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विवेचन
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विशुद्ध
होना भावत' इन्द्रियविवेक है । द्रव्यत कषाय विवेकके शरीरसे और वचनसे दो भेद है। भौहे सकुचित करना इत्यादि शरीरकी प्रवृत्ति न होमा कायक्रोध विवेक है। मै मारूंगा इत्यादि वचनका प्रयोग न करना वचन क्रोध विवेक है। दूसरोका पराभव करना, वगैरहके द्वेषपूर्वक विचार मनमें न लाना यह भावक्रोधविवेक है। इसी प्रकार द्रव्य, मान, माया व लोभ कषाय विवेक भी शरीर और वचनके व भावके भेदसे तीन तीन प्रकारके है। तहाँ शरीरके अवयवोको न अकडाना, मेरेसे अधिक शास्त्र प्रवीण कौन है ऐसे वचनोका प्रयोग न करना ये काय व वचनगत मानविवेक है। मनके द्वारा अभिमानको छोडना भाव मानकषाय विवेक है। मानो अन्यके विषयमें बोल रहा है ऐसा दिखाना, ऐसे बचनका त्याग करना अथवा कपटका उपदेश न करना वाचा मायाविवेक है। शरीरसे एक कार्य करता हुआ भी मै अन्य ही कर रहा हूँ ऐसा दिखानेका त्याग करना काय माया विवेक है। जिस पदार्थ में लोभ है उसकी तरफ अपना हाथ पसारना इत्यादिक शरीर क्रिया न करना काय लोभ विवेक है। इस वस्तु ग्राम आदिका मै स्वामी हूँ ऐसे वचन उच्चारण न करना वाचा लोभ विवेक है । ममेदं भावरूप मोहज परिणतिको न होने देना भाव लोभ विवेक है ।१६८। अपने शरीरसे अपने शरीरके उपद्रवको दूर न करना काय शरीर विवेक है। शरीरको तुम पीडा मत करो अथवा मेरा रक्षण करो इस प्रकारके वचनोका न कहना वाचा शरीर विवेक है। जिस वसतिकामें पूर्व कालमें निवास किया था उसमें निवास न करना और इसो प्रकार पहिले वाले सस्तरमें न सोना बैठना काय वसतिसस्तर विवेक है। मै इस बसति व सस्तरका त्याग करता हूँ। ऐसे वचनका बोलना बाचा वसतिसंस्तर विवेक है। शरीरके द्वारा उपकरणोको ग्रहण न करना काय उपकरण विवेक है । मैं ने इन ज्ञानोपकरणादिका त्याग किया है ऐसा वचन बोलना वाचा उपकरण विवेक है। आहार पानके पदार्थ भक्षण न करना काय भक्तपान विवेक है। इस तरहका भोजन पान मै ग्रहण नहीं करू गा ऐसा वचन बोलना वचाभक्तपान विवेक है। वैयावृत्त्य करनेवाले अपने शिष्यादिकोका सहवास न करना काय वयावृत्त्य विवेक है। तुम मेरी वैयावृत्त्य मत करो ऐसे वचन बोलना वाचा वैयावृत्य विवेक है। सर्वत्र शरीरादिक पदार्थोंपरसे प्रेमका त्याग करना अथवा ये मेरे है ऐसा भाव छोड़ देना भावविवेक है।
१. विवेक तपके अतिचार भ आ./वि./४८७/७०७/२२ भावतोऽविवेको विवेकातिचार' । परिणामोके द्वारा विवेकका न होना विवेकका अतिचार है। * विवेक प्रायश्चित्त किस अपराधमें दिया जाता है
-दे, प्रायश्चित्त/४। विवेचन-१. वस्तु विवेचन विधि-दे, न्याय। २. आगम व
अध्यात्म पद्धति-दे. पद्धति । विशदसि. वि./म्./९/६/३८ पश्यन् स्वलक्षणान्येकं स्थूलमक्षणिक स्फुटम् यव्यवस्यति वैशद्य' तद्विद्धि सदृशस्मृते ।।।- परस्परमें विलक्षण निर श क्षणरूप स्वलक्षणोको देखनेवाला स्थूल और अक्षणिक एक वस्तुको स्पष्ट रूपसे निश्चित करता है। अत वेशद्य व्यवसायात्मक
स विकल्पकप्रत्यक्षसे सम्बद्ध है। प. मु/२/१ प्रतीत्यन्तराव्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासन वैशद्य ।
-जो प्रतिभास बिना किसी दूसरे ज्ञानकी सहायताके स्वतन्त्र हो, तथा हरा पीला आदि विशेष वर्ण और सीधा टेढा आदि विशेष
आकार लिये हो, उसे वैशद्य कहते है। न्या, दी./२/२/२४ किमिदं विशदप्रतिभासत्वं नाम । उच्यते; ज्ञाना-
वरणस्य क्षयाद्विशिष्टक्षयोपशमाद्वा शब्दानुमानाद्यसभवि यन्नैर्मल्यमनुभवसिद्धम् दृश्यते खव्यग्निरस्तीत्याप्तवचनामादि लिङ्काच्चोत्पन्नाज्ज्ञानादयमग्निरित्युत्पन्नस्यन्द्रियस्य ज्ञानस्य विशेषः । स एव नैर्मल्य, वैशद्यम्, स्पष्टत्वमित्यादिभि शब्दैरभिधीयते । - प्रश्नविशद प्रतिभास क्सिको कहते है 1 उत्तर-ज्ञानावरण कर्मके सर्वथा क्षयसे अथवा विशेष क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली और शब्द तथा अनुमानादि ( परोक्ष ) प्रमाणोसे नही हो सकनेवाली जो अनुभवसिद्ध निर्मलता है वही विशद-प्रतिभास है। किसी प्रामाणिक पुरुषके अग्नि है' इस प्रकारके बचनसे और 'यह प्रदेश अग्निवाला है, क्योकि, धुआँ है। इस प्रकारके धूमादि लिगसे उत्पन्न हुए ज्ञानकी अपेक्षा 'यह अग्नि है। इस प्रकारके इन्द्रियज्ञानमें विशेषता देखी जाती है। वही विशेषता निर्मलता, विशदता, और स्पष्टता इत्यादि शब्दों द्वारा कही
जाती है। विशल्या-प.प्र/६४/श्लो नं.राजा द्रोणमेधकी पुत्री थी।६। पूर्व
भवके कठिन तपके प्रभावसे उसके स्नान जलमें सर्वरोग शान्त करनेकी शक्ति थी। रावणको शक्तिके प्रहारसे मूच्छित लक्ष्मणको इसौने जीवन दिया था।३७-३८। इसका विवाह भी लक्ष्मणसे हुआ था। विशल्याकारिणी-एक विद्या-दे विद्या। विशाखनंदि-म पू./१७/श्लो नं -राजगृहीके राजा विश्वभूतिके छोटे भाई विशाखभूतिका पुत्र था ७ि३। विश्वभूतिके पुत्र विश्वनन्दि का वन छीन लेनेपर युद्ध हुआ, जिसमें यह भाग गया ।७५-७७॥ देशाटन करता हुआ मथुरामें रहने लगा। वेश्याके घर बैठे विश्वनन्दीकी गाय द्वारा गिरा दिया जानेपर हँसी उडायो ।०-८१ चिर
काल पर्यंत अनेक योनियो मे भ्रमण किया।८७। विशाखभूति-म Y /१७/श्लो.-राजगृह नगरके राजा विश्वभूति
का छोटा भाई था ।७३। पिताके दीक्षा लेनेके अनन्तर इसने भी अपने ताऊके पुत्र विश्वनन्दीके साथ दीक्षा ले ली।७८। महा शुक्र स्वर्गमे देव उत्पन्न हुआ।८२॥ विशाखा-एक नक्षत्र-दे नक्षत्र । विशाखाचार्य-भूतावतारके अनुसार आप भद्रबाहु प्रथमके पश्चात् प्रथम ११ अग व १० पूर्वधारी थे। [ द्वादश वर्षीय दुर्भिक्षके अवसरपर आप भद्रबाहु स्वामीके साथ दक्षिणकी ओर चले गये थे। भद्रबाहु स्वामीकी तो वहाँ ही समाधि हो गयी पर आप दुर्भिक्ष समाप्त होनेपर पुन उज्जैन लौट आये (भद्रबाहु चरित ३)] समय-वी,
नि, १६२-१७२ ( ई. पू. ३६५-३५५ )।-दे० इतिहास/४/४। विशाला-भरत क्षेत्र आर्य खण्डकी एक नदो-दे० मनुष्य/४। विशालाक्ष-कुण्डल पर्वतके स्फटिकप्रभ कूटका स्वामी नागेन्द्रदेव
-दे० लोक/७१ विशिष्ट-१ ध. १०/४,२,४,३/२३/६ सि विसिट्ठा, कयाई
वयादो अहियाय दसणादो।-(ज्ञानावरणीय द्रव्य ) स्यात् विशिष्ट है, क्योकि कदाचित् व्ययकी अपेक्षा अधिक आय देखी जाती है। * नोओम नोविशिष्ट-दे ओम । २. सौमनस पर्वतका एक कूट व उसका रक्षक देव-दे० लोक/५/४ । विशिष्टाद्वैत-दे. वेदान्त/४ विशुद्धस सि /२/४8/१६८/४ विशुद्धकार्यवाद्विशुद्धव्यपदेश । विशुद्धस्य पुण्यकर्मण अशबलस्य निरवद्यस्य कार्यवाद्विशुमित्युच्यते तन्तूना कासव्यपदेशवत् ।-विशुद्धर्मका कार्य होनेसे आहारक शरीरको
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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