Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 488
________________ लोक ४८१ ६. द्वीप क्षेत्र पर्वत आदिका विस्तार ३. पुष्करार्धके क्षेत्र विस्तार नाम लम्बाई प्रमाण अभ्यन्तर (यो०) मध्यम (यो०) बाह्य ( यो०) भरत हैमवत لم ولد ६५४४६२६३ २६१७८४२११३ १०४७१३६३१६ ) हरि विदेह ४१५७९३१३ १६६३१९५३३ ६६५२७७३३३३ २६६११०८३४३ ६६५२७७२१३ १६६३१९३१६ ४१५७९:५३ द्वीपके विस्तार वत ५३५१२३६६ २१४०५१३६३ ८५६२०७२३२ ३४२४८२८२९६ ५३५१२३६३ २१४०५१३६३ ८५६२०७२३३ (ति, प/४/२८०५-२८१७); (रा. वा /३/३४/२-५/१६६/१६), रम्यक हैरण्यवव ऐरावत सा /६२६), (ज प /११/६७-७२) م له ولم ६५४४६२६३ २६१७८४२५२३ १०४७१३६३९३ (-027/212) أل नाम वाण जीवा धनुषपृष्ठ प्रमाण दानों कुरु १४८६६३१ ४३६११६ ३६६८३३५ उपरोक्त दक्षिण उत्तर लम्बाई नाम पूर्व पश्चिम विस्तार ति प./४/गा आदिम मध्यम अन्तिम २८४८ २८५२ दोनों बाह्य विदेहों के क्षेत्र-(ति. प//गा.नं ), (त्रि सा /६३१-६३३) कच्छा-गन्धमालिनी १९२१८७४११६ १९३१३२२३१३ सुकच्छा-गन्धिला १९४२६७९३६६ १९५२१२८२१२ महाकच्छा-सुवल्गु १९६२०५३३५३ १९७१५०२ कच्छकावती-गन्धा १९८२८५९२१५ १९९२३०७३१३ आवर्ता-वप्रकावती २००२२३३३१३ २०११६८१३१३ लागलावती-महावप्रा २०२३०३८३६३ २०३२४८७३३३ पुष्कला व सुवप्रा २०४२४१२३४३ २०५१८६०३६३ वप्रा व पुष्कलाबती २०६३२१८६३३ २०७२६६६३१६ दोनों अभ्यन्तर विदेहोके क्षेत्र-(ति प/४/गा ), (त्रि सा./६३१-६३३) पद्मावमगलावती १५००९५३३९३ १४९१५०५३४६ सुपमा व रमणीया १४८०१४८३३३ १४७०७००२६२ महापद्मा-सुरम्या १४६०७७४३१४ १४५१३२६४१३ रम्या-पद्मकावती १४३९९६८२९६ १४३०५२०३२१ शंखा-वप्रकावती १४२०५९५२र १४१११४६३६५ महावडा-नलिन १३९९७८९११ १३९०३४१३२१२ कुमुदा-सुवप्रा १३८०४१५३१६ १३७०९६७२६२ सरिता-वप्रा १९४०७७०३६६ १९६१५७६२६३ १९८०९५०१३ २००१७५५३१६ २०२११२९३५३ २०४१९३५२१३ २०६१३०९३१२ २०८२१४२६३ २८६० २०६४ २८६८ २८७२ ر له لای २८८० २८८४ २८८८ १८४२०५७३१३ १४६१२५१३१४ १४४१८७७२६४ १४२१०७२,१३ १४०१६९८२९६ १३८०८९२३१६ १३६१५१९२१२ १३४०७१३२९६ २८६२ २८६६ २६०० १३५०१६१३१२ २६०४ | २६०८ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा०३-६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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