Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 520
________________ वर्गणा ५१३ १. भेद व लक्षण ४. वर्गणाके २३ भेद ध. १४/५,६,६७/गा. ७-८/११७ अणुसंखासखेज्जा तवणता वग्गणा अगेज्माओ । आहार-तेज-भासा-मण-कम्मइयधुमक्खधा 19। सातरणिर तरेदरमुग्णा पत्तेयदेह धुवसुण्णा। बादरणिगोदसुण्णा मुहुमा सुण्णा महारखधो ।८। अगुवर्गणा, सख्याताणुवर्गणा, असख्याताणुवर्गणा, अनन्ताणुवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, तेजस्वर्गणा, अग्रह्णवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्रहणवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, कार्मणशरीरवर्गणा, वस्कन्धवर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा, भ्र वशून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा, धवलन्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्णणा, ध्र वशून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, ध वशून्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा। ये तेईस वर्गणाएं है (ष. ख/१४/५,६। सूत्र ७६-६७/५४/११७ तथा सूत्र ७०८-७१८/५४२-५४३)1 (ध. १३/०१ ८२/३५९/११); (गो. जो./मू /५६४-५६५/१०३२) । सत्तमी धग्गणा। एदिस्मे पोग्ग नववधा तेजइयसरीरपाओग्ग।। (६०/१०)। भासादयवग्गणाए परमाणुपोग्गलवधा चदुण्णं भासाणं पाओग्गा। पटह-भेरी-काहलब्भगज्जणादिसहाण पि एसा चेव वग्गणा पाओग्गा । (६१/१०) एसा एकारसमी बग्गणा । एदीए बग्गणाए दव्बमणणिव्यत्तणं करिये। (६२/१४)। एसा तेरसमी वग्गणा । एदिस्स वग्गणाए पोग्गलस्वंधा अट्ठकम्मपाओग्गा। (६३/१४)।-औदारिक, वैक्रियक और आहारक शरीरके योग्य पुडगलस्कन्धोकी आहारद्रव्यवर्गणा सज्ञा है। (५६/१०)। यह सातवी वर्गणा है। इसके पुद्गलस्कन्ध तैजस्शरीरके योग्य होते है । ( ६०/१० ) । भाषावर्गणाके परमाणुपुर लस्कन्ध चार भाषाओके योग्य होते है। तथा ढोल, भेरी, नगारा और मेघका गर्जन आदि शब्दोके भी योग्य ये ही वर्गणाएँ होती है। (६१/१०)। यह ग्यारहवी वर्गणा है, इस वर्गणासे द्रव्यमनकी रचना होती है। (६२/१४) । यह तेरहवी वर्गणा है, इस वर्गणाके पुद्गलस्कन्ध आठ कमोंके योग्य होते है । ( ६३/१४)। ६. ग्राह्य अग्राह्य वर्गणाओंके लक्षण ष, ख १४/५,६/सूत्र/पृष्ठ अग्गहणदव्ववरगणा आहारदबमधिच्छिदा तेया दब्बवग्गण ण पावदि ताणं दवाणमंतरे अगहण दव्वग्गणा णाम । (७३३/५४८)। अगहणदव्यवग्गणा तेजादब्बमविच्छिदा भासादच ण पावे दि ताण दव्याणमंतरे अगहणदव्ववग्गणा णाम । (७४०/५४६) । अग्गहणद व्ववग्गणा भासा दव्यमधिच्छिदा मणदव्वं ण पावेदि ताणं दवाणमंतरे अगहणदव्बवग्गणा णाम । (७४७/५५१) । अगहण दव्यवग्गणा [ मण'] दबमविच्छिदा कम्मइयदब्वं ण पाव दि ताण दवाणमतरे अगहणदव्यवग्गणा णाम। (७५४/५५२)। -अग्रहणवर्गणा आहार द्रव्यसे प्रारम्भ होकर तैजसद्रव्यवर्गणाको नही प्राप्त होती है, अथवा तैजसूद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर भाषा द्रव्यको नहीं प्राप्त होती है, अथवा भाषा द्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर मनोद्रव्यको नहीं प्राप्त होती है, अथवा मनोद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर कार्मण द्रव्यको नही प्राप्त होती है। अत: उन दोनो द्रव्योके मध्यमें जो होती है उसकी अग्रहण द्रव्यवर्गणा संज्ञा है। ५. आहारक आदि पाँच वर्गणाओंके लक्षण ष. ख. १४/१,६/सूत्र/पृष्ठ ओरालिय-उब्बिय-आहारसरीराणं जाणि दवाणि घेत्तूण ओरालियवेउब्बिय-आहारसरीरत्ताए परिणामेदूर्ण परिणम ति जीवा ताणि दब्वाणि आहारदव्ववग्गणा णाम (७३०/ ५४६ ) जाणि दव्याणि घेतूण तेयासरीरत्ताए पारणामेदूण परिणम ति जोवा ताणि दव्याणि तेजादव्वबग्गणा णाम। (७६७/२४६)। सच्चभासाए मोसभासाए सच्चमोसमासाए असच्चमोसभासाए जाणि दव्याणि घेत्तूण सच्चभासत्ताए मोसभासत्ताए सच्चमोसभासत्ताए असञ्चमोसभासत्ताए परिणामेदूण णिस्सार ति जीवा ताणि भासादव्यवग्गणा णाम। (७४४/५५०)। सच्चमणस्स मोसमणस्स सच्चमोसमणस्स असच्चमोसमणस्स जाणि दव्वाणि घेतूण सच्चमणत्ताए मोसमणत्ताए सच्चमोसमणत्ताए असच्चमोसमणत्ताए परिणामेदूण परिणमति जोवा ताणि दव्वाणि मणदब्ववग्गणा णाम । (७५१/५५२)। णाणावरणीयस्स दसणावरणीयस्स वेयणीयस्स मोहणीयस्स आउअस्स णामस्स गोदस्स अन्तराइयस्स जाणि दब्बाणि घेत्तूण णाणावरणीयत्ताए दसणावरणीयत्ताए वेयणीयत्ताए मोहणीयत्ताए आउ अत्ताए णामत्ताए गोदत्ताए अंतराइयत्ताए परिणामेदूण परिणमंति जोबा ताणि दख्वाणि कम्मइयदठबवग्गणा णाम । (७५८/५५३)। -औदारिक, वैक्रियक और आहारक शरीरोके जिन द्रव्योको ग्रहणकर औदारिक, बै क्रियक और आहारक शरीररूपसे परिणमाकर जीव परिणमन करते है, उन द्रव्योकी आहारद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। (७३०/५४६)। जिन द्रव्योको ग्रहणकर तैजस् शरीररूपसे परिणमाकर जीव परिणमन करते है, उन द्रव्योको तैजस्द्रन्यवर्गणा सज्ञा है। (७३७/५४६)। सत्यभाषा, मोषभाषा, सत्यमोषभाषा, और असत्यमोषभाषाके जिन द्रव्योको ग्रहणकर सत्यभाषा, मोषभाषा, सत्यमोषभाषा और असत्यमोषभाषारूपसे परिण पार जीव उन्हे निकालते है उन द्रव्योकी भाषाद्रव्यवर्गणा सज्ञा है। (७४४/५५०) । सत्यमन, मोषमन, सत्यमोषमन और असत्यमोषमनके जिन द्रव्योंको ग्रहणकर सत्यमन, मोषमन, सत्यमोषमन और असत्यमोषमन रूपसे परिणमाकर जीव परिणमन करते है उन द्रव्योकी मनोद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। (७५१/५५२)। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तरायके जो द्रव्य है उन्हे ग्रहणकर ज्ञानावरणरूपसे, दर्शनावरणरूपसे, वेदनीयरूपसे, मोहनीयरूपसे, आयुरूपसे, नामरूपसे, गोत्ररूपसे और अन्तरायरूपसे परिणमावर जीव परिणमन करते है, अत: उन द्रव्योकी कार्मणद्रव्यवर्गणा संज्ञा है (७५८/५५३)। घ १४/५,६,७६-८७/पृष्ठ/पक्ति ओरालियवेउविषयआहारसरीर-पाओग्गपोग्गलक्खधाण आहारदव्य वग्गणा त्ति सण्णा। (५६/१०)। एसा ७. ध्रुव, ध्रुवशून्य व सान्तर निरन्तर वर्गणाओंके लक्षण ध.१४/५.६,७१६/५४३/१० पचण्ण सरीराण जा गेज्मा सा गहणपा ओग्गा णाम । जा पुण तासिमगेज्मा [सा 1 अगहण पाओग्गा णाम । = पाँच शरीरोके जो ग्रहणयोग्य है वह ग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । परन्तु जो उनके ग्रहण योग्य नहीं है वह अग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । (ध १४/५,६,८२/६१/३)। ष ख १४/५,६/सूत्र/पृष्ठ कम्मइयव्यवग्गणाणमुवरि धुवखंधदव्यवग्गणा णाम । (८८/६३) । धुवबंधदम्बवग्गणाणमुवरि सातरणिरं तरदव्ववग्गणा णाम । (८६/६४) सांतरणिरतरदब्बवग्गणाणमुवरि धुवसुण्णवग्गणा णाम । (१०/६५ ) -- कार्मण द्रव्यवर्गणाओके ऊपर धवस्कन्ध द्रव्यवर्गणा है। (८८/६३) । ध्र बस्कन्ध द्रव्यवर्गणाओके ऊपर सान्तनिरन्तर द्रव्यवर्गणा है। (८६/६४)। सान्तर निरन्तर द्रव्यबर्गणाओके ऊपर ध वशून्यवर्गणा है । (१०/६५) । ध, १४/५,६,८९-१०/पृष्ठ/पंक्ति धुवक्वधणिद्देसो अंतदीवओ। तेण हेछिम सम्बवग्गणाओ धुवाओ चेव अंतरविरहिदाओ त्ति घेत्तव्वं । एत्तोप्पहुडि उवरि भण्णमाणसव्ववग्गणासु अगहणभावो णिरंतर मणुवट्टावेदव्वो। (६४/१)। अतरेण सह णिरंतर गच्छदि त्ति सातरणिरतरदव्यवग्गणासण्णा एदिस्से अस्थाणुगया। (६४/१२)। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा० ३-६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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