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वनस्पति
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५. साधारण शरीरमे जीवोका उत्पत्ति क्रम
७. साधारण शरीरकी उत्कृष्ट अवगाहना गो, जी./जी, प्र/१८६/४२३/११ प्रतिष्ठितप्रत्येकवनस्पतिजीवशरीरस्य सर्वोत्कृष्टमवगाहनमपि घनाङगुलासख्येषभागमात्रमेवेति पूर्वोक्ताईकादिस्कन्धेषु एकैकस्मिस्तानि असख्यातानि असंख्यातानि सन्ति । - प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीरकी सर्वोत्कृष्ट अवगाहना धनांगुलके असंख्यात भाग मात्र ही है। क्योकि पूर्वोक्त आद्रकको आदि लेकर एक-एक स्कन्धमें असंरण्यात प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर (त्रैराशिक गणित विधानके द्वारा) पाये जाते है।
सर्वे मूलोन्मूख्वा गृहिवते ६३। स्कन्धपत्रपय' पर्वतुर्यसाधारणा यथा। गंडीरकस्तथा चार्कदुग्धं साधारण मतम् ।।४। पुष्पसाधारणा केचितकरीरसर्ष पादयः। पर्वसाधारणाश्चक्षुदण्डा साधारणाका १५॥ फलसाधारण रख्यातं प्रोक्तोदुम्बरपञ्चकम् । शाखा साधारणा ख्याता कुमारीपिण्डकादयः ।।६। कुम्पलानि स सर्वेषां मृदूनि च यथागमम् । सन्ति साधारणान्येव प्रोक्तकालावधेरध' 18७. शाका' साधारणा' केचित्केचित्प्रत्येकमूर्तयः । वन्य साधारणा' काश्चित्काश्चित्प्रत्येकका' स्फुटम् ।६८। तल्लक्षणं यथा भड्गे समभाग प्रजायते। तावत्साधारणं ज्ञेय शेषं प्रत्येकमेव तत् ११०६-१. किसी वृक्षको जड साधारण होती है, किसी का स्कन्ध साधारण होता है, किसीकी शाखाएँ साधारण होती हैं, किसीके पत्ते साधारण होते हैं, किसीके फूल साधारण होते है, किसीके पर्व (गाँठ ) का दूध, अथवा किसीके फल साधारण होते है ।११। इनमें से किसी किसी के तो मूल, पत्ते, स्कन्ध, फल, फूल आदि अलग-अलग साधारण होते है और किसीके मिले हुए पूर्ण रूपसे साधारण होते हैं ।१२। २. मूली, अदरक, आलू, अरबी, रताल, जमीकन्द, आदि सब मूल (जड़ें) साधारण है ।१३। गण्डीरक ( एक कडुआ जमीकन्द ) के स्कन्ध, पत्ते, दूध और पर्व में चारों ही अवयव साधारण होते है । दूधोंमें आकका दूध साधारण होता है ।१४। फूलोंमें करीरके व सरसोके फूल और भी ऐसे ही फूल साधारण होते है। तथा पर्यों में ईखकी गाँठ और उसका आगेका भाग साधारण होता है ।१५। पाँचो उदम्बर फल तथा शाखाओं में कुमारी पिण्ड (गॅवारपाठा जो कि शाखा रूप ही होता है) की सत्र शाखाएँ साधारण होती है ।१६। वृक्षोंपर लगी कोंपले सम साधारण है पीछे पकनेपर प्रत्येक हो जाती है ।१७। शाकों में 'चना, मेथी, बथुआ, पालक, कुलफी आदि ) कोई साधारण तथा कोई प्रत्येक, इसी प्रकार बेलोंमें कोई लताएँ साधारण तथा कोई प्रत्येक होती है ।१८।३. साधारण व प्रत्येकका लक्षण इस प्रकार लिखा है कि जिसके तोड़ने में दोनों भाग एकसे हो जाये जिस प्रकार चाकूसे दो टुकडे करनेपर दोनो भाग चिकने और एकसे हो जाते है उसी प्रकार हाथसे तोडनेपर भी जिसके दोनो भाग चिकने एकसे हो जाये वह साधारण वनस्पति है। जब तक उसके टुकडे इसी प्रकार होते रहते है तब तक साधारण समझना चाहिए। जिसके टुकडे चिकने
और एकसे न हो ऐसी बाकीको समस्त वनस्पतियोको प्रत्येक समझना चाहिए ।१०।
५. साधारण शरीरमें जीवोंका उत्पत्ति क्रम
१. निगोद शरीरमें जीवोंकी उत्पत्ति क्रमसे होती है ष खं. १४/५,६५८२-५८६/४६६ जो णिगोदो पढमदाए बक्कममाणो
अणंता बकमति जीवा । एयसमएण अणं ताण तसाहारणजीवेण घेतण एगसरीरं भवदि असखेजलोगमेत्तसरीराणि घेत्तूण एगो णिगोदो होदि ।५८२। विदियसमए अस खेज्ज गुणहीणा वक्कमति ।५८३। तदियसमए असखेज्जगुणहीणा बक्कमति ।५८४। एवं जाव अस खेज्जगुणहीणाए सेडीए णिरंतरं बक्कम ति जाब उक्कस्सेण अवलियाए असखेज्जदि भागो। ८५ तदो एको वा दो वा तिण्णि वा समए अंतर काऊण णिरंतर बकमंति जाव उकस्सेण आव लियाए असखेज्जदि
भागो ।५८६॥ घ.१४/५६.१२७/२३३/५ एवं सातरणिरं तरकमेण ताव उपपज्जति जाव उपपत्तीए संभवो अस्थि । -प्रथम समयमें जो निगोद उत्पन्न होता है उसके साथ अनन्त जोव उत्पन्न होते है। यहाँ एक समयमै अनन्तानन्त जीवीको ग्रहण कर एक शरीर होता है, तथा असरण्यात लोकप्रमाण शरीरोको ग्रहण कर एक निगोद होता है ।५८२। दूसरे समयमें असंख्यात गुणे हीन निगोद जीव उत्पन्न होते है ।५८३। तीसरे समय में असरण्यात गुणे हीन निगोद जीव उत्पन्न होते है ।५८४। इस प्रकार आवलिके असख्यातवे भाग प्रमाण कालतक निरन्तर असख्यातगुणे हीन श्रेणी रूपसे निगोद जीव उत्पन्न होते है।।८। उसके बाद एक, दो और तीन समयसे लेकर आवलिके असरख्यातने भाग प्रमाण कालका अन्तर करके आवलिके असंख्यातवे भागप्रमाणकालतक निरन्तर निगोद जीव उत्पन्न होते है ।५८६। इस प्रकार सान्तर निरन्तर क्रमसे तबतक जीव उत्पन्न होते है जबतक उत्पत्ति सम्भव है। (गो. जी/जी, प्र./१६३/४३२/५) । गो जी /जी.प्र./१६३/१३२/8 एब सान्तरनिरन्तरक्रमेण तायदुत्पद्यन्ते यावत्प्रथमसमयोत्पन्नसाधारणजीवस्य सर्वजघन्यो नित्यपर्याप्तकालोऽवशिष्यते । २० पुनरपि तत्प्रथमादिसमयोत्पन्नसर्वसाधारणजीवानां आहारशरीरेन्द्रियोच्छवासनि श्वासपर्याप्तीनां स्वस्वयोग्यकाले निष्पत्तिर्भवति । इस प्रकार सान्तर निरन्तर क्रमसे तबतक जीव उत्पन्न होते है जबतक प्रथम समयमें उत्पन्न हुआ साधारण जीवका जघन्य निर्वृत्ति अपर्याप्त अवस्थाका काल अवशेष रहे। फिर पीछे उन प्रथमादि समयमें उपजे सर्वसाधारण जीवके आहार, शरीर, इन्द्रिय श्वासोच्छवासको सम्पूर्णता अपने-अपने योग्य काल में होती है। २. निगोद शरीरमें जीवोंकी मृत्यु क्रम व अक्रम दोनों प्रकारसे होती है ष खं, १४/५.६/स.६३१।४८५ जो णिगोदो जहण्णएण वक्कमणकालेण
वक्कम तो जहण्णएण पबधणकालेण पबद्धो तेसि बादरणिगोदाण तथा पबद्धाण मरणक्कमेण णिग्गमो होदि ।६३१॥
गो.जी./जी, प्र/१८८/४२७/५ तच्छरीरं साधारणं-साधारणजोधाश्रितत्वेन साधारण मित्युपचर्यते। प्रतिष्ठितशरीरमित्यर्थ ।-(प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिमें पाये जानेवाले असंरख्यात शरीर ही साधारण है।) यहाँ प्रतिष्ठित प्रत्येक साधारण जीवोके द्वारा आश्रितकी अपेक्षा उपचार करके साधारण कहा है । (का.अ./टी /१२८)
६. एक साधारण शरीरमें अनन्त जीवोंका अवस्थान
प.ख. १४/५.६/सू. १२६,१२८/२३१-२३४ बादरसुहुमणिगोदा बदा पुट्ठा
य एयमेएण । ते हु अणंता जीवा मूलयथूहल्लयादीहि ।१२६। एगणिगोदसरीरे जीवा दवघ्पमाणदो दिट्ठा। सिद्धेहि अणतगुणा सम्वेण वि तीदकालेण ।१२८१-१ बादर निगोद जीव और सूक्ष्म निगोद जीव ये परस्परमे ( सब अवयवोसे ) बद्ध और स्पष्ट होकर रहते है। तथा चे अनन्त जीव हैं जो मूली, थूबर, और आर्द्रक आदिके निमित्तसे होते हैं ।१२६। २. एक निगोद शरीरमें द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा देखे गये जीव सब अतीत कालके द्वारा सिद्ध हुए जीवोसे भी अनन्तगुणे है ।१२८॥ (प. स./प्रा./१/८४ ) (ध,१/१,१,४१/गा. १४७/२७०) (ध,४/१,५,३१/गा.४३/४७८) (ध. १४/५.६,६३/६/१२) (ध, १४/ ५,६,६३/६८/९) (गो.जी./मू /१६६/४३७)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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