Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 511
________________ वनस्पति ५०४ २. निगोद निर्देश वि सुत्ता णि सुत्तासायणभोरुहि आइरिएहि वक्खाणेयव्वाणि त्ति। - सूक्ष्म बनस्पतिकायिक व सूक्ष्म निगोद जोन पर्याप्त सर्व जोवोके कितनेवे भाग प्रमाण है ।।३१। उपर्युक्त जोव सर्व जोवोके सख्यात बहुभाग-प्रमाण है।३२ ... सूक्ष्म वनस्पतिकायिकको कहकर पुन सूक्ष्म निगोद जोवोको भी पृथक् कहते है, इससे जाना जाता है कि सब सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही सूक्ष्म निगोद जोब नहीं होते। प्रश्न यदि ऐसा है तो सर्व सूक्ष्म बनस्पतिकायिक निगोद ही है' इस वचनके साथ विरोध होगा, उत्तर-उक्त बचनके साथ विरोध नहीं होगा, क्योकि, सूक्ष्म निगोद जोव सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही है, ऐसा यहाँ अवधारण नही है। प्रश्न-यह कैसे जाना जाता है ? उत्तर-(बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्तोसे निगोद प्रतिष्ठित बादर निगोदजीव अपर्याप्त असंख्यातगुणे है। यहॉपर) निगोद प्रतिष्ठित जोबोके बाद 'निगोद जोव' इस प्रकारके निर्देशसे, तथा ('वनस्पतिकायिकोसे निगोद जोब विशेष अधिक है' इस सूत्रमें) बादर वनस्पतिकायिकोके आगे 'निगोद जोब विशेष अधिक है' इस प्रकार कहे गये सूत्रबचनसे भी जाना जाता है। प्रश्न-यहाँ शकाकार कहता है कि यह सूत्र निष्फल है क्योकि, वनस्पतिकायिक जोवोसे पृथग्भूत निगोद जोब पाये नही जाते। तथा वनस्पतिकायिक जोवोसे पृथग्भूत पृथिवीकायिकादिको में निगोद जीव पाये नहीं जाते। तथा वनस्पतिकायिक जोबोसे पृथग्भूत पृथिव कायिकादिकोमें निगोद जोब है' ऐसा आचार्योका उपदेश भी नही है, जिससे इस वचनको सूत्रत्वका प्रसंग हो सके । उत्तर-यहाँ उपर्युक्त शंकाका परिहार कहते है-तुम्हारे द्वारा कहे हुए वचनमें भले ही सत्यता हो, क्योकि बहुतसे सूत्रोमे बनस्पतिकायिक जीवोके आगे 'निगोद' पद नही पाया जाता, निगोद जीवोके आगे वनस्पतिकायिकों का पाठ पाया जाता है, ऐसा बहुतसे आचार्योसे सम्मत भी है। किन्तु 'यह सूत्र ही नहीं है ऐसा निश्चय करना उचित नहीं है। इस प्रकार तो वह कह सकता है जो कि चौदह पूर्वोका धारक हो अथवा केवलज्ञानी हो। अतएव सूत्रकी आशातना (छेद या तिरस्कार) से भयभीत रहनेवाले आचार्योको स्थाप्य समझकर दोनो ही सूत्रोका व्याख्यान करना चाहिए। ६ प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिको उपचारसे बादर निगोद भी कहते हैं ध. १/१,१,४१/२७१/५ बादरनिगोदप्रतिष्ठिताश्चार्षान्तरेषु श्रूयन्ते, क तेषामन्तभविश्चेद प्रत्येकशरीरवनस्पतिविति न म । के ते। स्नुगाईकमूलकादयः । - प्रश्न-बादर निगोदोसे प्रतिष्ठित बनस्पति दूसरे आगमोमें सुनी जाती है, उसका अन्तर्भाव वनस्पतिके किस भेदमें होगा। उत्तर-प्रत्येक शरीर बनस्पति में उसका अन्तर्भाव होगा, ऐसा हम कहते है। प्रश्न-जो बादर निगोदसे प्रतिष्ठित है, वे कौन है। उत्तर-थूहर, अदरख और मूली आदिक वनस्पति बादर निगोदसे प्रतिष्ठित है। ध. २/१,२,८७/३४७/७ पत्तेगसाधारणसरोवदिरित्तो बादरणिगोदपदिठिदरासी ण जाणिज्जदि त्ति वुत्ते सच्च, तेहि वदिरित्तो वणप्फइकाइएसु जीवरासी णत्थि चेव, कि तु पत्तेयसरीरा दुविहा भवति बादरणिगोदजीवाणं जोणीभूदसरीरा तबिवरीदसरीरा चेदि। तत्थ जे बादरणिगोदाणं जोणीभूदसरीरपत्तेगसरीरजीवा ते बादरणिगोदपदिठिदा भणं ति। के ते। मूलयद्ध -भन्लय सूरणगलोइ-लोगेसरपभादओ। = प्रश्न-प्रत्येक शरीर और साधारण शरीर, इन दोनो जीव राशियोको छोडकर बादरनिगोद प्रतिष्ठित जीवराशि क्या है, यह नहीं मालूम पडता है ? उत्तर-यह सत्य है कि उक्त दोनो राशियोके अतिरिक्त बनस्पतिकायिकोमें और कोई जीव राशि नही है, किन्तु प्रत्येकशरोरवनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते है, एक तो बादरनिगोद जोवों के योनिभूत प्रत्येक शरीर और दूसरे उनसे विपरीत शरीरवाले अर्थात् मादरनिगोद जीवोके अयोनिभूत प्रत्येकशरीर जोब। उनमेंसे जो बादरनिगोद जीवोके योनिभूत शरीर प्रत्येकशरीर जीव है उन्हें बादरनिगोद प्रतिष्ठित कहते है। प्रश्न-वे बादरनिगोद जोवोके योनिभूत प्रत्येक शरीर जीव कौन है ? उत्तर-मूली, अदरक (१), भल्लक (भद्रक), सूरण, गलोइ (गुडची या गुरवेल), लोकेश्वरप्रभा । आदि बादरनिगोद प्रतिष्ठित है। ध,७/२,११,७५/५४०/- णिगोदाणामुवरि वणप्फदिकाइया विसेसाहिया होति बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरमेतण, वणप्फदिकाइयाणं उवरि णिगोदा पुण केण विसेसाहिया होति त्ति भणिदे वुञ्चदे। तं जहा-वणप्फदिकाइया त्ति वुत्ते बादरणिगोदपदिठिदापदिदिजीवा ण घेत्तव्वा। कुदो। आधेयादो आधारस्स भेदद सणादो। वणप्फदिणामकम्मोदइल्लत्तणेण सव्वेसिमेगत्तमस्थि त्ति भणिदे होदु तेण एगत्तं, कितु तमेत्थ अविवक्वियं आहारअणाहारत्त चेव विवक्खियं । तेण वणप्फदिकाइएसु बादरणिगोदपदि ठिादापदिठिदाण गहिदा । वणप्फदिकाइयाणामुवरि ‘णिगोदा विसेसाहिया' त्ति भणिदे बादरवणप्फदिकाश्यपत्तेयसरीरे हि बादरणिगोदपदिठिदेहि य विसेसाहिया। बादरणिगोदपदिदिापदिठ्ठिदाण कधं णिगोदववएसो। ण, आहारे आहेओवयारादो तेसि णिगोदत्तसिद्धीदो। वणफदिणामकम्मोदइल्लाणं सव्वेसि वणप्फदिसण्णा सुत्ते दिस्सदि । बादरणिगोदपदि ठिदअपदिठिदाणमेस्थ सुतं वणप्फदिसण्णा किण्ण णिविट्ठा । गोदमो एत्थपुच्छेयव्यो। अम्हेहिगोदमो बादरणिगोदपदिठ्ठिदाण वणम्फदिसण्णं णेच्छदि त्ति तस्स अहिप्पओ कहिओ। -प्रश्न-निगोदजीवोंके ऊपर वनस्पतिकायिक जीव बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर मात्रसे विशेषाधिक होते है, परन्तु बनस्पतिकायिक जीवोके आगे निगोदजीव किसमें विशेष अधिक होते है। उत्तर-उपर्युक्त शकाका उत्तर इस प्रकार देते है-'वनस्पतिकायिकजोब' ऐसा कहनेपर बादर निगोदोंसे प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित जीवों का ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्यो कि, आधेयसे आधारका भेद देखा जाता है। प्रश्न-वनस्पति नामकर्म के उदयसे संयुक्त होने की अपेक्षा सबोके एकता है। उत्तर-बनस्पति नामकर्मोदयकी अपेक्षा एक्ता रहे, किन्तु उसको यहाँ विवक्षा नही है। यहाँ आधारत्व और अना ५. प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिको उपचारसे सूक्ष्म निगोद मी कह देते हैं ध.७/२.१०,३२/५०५/३ के पुण ते अण्णे सुहमणिगोदा सुहमवणप्फदिकाइये मोत्तूण । ण, सुहमणिगोदेसु व तदाधारेसु वणप्फदिकाइएम वि सुहुमणिगोदजीवत्तसंभवादो। तदो मुहुमवणष्फदिकाइया चेव मुहुमणिगोदजीवा ण होति त्ति सिद्ध। सुहमकम्मोदएण जहा जीवाणं वणप्फदिकाइयादीणं सुहुमत्त होदि तहा णिगोदणामकम्मोदएण णिगोदत्तं होदि । ण च णिगोदणामकम्मोदो बादरवणफदिपत्तेयसरीराणमत्थि जैण तेसि णिगोदसण्णा होदि 'त्ति भणिदे-ण, तेसि पि आहारे आहेओवयारेण णिगोदत्ताविरोहादो। -प्रश्न-तो फिर सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोको छोडकर अन्य सूक्ष्म निगोद जीव कौनसे है। उत्तर-नहीं, क्योंकि सूक्ष्म निगोद जीवोके समान उनके आधारभूत (बादर) वनस्पतिकायिकोमें भी सूक्ष्म निगोद जीवत्वको सम्भावना है। इस कारण 'सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही सूक्ष्म निगोद जीव नहीं होते, यह बात सिद्ध होती है। प्रश्न-सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे जिस प्रकार बनस्पतिकायिकादिक जीवो के सूक्ष्मपना होता है, उसी प्रकार निगोद नामकर्म के उदयसे निगोदत्व होता है। किन्तु बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोके निगोद नाममका उदय नहीं है जिससे कि उनकी निगोद' सज्ञा हो सके उत्तर-नहीं, क्योंकि बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंके भी आधारमें आधेयका उपचार करनेसे निगोदपनेका कोई विरोध नहीं है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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