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लोकचंद्र
४९१
लोकपाल
२. अन्य द्वीप सम्बन्धी
लम्बाई
नाम
चौडाई । गहराई
।
ति प. | रा वा/३/सू । /गा. व./ /प.
है. पु /गा
त्रि सा/
गा
ज, प/ अ/ गा.
|
to यो० । यो० → जम्बूद्वीपसे दूने -
धातकीखण्डके पद्म आदि द्रह
३३/५/१६/२३
नन्दीश्वरद्वीपको वापियाँ
१००,०००
१००,०००, १०००।
६० ।
३५/-१६८/११
९. अढाई द्वीपके कमलोंका विस्तार
ऊँचाई या विस्तार
नाम
ति प./ ४/गा
रा. वाशिह | १७/-/१८५/
त्रि. सा/
कमल । सामान्य नाल मृणाल पत्ता कणिका को० को० को० को० को.
पु./ ५/गा
ज. प./ अ/ गा.
पंक्ति
१
पद्मद्रहका
ऊचाईमूल कमल दृष्टि स १
१६६७
।१२८ ।
५७०-५७१ ६/७४ दृष्टि स २
२ । २ । १६७० ८ ६ विस्तारदृष्टि स.१ ४ या.२ १ ३
१७०-५७१ दृष्टि स.२
२ १६६७+ |
१२८
। १६७० । नोट- जल के भीतर १० योजन या ४० कोस तथा ऊपर दो कोस (रा वा /-1१८५/8), (ह. पु.५/१२८), (त्रि. सा/५७१), (ज. प./३/७४)
→
१६
३/१२७
परिवार कमल आगे तिगिंछ द्रह सक केसरी आदि द्रहके
हिमवान् पर
ऊँचाई
सर्वत्र उपरोक्तसे आधा - उत्तरोत्तर दूना --
त सू/३/१८ तिगिछ आदि वत् -
त. सू./३/२६
२०६ २२/२/१८८/३ जलके ऊपर
| १२ | १ | २५४ → जम्बूद्वीपवालोसे दूने - (रा वा/३/३३/५/१६५/२३)
विस्तार
कमलाकार कूट धातकीखडके
लोकचंद्र-नन्दोसघ बलात्कारगणको गुर्वावलीके अनुसार आप त्रि. सा./भाषा/२२४ जैसे राजाका सेनापति तैसे इन्द्रके लोकपाल कुमारनन्दीके शिष्य तथा प्रभावन्द्र नं.१ के गुरु थे। समय-विक्रम दिगीन्द्र है। शक सं. ४२७-४५३ (ई ५०५-५३१ ) दे० इतिहास/७२।
२. चारों दिशाओंके रक्षक चार लोकपाल लोकपंक्ति-यो.सा./अ./८/२० आराधनाय लोकानां मलिनेनान्त
१. इन्द्रकी अपेक्षारात्मना । क्रियते या क्रिया बालेर्लोकपडक्तिरसौ मता ।२०।-अन्त- ति.प./३/७१ पत्तेक्कादयाणं सोमो यमवरुणधणदणामा य। पुयादि रात्माके मलिन होनेसे मूर्ख लोग जो लोकको रजायमान करनेके लिए लोयपाला हब ति चत्तारि चत्तारि ७१।- प्रत्येक इन्द्रके पूर्वादि क्रिया करते हैं उसे लोकप क्ति कहते है।
दिशाओके रक्षक क्रमसे सोम, यम, वरुण और धनद ( कुबेर ) नामक
चार-चार लोकपाल होते है ७१। लोकपाल
२. पूजा मण्डपको अपेक्षा स. सि/४/४/२३६/अर्थ चरा रक्षकसमाना लोकपाला। लोक पाल
प्रतिष्ठासारोद्धार/३/१८७-१८८ पूर्वदिशाका इन्द्र , आग्नेयका अग्नि, यन्तीति लोकपाला 1 जो रक्षकके समान अर्थचर है वे लोकपाल
दक्षिणका यम, नैऋत्यका नैऋत्य, पश्चिमका वरुण, वायव्यका कहलाते है। तात्पर्य यह है कि जो लोकका पालन करते है वे लोक
वायु, उत्तरका कुबेर, ईशानका सोम व धरणेन्द्र । पाल कहलाते है ( रा. वा./४/४/६/२१३/४); (म. पु/२२/२८)। ति.प./३/६६ चत्तारि लोयपाला साबण्णा होति तंतवलाणं । तणुरक्वाण
३. प्रतिष्ठा मण्डपके द्वारपालों का नाम निर्देश समाणा सरीररयरवा सुरा सव्वे ६६।-(इन्द्रोके परिवारमेंसे) चारों प्रतिष्ठासारोद्धार/२/१३६ कुमुद, अजन, वामन, पुष्पदन्त, नाग, कुबे, लोकपाल तन्त्रपालोके सदृश होते है।
हरितप्रभ, रत्नप्रभ, कृष्णप्रभ, व देव। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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