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लोक
३. जम्बू द्वीपके पर्वतों नाम १. कुलाचल आदि के नाम
१. जम्बुद्वीपमें यह कुलाचल है-हिमवान महाहिमवान, निषेध, नील रुक्मि और शिखरी (दे० लोक/२/१०२) २. सुमेरु पर्वत के अनेको नाम है। (दे० सुमेरु ) ३. कांचन पर्वतोंका नाम कांचन पर्वत ही है । विजयार्ध पर्वतोंके नाम प्राप्त नहीं है । शेषके नाम निम्न प्रकार हैं२. नाभिगिरि तथा उनके रक्षक देव
I
पर्वतोंके नाम देवोंके नाम नं० क्षेत्रका शि. १. ४] रा.बा.३/१० ६.५/२/१.ति.प./पूर्वोक्त नाम १७०४, १७४५/७/१७२/२१ + १६१; त्रि.३/२०६ रा वा. / " २३३५, १२३५० १० / १०२ / ३१ सा / ७१६
ह पु. /५/१६४ त्रि.सा./१०१९६
+ १६ / १८१५७ +38/1=1/31/
१ हैमवत २ हरि
शब्दवान् विजया
३ रम्यक पद्म ४ हैरण्यवत् गन्धमादन
३. विदेह वशारोंके नाम
( ति १/४/२२१०-२२१४); ( रा. बा./३/१०/१३/१७६/३२+१७०/६. १०.२३) (./५/२२८-२३९) (त्रि या ६८६-६६) ज. प / वहाँ अधिकार)।
अवस्थान क
उत्तरीय पूर्व विदेह में पश्चिम से पूर्व की ओर
श्रद्धावान् श्रद्धावान् श्रद्धावती शाती (स्वाति ) विकृतनात् विजय निकटा चारण (अरुण) वान् वती
गन्धवान् पद्मवान् गन्धवती पद्म माल्यवान् गंधवान् मान्यवान्
प्रभास
५
T दक्षिण पूर्व विदेह में पूर्व से 4 पश्चिमकी
७
ओर
ओर
उत्तर अपर
विदेह में
१
२
३ पद्मकूट
४
८
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ति. प.
चित्रकूट
नलिनकूट
पश्चिम से पूर्व - १५ की ओर
दक्षिण अपर
६
श्रद्धावान्
विदेहमें पूर्व से १० विजयात्
पश्चिमकी
११
आशीविष
१२
|१३
एक शैल
त्रिकूट वैधनकुट
अजन शैल
आत्माजन
सुखावह
चन्द्रगिरि
( चन्द्र माल )
१४ सूर्य गिरि
( सूर्य माल ) नागगिरि
शेष प्रमाण
चित्रकूट पद्मकूट
एक पोल
त्रिकूट
४७१
चणकूट
अजन शैल
आत्मजन
आशीष
सुखावह चन्द्रगिरि
सूर्यगिरि
नागगिरि
१६
( नाग माल ) देवमाल नोट- न ह पर ज प में श्रद्धावती । न १० पर रा. वा. विकृतवान् त्रि सा मे विजयवान् और ज. प में विजटावती है । नं १६ पर ह . पु में मेघमाल है ।
में
•
क्रम
४. गजदन्तोंके नाम
9
मायव्य आदि दिशाओं में कमसे सौमनस, विद्यत्प्रभ गन्छ गायन व मायया ये चार है। (दि. १८/४/२०१५) मतान्तर से गन्धमादन, माण्यवान्, सौमनस व विद्युत्प्रभ ये चार है । (रा.वा./ ३१०/१३/१७३/२७,२८ + १७५ / ११,१७); (ह. पु. / ५ / २१०-२१२); (त्रि सा./६६३) ।
५. यमक पर्वतोंके नाम
अवस्थान
देवकुरु
उत्तरकुरु
५. दीप पर्वतो नाम रस आदि
दिशा प४/२००७-२१२४ रा वा./२/१०/१२/ ./२/१६१-११२ त्रि.सा./१४-६२२
१ पूर्व २ पश्चिम
३. पूर्व ४ पश्चिम
यमकूट
मेघकूट
चित्रकूट विचित्र फूट
६. दिसाजेन्द्रो नाम
देवने सीशोदा नदीके पूर्व व पश्चिम में क्रम से स्वस्तिक, अजन, भद्रशाल वनमे सीतोदाके दक्षिण व उत्तर तटपर अजन व कुमुदः उत्तरकुरुमे सीता नदीके पश्चिम व पूर्वमेव व रोचन तथा पूर्वी भद्रशाल वनमे सीता नदीके उत्तर व दक्षिण तटपर पद्मोतर व नोस नामक दिग्गजेन्द्र पर्वत है। (वि.प./४/२१०३+ २१२२+२१३०+२१३४ ), ( रा वा /३/१०/१३/१७८/६), (ह पु. /५/ २०५-२०१), (त्रि. सा./६६१-६६२), (ज. प./४/७४-७५) ।
४. जम्बूद्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देव
कूट
देव
क्रम कूट
१. भरत विजयार्थ (पूर्व से पश्चिमको ओर)
(ति. १४/१४० + १६७). ( रा वा./३/१०/४/१७२/१०),
( ह.पु / ५ / २६ ), (त्रि सा / ७३२-७३३), ( ज प / २ / ४९ ) ।
सायन जिनमन्दिर ६ २(दक्षिण) भरत (दक्षिणार्ध) भरत ७ नृत्यमाल - मणिभद्र
ह
३ खण्ड प्रपात
४ मणिभद्र
2 विजयार्थ कुमार विजयकुमार
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-
१०४/२१:१७५/२६ जप/६/१५,१८८७
चित्रकूट
यमकूट मेमकूट
* नोट - त्रि. सा. में मणिभद्रके स्थानपर पूर्णभद्र और पूर्णभद्र के स्थान
पर मणिभद्र है।
७
८
२. ऐरावत विजया (पूर्व से पश्चिम की ओर )
(ति १/४/२३६०) (/ ५ / ११०-११२) (त्रि. सा. / ७३३-०३५) १ वियतन
पूर्णभव
पूर्णभद्र
जिनमन्दिर २ (उत्तरार्ध) ऐरावत (उत्तरार्ध) ऐरावत
तिमिस्र गुह्य : नृत्यमाल
३ खण्ड प्रपात
(दक्षिणार्ध ) ऐरावत (दक्षिणार्ध)
कृतमाल मणिभद्र
४ मणिभद्र
ऐरावत वैश्रवण
२ विजया कुमार निजण कुमार
देव
पूर्णभद्र' तिमिस्र उत्तरार्ध) भारत (उचरार्ध) भरत वैश्रवण वैश्रवण
मेवण हा वैश्रवण
पूर्ण भद्र
कृतमाल
* नोट-त्रि सा में नं. १ व ७ पर क्रमसे खण्डप्रपात व तिमिस्र गुह्य नाम कूट और कृतमालव' नृत्यमाला देव बताये है।
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