थ विचार सृष्टि व प्रलय विचार मोक्ष विचार कारण कार्य विचार शान व प्रमाण विचार
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स्या. म /परि च /४३८ १ वेदान्तका क्थन महाभारत व गीतादि प्राचीन ग्रन्थोमे मिलता है। तत्पश्चात औडलोमि, आश्मरथ्य, कासकृत्स्न, काष्णजिनि, बादरि, आय और जैमिनी वेदान्त दर्शन के प्रतिपालक हुए। २ वेदान्त साहित्यमे भादरायणका ब्रह्मसूत्र सर्व प्रधान है। जिसका समय ई० ४०० है। ३. तत्पश्चात बोधायन व उपवर्यने उनपर वृत्ति लिखी है। ४ द्रविडाचार्य टक व भतृ प्रपच (ई. श.७) भी टीकाकारोमें प्रसिद्ध है। ५ गौडपाद ( ई०७८०) उनके शिष्य गोविन्द और उनके शिष्य शक्राचार्य हुए। इनका समय ई० ८०० है । शकराचार्य ने ईशा, केन, कठ आदि १० उपनिषदोपर तथा भगवद्गीता व वेदान्त सूत्रोपर टोकाएँ लिखी है। ६ मण्डन और मण्डन मिश्र भी शकरके समकालीन थे। मण्डनने ब्रह्म सिद्धि आदि अनेक ग्रन्थ रचे । ७ शकरके शिष्य सुरेश्वर (ई०८२०) थे। इन्होंने नैष्कर्य सिद्धि, वृहदारण्यक उपनिषद भाष्य आदि ग्रन्थ लिखे। नैष्कर्म्य आदि के चित्सुख आदिने टीकाएँ लिखी। ८ पद्मपाद ( ई० ८२०) शकराचार्यके दूसरे शिष्य थे। इन्होने पचपद आदि ग्रन्थोकी रचना की। ६ वाचस्पति मिश्र (ई०८४०) ने शकर भाष्यपर भामती और ब्रह्मसिद्धिपर तत्त्व समीक्षा लिखी। १० सूरेश्वरके शिष्य सर्वज्ञात्म मुनि (ई०१००) थे, जिन्होने सक्षेप शारीरिक नामक ग्रन्थ लिखा। ११ इनके अतिरिक्त आनन्दबोध ( ई० श० ११-१२) का न्याय मरकन्द और न्याय दीपावली. श्री हर्ष (ई० ११५०) का खण्डन खण्ड खाद्य, चित्सुखाचार्य (ई०१२५०) की चित्सुखी, विद्यारण्य (ई. १३५०) को पंचशती और जीवन्मुक्तिविवेक , मधुसूदन सरस्वती ( ई० श०१६ की) अद्वैत सिद्धि, अप्पय दीक्षित ( ई० श० १७ ) का सिद्धान्त लेश और सदानन्दका बेदान्त सार महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।
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| शुद्धाद्वैत (शैव दर्शन) सामान्य परिचय तत्व विचार सृष्टि व मुक्ति विचार
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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