Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 462
________________ लोक १०.कुण्ड निर्देश १. हिमवान् पर्वतके मूलभागसे २५ योजन हटकर गंगा कंड स्थित है। उसके बहुमध्य भागमें एक द्वीप है, जिसके मध्यमें एक शैल है। शैल पर गगा देवीका प्रासाद है। इसीका नगम गगाकूट है । उस कूट के ऊपर एक जिनप्रतिमा है, जिसके शीशपर गंगाकी धारा गिरती है। (ति. प./४/२१६-२३०), (रा वा/३/२२/१/१८७/२६ व १८८/१); (ह. पु./५/१४२); (त्रि. सा./५८६-५८७); (ज.प./३/३४-३७ व १९४-१६२)। २. उसी प्रकार सिन्ध आदि शेष नदियों के पतन स्थानोपर भी अपने-अपने क्षेत्रों में अपने-अपने पर्वतोके नीचे सिन्धु आदि कुण्ड जानने । इनका सम्पूर्ण कथन उपरोक्त गगा कुण्डवत है विशेषता यह कि उन कुण्डोके तथा तन्निवासिनी देवियोके नाम अपनी-अपनी नदियोके समान है। (ति ५/४/२६१-२६२, १६६६), (रा. वा./३/२२/१/१८८/१,१८,२६,२६ +१८८/६,६,१२,१६,२०,२३,२६,२६) । भरत आदि क्षेत्रोमें अपने-अपने पर्वतोसे उन कुण्डोका अन्तराल भी क्रमसे २५,५०,१००,२००,१००.५० २५ योजन है। (ह पु./२/१५१-१५७)1 २.३२ विदेहों में गंगा, सिन्धु व रक्ता रक्तोदा नामवाली ६४ नदियोंके भी अपने-अपने नाम वाले कुण्ड नील व निषध पर्वतके मुलभागमें स्थित है। जिनका सम्पूर्ण वर्णन उपरोक्त गगा कुण्डवत ही है। (रा वा./३/१०/१३/१७६/२४,२६ + १७७/११)। ११. नदी निर्देश १. हिमवान् पर्वतपर पद्मद्रहके पूर्वद्वारसे गंगानदी निकलती है (ति प/४/१६६), (रा. वा./३/२२/१/१८७/२२ ): (ह. पु/५/१३२), (त्रि सा /१८२), (ज प/३/१४७)। द्रहकी पूर्व दिशामें इस नदीके मध्य एक कमलाकार कूट है. जिसमें बला नामकी देवी रहती है। (ति प /४/२०५-२०६); (स. वा/३/२२/२/१८८/३)। द्रहसे ५०० योजन आगे पूर्व दिशामें जाकर पर्वतपर स्थित गगाकूटसे १/२ योजन इधर ही इधर रहकर दक्षिणकी ओर मुड जाती है, और पर्वत के ऊपर ही उसके अर्ध विस्तार प्रमाण अर्थात ५२३३२ योजन आगे जाकर वृषभाकार प्रणालीको प्राप्त होती है। फिर उसके मुख मे-से निकलती हुई पर्वतके ऊपरसे अधोमुखी होकर उसकी धारा नीचे गिरती है। (ति. प./४/२१०-२१४), (रा. वा/ ३/२२/१/१८७/२२); (ह, पु./१/१३८-१४०), (त्रि सा./५८२५८४), (ज प/३/१४७-१४६)। वहाँ पर्वतके मूलसे २५ योजन हटकर वह धार गंगाकुण्डमे स्थित गगाकूट के ऊपर गिरती है (दे० लोक/३/९) । इस गंगाकुण्डके दक्षिण द्वारसे निकलकर वह उत्तर भारतमें दक्षिणमुखी बहती हुई विजयार्धकी तमिस्र गुफामें प्रवेश करती है (ति. प/४/२३२-२३३); (रा. वा/३/२२/१/१८७/ २७), (ह पु/५/१४८), (त्रि सा/५६१); (ज प./३/१७४)। ['रा, वा' व 'त्रि. सा'में तमित्र गुफाकी बजाय खण्डप्रपात नामकी गुफामें प्रवेश कराया है ] उस गुफाके भीतर वह उन्मग्ना व निमग्ना नदीको अपनेमें समाती हुई (ति, १/४/२४° ). (दे० लोक/३/५) गुफाके दक्षिण द्वारसे निकलकर वह दक्षिण भारतमे उसके आधे विस्तार तक अर्थात् ११९३ योजन तक दक्षिणकी ओर जाती है। तत्पश्चात पूर्व की ओर मुड जाती है और मागध तीर्थ के स्थानपर लवण सागर में मिल जाती है । (ति. प./४/२४३-२४४); (रा. वा/३/२२/१/१८७/२८), (ह. पु./५/१४८-१४६), (त्रि. सा/५६६)। इसकी परिवार नदियाँ कुल १४००० है । (ति. प /१/२४४), (ह. पु./५/१४६),(दे० लोक/३/१६) ये सब परिवार नदियों म्लेच्छ खण्डमें ही होती हैं आर्यखण्डमे नही ( दे० म्लेच्छ/१)। २. सिन्धुनदीका सम्पूर्ण कथन गंगा नदीवद ३. जम्बूद्वीप निर्देश है । विशेष यह कि पद्माद्रहके पश्चिम द्वारसे निकलती है। इसके भीतरी कमलाकारकूटमें लवणा देवी रहती है। सिन्धुकुण्डमें स्थित सिन्धुकूटपर गिरती है। विजयाध की खण्डप्रपात गुफाको प्राप्त होती है अथवा 'रा-वा' व 'त्रि. सा' की अपेक्षा तमिस्र गुफाको प्राप्त होती है। पश्चिमकी ओर मुडकर प्रभास तीर्थ के स्थानपर पश्चिम लवणसागर में मिलती है। (ति, प./४/२५२-२६४), (रा वा /३/२२/२/ १८७/३१); (ह.पु/५/१५१); (त्रि सा /५६७)-(दे० लोक/३/१८) इसकी परिवार नदियाँ १४००० है (ति प/४/२६४); (दे० लोक/ ३/१६)। ३. हिमवान् पर्वतके ऊपर पद्मद्रहके उत्तर द्वारसे रोहितास्या नदी निकलती है जो उत्तरमुखी ही रहती हुई पर्वतके ऊपर २७६ योजन चलकर पर्वतके उत्तरी किनारेको प्राप्त होती है, फिर गगा नदीवत ही धार बनकर नीचे रोहितास्या लण्डमें स्थित रोहितास्याकूट पर गिरती है। (ति प/४/१६६५), (रा वा ३/२२/३/१८८७); (ह पु/५/१५३ + १६३); (त्रि. सा./५६८) कुण्डके उत्तरी द्वारसे निकलकर उत्तरमुखी बहती हुई वह हैमवत् क्षेत्रके मध्यस्थित नाभिगिरि तक जाती है। परन्तु उससे दो कोस इधर ही रहकर पश्चिमकी और उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पश्चिम दिशामे उसके अर्धभागके सम्मुख होती है। वहाँ पश्चिम दिशाकी ओर मुड जाती है और क्षेत्रके अर्ध आयाम प्रमाण क्षेत्रके बीचोबीच बहती हुई अन्तमें पश्चिम लवणसागरमे मिल जाती है । (ति, प/४/ १७१३-१७१६), (रा. वा./३/२२/२/१८८/११); (ह. पु/५/१६३); (त्रि सा/५६८); (दे० लोक/३/६८) इसकी परिवार नदियौंका प्रमाण २८००० है। (ति ५/४/१७१६), (दे० लोक/३/१९) । ४. महाहिमवान् पर्वतके ऊपर महापद्म हृदके दक्षिण द्वारसे रोहित नदी निकलतो है। दक्षिणमुखी होकर १६०५८५ यो० पर्वतके ऊपर जाती है। बहाँसे पर्वतके नीचे रोहितकुण्डमे गिरती है और दक्षिणमुखी बहती हुई रोहितास्यावत हो हैमवतक्षेत्रमे, नाभिगिरिसे २ कोस इधर रहकर पूर्व दिशाकी और उसकी प्रदक्षिणा देती है। फिर वह पूर्व की ओर मुडकर क्षेत्रके बीच में बहती हुई अन्तमें पूर्व लवणसागरमे 'गिर जाती है। (ति प/४/२७३५-१७३७), (रा. वा./३/२२/४/१८८/१५), (ह पु/५/१५४+१६३), (ज प/३/२१२), (दे० लोक/३/१८)। इसकी परिवार नदियाँ २८००० है। (ति प/४/१७३७), (दे० लोक/३/१३)।५ महाहिमवान् पर्वतके ऊपर महापद्म हदके उत्तर द्वारसे हरिकान्ता नदी निकलती है। वह उत्तरमुखी होकर पर्वतपर १६०५५ यो० चलकर नीचे हरिकान्ता कुण्डमें गिरती है। वहाँसे उत्तरमुखी बहती हुई हरिक्षेत्रके नाभिगिरिको प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पश्चिमकी ओर मुड जाती है और क्षेत्रके बीचोबीच बहती हुई पश्चिम लवण सागरमे मिल जाती है। (ति. प./४/१७४७-१७४६ ), (रा. वा/३/२२/१/१८८/ १९), (ह पु./५/१५१ + १६३ ) । (दे० लोक/३/१८) इसकी परिवार नदियाँ ५६००० है (ति.प/४/१७४६); (दे० लोक/३/१-६)।६. निषध पर्वतके तिगिंछद्रहके दक्षिण द्वारसे निकलकर हरित नदी दक्षिणमुखी हो ७४२११ यो० पर्वतके ऊपर जा, नीचे हरित कुण्डमें गिरती है। वहाँसे दक्षिणमुखी बहती हुई हरिक्षेत्रके नाभिगिरिको प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पूर्व की ओर मुड जाती है। और क्षेत्रके बीचोबीच बहती हुई पूर्व लबणसागरमें गिरती है। (ति. प./४/१७७०-१७७२), (रा. वा/ ३/२२/६/१८८/२७).(ह. पु/११५६+१६३), (दे० लोक/३/१०८) इसकी परिवार नदियाँ ५६००० है। (ति प./४/१७७२), (दे० लोक/३/१६) ७. निषध पर्वतके तिगिछहदके उत्तर द्वारसे सीतादा नदी निकलती है, जो उत्तरमुखी हो पर्वतके ऊपर ७४२१३ यो० जाकर नीचे विदेहक्षेत्र में स्थित सीतोदा कुण्डमें गिरती है। वहाँसे उत्तरमुखी बहती जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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