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लोक
४७८
६. द्वीप क्षेत्र पर्वत आदिका विस्तार
प्रमाण
वर्ण
ह.पु./५/- | त्रि. सा./- ज. प./श्लो. सं. गा. सं. | अधि /गा
उपमा
वर्ण
नाम
ति. प/४/-
गा. स. सौमनसवन ( वेदी) १९३८ पाण्डकवन वेदी जम्बूवृक्ष वेदी जम्बूवृक्षकी १२ वेदियाँ । २१५१
सुवर्ण
पद्मवर (रा. वा.)
रावा/३/सूत्र/-
वा.//पंक्ति १०/१३/१८०/२ १०/१३/१८०/१२ ७/१/१६६/१८ ७/१/१६६/२० तथा १०/१३/१७४/१७
(जाम्बूनद सुवर्ण), रक्ततायुक्त पीत सुवर्ण
पद्मवर
सुवर्ण
पीत
३/१६९
श्वेत
हिम कंदपुष्प मृणाल शख रजत
हरित
श्वेत धवल पीत
।
२४६१
सुवर्ण
सर्व वेदियों नदियोंका जलगगा-सिन्धु रोहित-रोहितास्या हरित-रिकान्ता सीता-सीतोदा लवणसागरके पर्वत- पूर्व दिशा वाले दक्षिण दिशा वाले पश्चिम दिशा वाले उत्तर दिशा वाले इष्वाकार मानुषोत्तर अंजन गिरि दधिमुख रतिकर कुण्डलगिरि रुचकवर पर्वत
अकरत्न
१०/३० १०/३१ १०/३२ १०/३३
रजत
श्वेत
भील
सुवर्ण
पीत
५६५
इन्द्रनीलमणि
६६६
दही
काला
सफेद रक्ततायुक्त पीत
सुवर्ण
३/३५/-/१६६/२२
६. द्वीप क्षेत्र पर्वत आदिका विस्तार
१. द्वीप सागरोंका सामान्य विस्तार १. जम्बूद्वीपका विस्तार १००,००० योजन है। तत्पश्चात सभी समुद्र व द्वीप उत्तरोत्तर दुगुने दुगुने विस्तारयुक्त है। (त.सू./३/८); (ति.प./५/३२) २. कवणसागर व उसके पातालादि १. सागर
स्थल विशेष
विस्तारादि में क्या प्रमाण यो,
(ह. पु.//४३४),
दृष्टि सं.१-(ति. प/४/२४००-२४०७); (रा. वा/३/३२/३/१६३/८),
(त्रि. सा./६१५); (ज. प./१०/२२)। पृथिवीतल पर किनारोसे १५००० योजन भीतर जानेपर तल मे " "
" आकाशमें
विस्तार
२००,००० १०,००० १०,००० १००० ७००
गहराई
११०००
आकाशमे दृष्टि स. २
लोग्गायणीके अनुसार उपरोक्त प्रकार आकाशमें अवस्थित
(ति. प./४/२४४५), (ह. पु./१/४३४)। दृष्टि सं.३
सग्गायणीके अनुसार उपरोक्त प्रकार आकाशमें अब स्थित (ति, प./४/२४४८)। तीनो दृष्टियोसे उपरोक्त प्रकार आकाशमे मूर्णिमाके दिन
१००००
दे० लोक/४/१
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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