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४. अन्य द्वीप सागर निर्देश
लोक
४६३
भागका विस्तार कम व बाह्य भागका विस्तार अधिक है। (ति. प./ ४/२९५३); (स, सि./२/३३/२२७/4); (रा.वा./२/३३/८/१९६/४); (ह. पु./५/४६८): (त्रि. सा./१२७)। ६. तहाँ भी सर्व कथन पूर्व व पश्चिम दोनों धातकी खण्डोंमें जम्बूद्वीपबत है। विदेह क्षेत्रके बहु मध्य भागमें पृथक-पृथक् सुमेरु पर्वत हैं। उनका स्वरूप तथा उनपर स्थित जिन भवन आदिका सर्व कथन जम्बूद्वीपक्व है। (ति, प./४/२५७५-२५७६); (रा. वा./३/३३/६/१६५/२८); (ह पु./ १/४१४ (ज, प./४/६५)। इन दोनोंपर भी जम्बूद्वीपके सुमेरुवत पाण्डक आदि चार बन हैं। विशेषता यह है कि यहाँ भद्रशालसे ५०० योजन ऊपर नन्दन, उससे ११४०० योजन सौमनस बन और उससे २८००० योजन ऊपर पाण्डुक वन है। (ति, प./४/२५८४-२५८८); (रा.वा./३/३३/६/१६/३०):(ह../१/१८-५१३) (ज. प.११॥ २२-२८)पृथिवी तलपर विस्तार २४०० योजन है, ५०० योजन ऊपर जाकर नन्दन वनपर ६३५० योजन रहता है। तहाँ चारों तरफसे युगपत ५०० योजन मुकड़कर ८३५० योजन ऊपर तक समान विस्तारसे जाता है। तदनन्तर ४५००० योजन क्रमिक हानि सहित जाता हुआ सौमनस वनपर ३८०० योजन रहता है तहाँ चारों तरफसे युगपत् ५०० योजन सुकड़कर २८०० योजन रहता है, ऊपर फिर १०,००० योजन समान विस्तारसे जाता है तदनन्तर १८००० योजन क्रमिक हानि सहित जाता हुआ शीषपर १००० योजन विस्तृत रहता है।(ह.पु/५/५२०-५३०)। ७. जम्बूद्वीपके शामली वृक्षवद यहाँ दोनों कुरुओमें दो-दो करके कुल चार धातकी (आँवलेके ) वृक्ष स्थित है। प्रत्येक वृक्षका परिवार जम्बूद्वीपबत् १४०१२० है। चारो वृक्षोंका कुल परिवार ५६०४८०है। (विशेष दे० लोक/३/१३) इन वृक्षोपर इस द्वीपके रक्षक प्रभास व प्रियदर्शन नामक देव रहते है। (ति, प./४/२६०१-२६०३); (स.सि./३/३३/२२७/७), (रा. वा./ २/३३/१६६/३); (त्रि, सा/१३४)। ८ इस द्वीपमें पर्वतों आदिका प्रमाण निम्न प्रकार है।-मेरु २, इष्वाकार २, कुल गिरि १२; विजया ६८, नाभिगिरि ५, गजदन्त यमक ८, काँचन शैल ४००%; दिग्गजेन्द्र पर्वत १६ वक्षार पर्वत ३२: वृषभगिरि ६८ क्षेत्र या विजय ६८ (ज प्र./११/८१) कर्मभूमि भोगभूमि १२; (ज. प./११/७६ ) महानदियाँ २८; विदेह क्षेत्रको नदियाँ १२८: विभंगा नदियाँ २४ । द्रह ३२, महानदियों व क्षेत्र नदियोंके कुण्ड १५८% विभंगाके कुण्ड २४: धातकी वृक्ष २: शाल्मली वृक्ष २ हैं। (ज. प./११/ २६-३८)। (ज. प./११/७५-८१ ) में पुष्करार्धकी अपेक्षा इसी प्रकार कथन किया है।)
पर फिर
है। क्षेत्री, व क्षेत्र औरणा
मेरुओंका ति
दोनों
५/५/१२०-५३०, डा शोषपर इ तदनन्तर
४. पुष्कर द्वीप १. कालोद समुद्रको घेरकर १६००,००० के विस्तार युक्त पुष्कर द्वीप स्थित है। (ति.प/४/२७४४); (रा. वा./३/३३/६/१६६/८), (ह.पु./५७६), (ज.प/११/४७)। २. इसके बीचो-बीच स्थित कुण्डलाकार मानुषोत्तर पर्वतके कारण इस द्वीपके दो अर्ध भाग हो गये हैं, एक अभ्यन्तर और दूसरा बाह्य । (ति. प./४/२७४८); (रा. वा./३/३४/६/१६७/७), (ह. पु./५/५७७); (त्रि.सा./९३७); (ज.प./११/५८)। अभ्यन्तर भागमे मनुष्योंकी स्थिति है पर मानुषोत्तर पर्वतको उल्लंघकर बाह्य भागमें जानेकी उनकी सामर्थ्य नही है,(दे० मनुष्य/४/१) 1(दे० चित्र सं, ३६,पृ. ४६४) ।३.अभ्यन्तर पुष्करार्ध मे धातकी खण्डवत ही दो इष्वाकार पर्वत हैं जिनके कारण यह पूर्व व पश्चिमके दो भागोंमे विभक्त हो जाता है। दोनो भागोमें धातकी खण्डवत् रचना है। (त. सू./३/३४), (ति.प./४/२७८४-२७८५); (ह.पु./५/५७८) । धातकी खण्डके समान यहाँ ये सब कुलगिरि तो पहियेके अरोंवत समान विस्तारवाले और क्षेत्र उनके मध्य छिद्रोमें हीनाधिक विस्तारवाले है । दक्षिण इष्वाकारके दोनों तरफ दो भरत क्षेत्र और इष्वाकारके दोनों तरफ दो ऐरावत क्षेत्र है। क्षेत्रों, पर्वतो आदिके नाम जम्बूद्वीपवन है। (ति प/४/२७६४-२७४६ ), (ह. पु./५/५७६ )! ४. दोनों मेरुओंका वर्णन धातकी मेरुओंवत है। (ति. प./४/२८१२); (त्रि. सा/६०६), (ज १/४/६४) । '५. मानुषोत्तर पर्वतका अभ्यन्तर भाग दीवारकी भाँति सीधा है, और बाह्य भागमें नीचेसे ऊपर तक क्रमसे घटता गया है। भरतादि क्षेत्रोंकी १४ नदियोंके गुजरनेके लिए इसके मूलमे १४ गुफाएँ है। (ति. प./४/ २७५१-२७५२); (ह पु/५/५६५-५६६); (त्रि. सा./६३७)। ६ इस पर्वतके ऊपर २२ कुट हैं।-तहाँ पूर्वादि प्रत्येक दिशामे तीन-तीन कूट है। पूर्वी विदिशाओमे दो-दो और पश्चिमी विदिशाओमे एक-एक कूट है। इन कूटोकी अग्रभूमिमे अर्थात मनुष्यलोककी तरफ चारों दिशाओंमे ४ सिद्धायतन कूट है। (ति. प./४/२७६५-२७७०); (रा वा./३/३४/६/१९७/१२); (ह. पु./२/१६६६०१)। सिद्धायतन कूटपर जिनभवन है और शेषपर सपरिवार व्यन्तर देव रहते है। (ति प./४/२७७५) मतान्तरकी अपेक्षा नैऋत्य व वायव्य दिशावाले एक-एक कूट नही है। इस प्रकार कुल २० कूट हैं । ( ति. प./४/२७८३ ) (त्रि. सा /१४० )(दे०चित्र ३६पृष्ठ स. ४६४)।७.इसके ४ कुरुओंके मध्य जम्बू वृक्षवत सपरिवार ४ पुष्कर वृक्ष हैं। जिनपर सम्पूर्ण कथन जम्बूद्वीपकै जम्मू व शाल्मलो वृक्षवत हैं। ( स. सि./३/३४/२२८/४); (रा, वा./३/३४/५/१६७/४); (त्रि, सा./ ६३४)। ८. पुष्करार्ध द्वीपमे पर्वत क्षेत्रादिका प्रमाण बिलकुल धातकी खण्डवत् जानना (दे० लोक/४/२)। ५. नन्दीश्वर द्वीप १. अष्टम द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है। (दे० चित्र सं. ३८, पृ. ४६५)। उसका कुल विस्तार १६३८४००,००० योजन प्रमाण है। (ति प./५/५२-५३); (रा. वा./३/ ३५/१६८/४), (ह. पु! ५१६४७); (त्रि, सा /६६६)। २. इसके बहुमध्य भागमे पूर्व दिशाकी और काले रंगका एक-एक अंजनगिरि पर्वत है। (ति प./५/५७), (रा वा./३/-/१६८/७), (ह. पु./-/६५२); (त्रि. सा./१६७) । ३. उस अंजन गिरिके चारो तरफ १००,००० योजन छोडकर १ वापियाँ हैं । (ति, प/५/६०), (रा.बा./३/३५/-/१६८/8), (ह पु/५/६५५), (त्रि. सा./१७०)। चारो वापियोका भीतरी अन्तराल ६५०४५ योजन है और बाह्य अन्तर २२२६६१ योजन है (ह. पु/१६६६-६६८) । ४. प्रत्येक
३. कालोद समुद्र निर्देश १. धातकी खण्डको घेरकर ८००,००० योजन विस्तृत वलयाकार कालोद
समुद्र स्थित है। जो सर्वत्र १००० योजन गहरा है। (ति.प./४/ २७१८-२७१६); (रा बा./३/३३/६/१६६/५); (ह. पु/१५६२); ( ज प./११/४३)। २ इस समुद्र में पाताल नहीं है। (ति. प.// १७१६), (रा, वा/३/३२/८/१६४/१३); (ज.प./११/४४) । ३.इसके अभ्यन्तर व बाह्य भागमें लवणोदवत् दिशा, विदिशा, अन्तरदिशा व पर्वतोके प्रणिधि भागमें २४,२४ अन्तद्वीप स्थित है। (ति. प/४/ १७२०), (ह. पु/५/५६७-५७२+५७५); (त्रि सा./६१३), (ज. प. ११/४१) वे दिशा विदिशा आदि वाले द्वीप क्रमसे तटसे ५००,4k०, १५० व ६५० योजनके अन्तरसे स्थित है तथा २००, १००,५०, १० योजन है। (ति.प/४/२७२२-२७२५) मतान्तरसे इनका अन्तरात क्रमसे ५००, ५५०, ६०० व ६० है तथा विस्तार लवणोद वालोकी अपेक्षा दूना अर्थात २००, १००० व ५० योजन है। (ह. पु./५/५७४)।
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