Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 417
________________ लक्षण पंक्ति व्रत लब्धि घट-पटादि विषयक अवग्रहादि ज्ञान पर्यायको धारण करता है अत' द्रव्य दृष्टिसे उसका ही उसी रूपसे परिणमन सिद्ध होता है। ६.लक्ष्य-लक्षणमें समानाधिकरण अवश्य है न्या. दी./१/8७/२ असाधारणधर्मवचनं लक्षणम् इति केचित्, तदनुपपन्नम्, लक्ष्यधर्मिवचनस्य लक्षणधर्मवचनेन समानाधिकरण्याभावप्रसङ्गात । असाधरणधर्मके कथनको लक्षण कहते है ऐसी किन्हींका कहना ठीक नहीं है। क्योंकि लक्ष्यरूप धर्मिवचनका लक्षणरूप धर्म वचनके साथ सामानाधिकरण्यके अभावका प्रसंग आता है। न्या. दी/भाषा/१/१५/१४१/२० यह नियम है कि लक्ष्य-लक्षण भावस्थल में लक्ष्य वचन और लक्षण वचनमे एकार्थप्रतिपादकत्व रूप सामानाधिकरण्य अवश्य होता है। * अन्य सम्बन्धित विषय १. लक्ष्य लक्षण सम्बन्ध-दे० संबध । २. लक्षण निमित्त ज्ञान-दे० निमित्त/२। ३. भगवान्के १००८ लक्षण-दे० अर्हत/१। लक्ष्य लक्षण सम्बन्ध-दे० सम्बन्ध । लधिमा विक्रिया ऋद्धि-दे० ऋद्धि/३। लघीयस्त्रय-आ. अकलंक भट्ट (ई ६२०-६८०)। कृत न्यायविषयक ७८ कारिका प्रमाण सस्कृत ग्रन्थ। इसमें छोटे-छोटे तीन प्रकरणोका संग्रह है-प्रमाण प्रवेश, नय प्रवेश व प्रवचन प्रवेश । वास्तवमें ये तीनों प्रकरण ग्रन्थ थे, पीछे आचार्य अनन्तवीर्य ने (ई. १७४१०२५) ने इन तीनोंका संग्रह करके उसका नाम लघीयस्त्रय रख दिया होगा ऐसा अनुमान है। इन तीनों प्रकरणोंपर स्वयं आ, अकल क भट्ट कृत एक विवृत्ति भी है। यह विवृत्ति भी श्लोक निबद्ध है। इसपर निम्न टीकाएँ लिखी गयी है.-१, आ. प्रभाचन्द्र (ई.६५०-१०२०) कृत न्यायकुमुदचन्द्र ,२ आ. अभयचन्द्र (ई. श. १३) कृत त्याद्वादभूषण । (ती०/२/३०६)। लघु-प. प्र./टी./१/२८ लघु शीघ्रमन्तर्मुहूर्तेन । = लघु अर्थात् शीघ्र अर्थात् अन्तर्मुहूर्त मे। लघुचूणि-दे० कोश परिशिष्ट १ । लघु तत्त्वस्फोट-आचार्य अमृतचन्द्र (ई. १०५-६५५) कृतअध्यात्म विषयक संस्कृत पद्य बद ग्रन्थ । लघुरिक्थ-Logarithum (ध / २८)। -दे० गणित/11/21 लघु सर्वज्ञ सिद्धि-आ. अनन्तकीर्ति (ई. श. ६ उत्तरार्ध) कृत सस्कृत भाषाका एक न्याय विषयक ग्रन्थ है। (ती/३/१६७)। लतालतांग-कालका प्रमाण विशेष-दे० गणित/I[१/४। लता वक्र-कायोत्सर्गका अतिचार-दे० व्युत्सर्ग/१ । लब्ध -Quotient (ध./प्र. २८)। लब्धराशि राशिक गणितमें फल इच्छा प्रमाण - दे० गणित/II/ लब्धि-शान आदि शक्ति विशेषको लब्धि कहते है। सम्यक्त्व प्राप्तिमें पाँच लब्धियोका होना आवश्यक बताया गया है, जिनमे करण लब्धि उपयोगारमक होनेके कारण प्रधान है। इनके अतिरिक्त जीवमें संयम या संयमासंयम आदिको धारण करनेकी योग्यताएँ भी उस-उस नामकी लब्धि कही जाती है। लक्षण पंक्ति व्रत-किसी भी दिनसे प्रारम्भ करके एक उपवास एक पारणा क्रमसे २०४ उपवास पूरे करे। नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप करे । अपरनाम दिव्य लक्षणपक्ति व्रत है। (ह. पु./३४/११३), (व्रतविधान सं./१०२)। लक्षपर्वा-एक औषध विद्या-दे० विद्या।। लक्ष्मण- प्र./सर्ग/श्लोक राजा दशरथके पुत्र तथा रामके भाई थे ( २५/१२६ ) भ्रातृ प्रेमसे भाई के साथ बनमें गये (३१/१६१) । सीताहरण पर रावणके साथ युद्ध कर उसको मारा (७६/३३)। अन्तमें देव कथित रामकी मृत्युके झूठे समाचार सुनकर नरकको प्राप्त हुए (११५/८-१२), यह आठवॉ नारायण था-(विशेष दे० शलाका पुरुष/४)। लक्ष्मण पुरी-वर्तमान लखनऊ ( म पु./प्र ५०/पं. पन्नालाल )। लक्ष्मण देव-णमिणाहचरिउ के रचयिता मालवा देशवासी एक अपभ्रश कवि । समय-वि श १४ (ती./४/२०७)। लक्ष्मण सेन-१ सेन संघी अहसेनके शिष्य रविषेण (पद्म पुराण के कर्ता) के गुरु थे। समय-वि६८०-७२०( ई ६२३-६६३)-दे०इतिहास/७/६ । २. काष्ठासघी रत्नकी तिके शिष्य तथा भीमसेनके गुरु थे। समय-वि १४८१ (ई. १४१४)-दे० इतिहास/७/। लक्ष्मी-१.शिखरी पर्वतस्थ पुण्डरीक हृदकी स्वामिनी देवी।-दे० लोक/३/8 | २ शिखरी पर्वतस्थ कुट और निवासिनीदेवी-दे० लोक/ १/४ । ३ विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर। -दे० विद्याधर । लक्ष्मीचंद-१. नन्दिसघ बलात्कारगणकी सूरत शाखा में मनिलभूषण के शिष्य तथा ब्र० नेमिदत्त के गुरु थे । समय-वि. १५७५ ( ई. १५१८) -दे० इतिहास/७/४ । २. मेघमाला के रचयिता एक मराठी कवि । समय-ग्रन्थ का रचनाकाल शक १६५० (ई १७२८)। (ती,/४/३२१)। ३. अणुवेवरवा दोहा के रचयिता एक अपभ्रंश कवि । समय-(ती/४/२४३) । लक्ष्मीमती रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी -दे० लोक/५/१३ । लक्ष्य-प.प्र./टी/१/१६ लक्ष्यं संकल्परूपं चित्तम् । = संकल्परूप मनको लक्ष्य कहते है। लब्धि सामान्य निर्देश १ । लब्धि सामान्यका लक्षण १क्षयोपशम शाक्तके अर्थ में, २ गुण प्राप्तिके अर्थ मे; ३ आगमके अर्थ मे। ज्ञान व सम्यक्त्वकी अपेक्षा लब्धिके लक्षण --दे० उपलब्धि । लब्धिरूप मति श्रुतज्ञान -दे० बह वह नाम । लब्धि व उपयोगमें सम्बन्ध -दे० उपयोग/I । क्षायिक व क्षयोपशमकी दानादि लब्धियाँ । क्षायिक दानादि लब्धियों तथा तत्सम्बन्धी शंकाएँ -दे० वह वह नाम । नव केवललब्धि नाम निर्देश। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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