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विभाव
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१. विभाव व वैभाविकी शक्ति दिर्देश
सते सबुकस्स विहत्तीण णत्थि भेदो त्ति णासकणिज्ज। ताण पि णयविसेसवसाणं कथंचि भेदुवल भादो। त जहा-समुदायपहाणा उकास विहत्ती। अवयवपहाणा सव्व विहत्ति । प्रश्न-उत्कृष्ट विभक्ति और उत्कृष्ट अद्भाच्छेदमें क्या भेद है । उत्तर- अन्तिम निषेक के काल को उत्कृष्ट अद्धाच्छेद कहते है और समस्त निषेकोके या समस्त निषकों के प्रदेशोके कालको उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति कहते है। इसलिए इन दोनोमें भेद है। ऐसी होते हुए सव विभक्ति [ सम्पूर्ण निषेकोका समूह ( दे. स्थिति/२)] और उत्कृष्ट विभक्ति इन दोनो में भेद नहीं है, ऐसी आशका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि नय विशेषकी अपेक्षा उन दोनोमे भी कथ चित् भेद पाया जाता है। वह इस प्रकार हैउत्कुष्ट विभक्ति समुदाय प्रधान होतो है और सर्व विभक्ति अवयव प्रधान होती है।
विमावका कथंचित् अहेतुकपना | जीव भावोंका निमित्त पाकर पुद्गल स्वयं कर्मरूप परिणमता है।
-दे. कारण/III/३| जीव रागादिरूपसे स्वय परिणमता है। शानियों के कर्मोंका उदय भी अकिंचित्कर है।
विभाव-कर्मोके उदयसे होने वाले जीवके रागादि विकारी भावोको विभाव कहते है। निमित्तकी अपेक्षा कथन करनेपर ये कर्मोके है और जीवकी अपेक्षा कथन करने पर ये जीवके है। संयोगी होनेके कारण वास्तवमे ये किसी एकके नहीं कहे जा सकते। शुद्वनयसे देखनेपर इनकी सत्ता ही नही है।
विभावके सहेतुक-अहेतुकपनेका समन्वय कर्म जीवका पराभव कैसे करता है ? रागादि भाव संयोगी होनेके कारण किसी एकके नहीं । कहे जा सकते । | शानी व अज्ञानीकी अपेक्षासे दोनों बातें ठोक है। दोनोंका नयार्थ व मतार्थ । दोनों बातोंका कारण व प्रयोजन । विभावका अभाव सम्भव है। -दे, रागा३।। | वस्तुत रागादि भावकी सत्ता नहीं है।
विभाव व वैमाविक शक्ति निर्देश विभावका लक्षण। स्वभाव व विभाव क्रिया तथा उनकी हेतुभूता वैभाविकी शक्ति। वैभाविकी शक्ति केवल जीव व पुद्गल में ही है।
-दे० गुण३/८ वह शक्ति नित्य है, पर स्वय स्वभाव या विभावरूप परिणत हो जाती है। स्वाभाविक व वैभाविक दो शक्तिया मानना योग्य नहीं। स्वभाव व विभाव शक्तियोका समन्वय । रागादिकमें कथंचित् स्वभाव-विभावपना
कषाय जीवका स्वभाव नहीं। -दे कषाय/२/३। कषाय चारित्र गुणकी विभाव पर्याय है। सयोगो होनेके कारण विभावको सत्ता ही नहीं है।
-दे, विभाव/५/६ । रागादि जीवके नही पुद्गलके है। -दे. मूर्त।।। रागादि जीवके अपने अपराध है। | विभाव भी कथचित् स्वभाव है। शुद्ध जीपमें विभाव कैसे हो जाता है ?
१. विभाव व वैभाविकी शक्ति निर्देश
१. विमावका लक्षण न. च. वृ./६५ सहजादो रूबंतरगहणं जो सो हु विभावो ।६५॥ -- सहज
अर्थात स्वभावसे रूपान्तरका ग्रहण करना विभाव है। आ प./६ स्वभावादन्यथाभवनं विभाव । -स्वभावसे अन्यथा परिण
मन करना विभाव है। पं घ./उ /१०५ तद्गुणाकारस क्रान्ति वा वैभाविकश्चित. 1 आत्माके गुणोका कर्मरूप पुद्गलोके गुणोके आकाररूप कथंचित संक्रमण होना वै भाविक भाव कहलाता है। २. स्वमाव व विमाव क्रिया तथा उनकी हेतुभूता वैमाविकी शक्ति प.ध./उ./श्लो अप्यस्त्यनादिसिदस्य सत स्वाभाविकी क्रिया वैभाविकी क्रिया चास्ति पारिणामिकशक्तित ।६१। न परं स्यात्परायत्ता सतो वैभाविकी क्रिया । यस्मात्सतोऽसती शक्ति कर्तुमन्यैर्न शक्यते ।६। ननु वैभाविकभावाख्या क्रिया चेत्पारिणामिकी। स्वाभाविक्या. क्रियायाश्च क शेषो हि विशेषभाक् ।६३। नैवं यतो विशेषोऽस्ति बद्धाबद्धावबोधयो. । मोहकमावृतो बद्ध' स्यादबद्धस्तदत्ययात् ।६६। ननु बद्धत्व कि नाम किमशुद्धत्वमर्थत. । वावदूकोऽथ सदिग्धो बोध्यः कश्चिदिति क्रमात् ।७१। अर्थाद्वैभाविकी शक्तिर्या सा चेदुपयोगिनी। तद्गुणाकारसक्रान्तिबन्ध स्यादन्यहेतुक: १७२। तत्र बन्धे न हेतु' स्याच्छक्तिर्वैभाविकी परम् । नोपयोगापि तरिक्तु परायत्त प्रयोजकम् ।७३। अस्ति वैभाविकी शक्तिस्तत्तद्रव्योपजोविनो। सा चेदबन्धस्य हेतु स्यादर्थामुक्तेरसंभव ७४। उपयोग स्यादभिव्यक्ति शक्ते स्वार्थाधिकारिणी। सैव बन्धस्य हेतुश्चेत्सर्वो बन्ध समस्यताम् ॥७॥ तस्माद्धेतुसामग्रीसांनिध्ये तद्गुणाकृति । स्वाकारस्य परायत्ता तया बद्धोपराधवान् ७६। -स्वत अनादिसिद्ध भी सतमें परिणमनशीलताके कारण स्वाभाविक व वैभाविक दो प्रकारकी क्रिया होती है ।६श वैभाविकी क्रिया केवल पराधीन नही होती, क्योकि, दुव्यकी अविद्यमान शक्ति दूसरों के द्वारा उत्पन्न नहीं करायी जा सकती।६२। प्रश्न-यदि वैभाषिकी क्रिया भी सत् की
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विमावका कथंचित् सहेतुकपना * जीत्र व कर्मका निमित्त-नैमित्तिकपना ।
-दे कारण III/३/३। १ । जीवके कपाय आदि भाव सहेतुक है। २ जावकी अन्य पर्याय भी कर्मकृत है। ३ । पौद्गलिक विभाव सहेतुक है।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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