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वर्गणा
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संख्याके भेद से अलग-अलग है, तो आहार द्रव्यवर्गणा एक ही है, ऐसा किस लिए कहते है उत्तर नहीं, क्योंकि, अग्रहण वर्गणाओंके द्वारा ? अन्तर के अभावकी अपेक्षा इन वर्गणाओके एक्का उपदेश दिया गया है । सख्याभेद असिद्ध नहीं है, क्योकि, आगे कहे जानेवाले अवसे ही उसकी सिद्धि होती है। भावार्थ- [ वास्तव में जातिको अपेक्षा यद्यपि तीनो शरीरीकी वर्गणाएँ भिन्न है. परन्तु एक प्रदेश वृद्धिक्रम अन्तर बिना इनकी उपलब्धि होनेके कारण इन तीनोको एक आहार वर्गणामें गर्भित कर दिया गया । अथवा यो कहिए कि जिस प्रकार अन्य सर्व वर्गणाओके बीच में अग्रहण वर्गणा या ध ुवशून्य वर्गणाका अन्तराल पडता है उस प्रकार इन तीनो में नही पडता, इस कारण इनमें एकत्व है । ]
३ आठों कर्मोंकी वर्गणाओं में कथंचित् भेदाभेद ।
घ. १४/५.६.७५/३/६ भागावरणीयस्स वाणि पाखोमाणि दव्याणि वाणि चैव मिच्छत्तादिष्यहि पंपणाणायरणोयस रु परिणमति ण अण्मेसि सरुवेग कुझे अप्पाजग्गत्तादो एवं ससि कम्मा व दि एवं तो कम्मरगाओ अर त्ति किरण परूविदाओ । ण अंतराभावेण तथोवदेसाभावादी । दाओ अडविणाओ कि पृध-पुत्र अच्छति आहो कर पाओ ति । पुध पुध ण अच्छति कितु कर बियाओ । कुदो एद णश्वदे | 'आउभागी थोवो णाण- गोदे समो तदो अहिओ' एदीए गाहाए णव्वदे। सेस जाणिदूग वत्तव्वं । = ज्ञानावरणीयके योग्य जो द्रव्य है वे ही मियाल आदि प्रत्ययोंके कारण पाँच ज्ञानावरणीय रूपसे परिणमन करते हैं, अन्य रूपसे वे परिणमन नहीं करते, क्योकि, वे अन्यके अयोग्य होते है । इसी प्रकार सब कर्मोंके विषय मे कहना चाहिए । प्रश्न- यदि ऐसा है तो कार्मणवर्गणाऍ आठ है, ऐसा कथन क्यो नहीं किया [ उसे एक कार्मण वर्गगाके नामसे क्यो कहा गया ] उत्तर - नहीं, क्योकि अन्तरका अभाव होनेसे उस प्रकारका उपदेश नही पाया जाता (विशेष देखो ऊपरवाला उपशीर्षक)। प्रश्न- ये आठ ही वर्गणाएँ क्या पृथक्-पृथक् रहती है या मिश्रित होकर रहती है ? उत्तर - पृथक् पृथक् नही रहती है, किन्तु मिश्रित होकर ही रहती है। प्रश्न -- यह किस प्रमाणसे जाता है। उत्तर- ( एक समय प्रबद्ध कार्मण द्रव्यमे ) आयु कर्मका भाग स्तोक है। नामकर्म ओर गोत्रकर्मका भाग उसमे अधिक है। इस गाथासे जाना जाता है । शेषका क्थन जानकर करना चाहिए।
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घ. १५/८/३१/१ ण च एयादो अर्णेयाण कम्माण बुत्पत्ती विरुद्वा कम्मइमवग्गणाए अण ताण तसग्याए अटुक्रम्मणओग्गभावेण अट्ठविहत्तमावण्णाए एयत्तविरोहादो। पत्थि एत्थ एकतो, एयादो षडादो अणेग्राण खप्पराणमुपपत्तिद सणादो। बुन च 'कम्म प होदि एय अणेयव्हि मेय बधसमकाले । मूलतरपयडोण परिणामत्रमेण जीवाण | १७| जोब परिणामाण भेदेण परिणामिज्जमानम्म्मइागगाण भेदेण च कम्माण बधसमकाले चे अणेयविहत होदित्ति घेतदेव एकसे अनेक कर्मोकी उत्पत्ति विरुद्ध है. ऐसा कहना भी अयुक्त है, क्योकि आठ कर्मोकी योग्यतानुसार आठ भेदको प्राप्त हुई अनन्तानन्त संख्यारूप कार्मण वर्गणाको एक माननेका विरोध है । दूसरे, एक्से अनेक कार्याकी उत्पत्ति नहीं होती ऐसा एवान्त भी नहीं है, क्योंकि, एक घटसे अनेक सम्परोकी उत्पत्ति देखी जाती है। कहा भी है- 'कर्म एक नहीं है, वह जोवोके परिणामानुसार मूल व उत्तर प्रकृतियों के बन्धके समान कालगे ही अनेक प्रकारका है | १७|' जीवपरिणामाके भेद से और परिणायी जानेवाली कार्मण वर्गपाली के भेदमे बन्ध के समकालने ही कर्म अनेक प्रकारका होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
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२. वर्मणा निर्देश
४. प्रत्येक शरीर णा अपने से पहले या पीछेत्राला उत्पन्न नहीं होती
घ. २४/२.६.११० / १२८/३ परमाणादि का जार उत्सवति साथ स्वासिनान गुमागमे पलेसरीरदग्गा समुपदि दो उत्सारति
रूष मोत्तम वाहियादिरूपेण परिणमसीए अभावादी । पत्तेयसरीर समागमेण विणा हेडिमत्रगणाण चेव समुदयसमागमेण समुप्पज्जमाणपत्तेयसरी रगणाशुकल भादो । किच जोगवसे एगपण ओशियामा अनंता विस्सा हि उपचिदा ते सांररितरादि
गाकर विसरिनमा होति, पतंनगणार अस खेभगाउदा भेषेण दिशा यसरी मरगणा उपादि बादर-मामौरासिया कम्मsaroud धेसु अधद्विदिगलणाए गलिदेसु पत्तेयसरी रवग्गणं' बोलेदूज हेड्डा सातरि तरा दिवस सरि
वल भादो । उवरिमवग्गणादो आगदपरमाणु-पोग्गले हि वेब पत्तेयसरीरवग्गणाणिप्पत्तीए अभावादो । उवरिल्लीण वग्गणाण भेदो नाम विणासो ण च मादरमणिगोदवनगाणं मम्मे याबा महा संतो पतेयसरीरमग्गगासरूपेण परिणमदि पतेयमगणार आणं त्रियम्पसंगादो । - १. परमाणु वर्गणासे लेकर सान्तर निरन्तर उत्कृष्ट वर्गणा तक इन (१५) वर्गणाओके समुदय समागम से प्रत्येक शरीर वर्मणा (१०वी वर्गणा) नही उत्पन्न होती है, क्योंकि उत्कृष्ट सान्तरनिरन्तर वर्ग माओका अपने स्वरूपको छोडकर एक अधिक आदि उपरि वर्गणारूपसे परिणमन करनेकी शक्तिका अभाव है।
प्रत्येकशरीर वर्ग के समागम बिना केवल नीकी (१ से १५ तकड़ी) वर्गगाओ के समुदय समागम से उत्पन्न होनेवाली प्रत्येक शरीरेवर्गणाऍ नहीं उपलब्ध होती। दूसरे योगके बशसे एक बन्धनबद्ध औदारिक तेजस और कार्मण परमाणुपुद्गलस्कन्ध अनन्तानन्त विसोपचयो उपचित होते है परन्तु वे सब सान्तर निरन्तर आदि नीकी वर्गणाओ में कही भी सहाधनवाले नहीं होते, क्योकि वे प्रत्येक वर्गणाके असख्यातवे भागप्रमाण होते है । २ ऊपर के द्रव्यो के भेदके बिना प्रत्येक शरीरवर्गणा उत्पन्न होती है, क्योंकि बादरनिगोदवर्गणा और सूक्ष्मनिगोदवर्गणा (१६वी व २१वी वर्गणाएँ ) के औदारिक, तेजस और कार्मणवर्गणास्कन्धौके अथ - स्थिति गहनाके द्वारा गठित होनेपर प्रत्येक शरीर वर्माको उ घन कर उनका नीचे सहाधनरूप सान्तर निरन्तर आदि वर्गणारूपसे अवस्थान उपलब्ध होता है । उपरिम वर्गणासे आये हुए परमाणुहुगली से ही प्रत्येक शरीर वर्गणी निष्पत्तिका अभाव है।
प्रश्न- ऊपर के अव्यों के भेवसे प्रत्येक शरीरद्रव्यात्पत्ति क्यो नही कहते 1 उत्तर- नहीं, क्योंकि, ऊपरकी वर्गणाओके भेदका नाम हो विमास है, और बादरविणा तथा मनिगोदवर्णपाने से एक वर्गणा नष्ट होती हुई प्रत्येक शरीर वर्णारूपसे नही परिणमतो क्योकि ऐसा हनेगर प्रत्येक दशरीर वर्मणाएँ अनन्त हो जायेगी।
८ ऊपर व नीचेको वर्गणाओं में परस्पर संक्रमणको
सम्भावना व समन्वय
हे वर्गना / २/३ | एक प्रदेशी वर्ग अपने वर्गभेद द्वारा उत्पन्न होती है और सम्प्रतप्रदेशीको आदि लेकर सान्तरनिरन्तर पर्यन्त सर्व वर्गणाऍ ऊपरवाली के मे. से नीचेवालीके सघातसे तथा स्वस्थानमे भेद व मधात दोनोते उत्पन्न होती है। इससे ऊपर धन्यसे महास्वन्ध पर्यन्त केवल स्वस्थानमें भेदसघात द्वारा हा उत्पन्न होती है । ]
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