________________
लोक
३. जम्बूद्वीप निर्देश
चित्र सं०-३० पीठ पर स्थित मूलवृक्ष
AYAT
सीतोदा नदीके पश्चिम तटपर तथा उत्तरकुरुमें सुमेरुके उत्तर भागमें सीता नदीके पूर्व तटपर, तथा इसी प्रकार दोनो कुरुओसे बाहर मेरुके पश्चिममें सीतोदाके उत्तर तटपर और मेरुकी पूर्वदिशामें सीता नदोके दक्षिण तटपर एक-एक करके चार त्रिभुवन चूड़ामणि नाम वाले जिन भवन है। (ति. प./४/२००६-२१११+ २१३२-२१३३)। ७ निषध व नील पर्वतोंसे संलग्न सम्पूर्ण विदेह क्षेत्रके विस्तार समान लम्बी, दक्षिण उत्तर लम्बायमान भद्रशाल वनको वेदी है। (ति प./४/२११४) । ५. देवकुरुमें निषध पर्वतके उत्तरमें, विद्युत्प्रभ गजदन्तके पूर्व में, सीतोदाके पश्चिममें और सुमेरुके नैऋत्य दिशामें शाल्मली वृक्षस्थल है। (ति. प./४/२१४६-२१४७); (रा वा./३/१०/१२/१७५/२३), (ह. पु./१/१८७); (विशेष दे० आगे/लोक/३/१) सुमेरुकी ईशान दिशामें, नील पर्वतके दक्षिणमें, माण्यवंत गजदन्तके पश्चिममे, सीता नदीके पूर्वमे जम्बू वृक्षस्थल है। (ति. प./४/२१६४-२१६५); (रा. वा / ३/१०/१३/१७/७ ); (ह. पु/१/१७२ ): (त्रि. सा./६३६), (ज.प/६१५७)। १३. जम्बू व शाल्मली वृक्षस्थल
MANAINMAY
न
AE
यो
-
१. देवकुरु व उत्तरकुरुमें प्रसिद्ध शाल्मली व जम्बृवृक्ष है। (दे० लोक/३/१२ये वृक्ष पृथिवीमयो है (दे० वृक्ष ) तहाँ शाल्मली या जम्बू वृक्षका सामान्यस्थल ५०० योजन विस्तार युक्त होता है। तथा मध्यमें ८ योजन और किनारोंपर २ कोस मोटा है। (ति प| ४/२१४८-२१४६), (ह. पु./२/१७४); (त्रि सा/६४०)। मतान्तरको अपेक्षा वह मध्यमें १२ योजन और किनारोंपर २ कोस मोटा
+-२यो०→
पीठ रजत ममी है (तिस1४/२१५२)
नोट -शाल्मली वृक्षा में जिनभवन दक्षिण शारवा पर है और जम्बू वृक्ष
उत्तर शारवा पर
___ चित्र सं.-२६
सामान्य स्थल
---५०० यो..
है। (रा वा./३/७/१/१६६/१८); (ज. प./६/५८, १४६)। २. यह स्थल चारो ओरसे स्वर्णमयी वेदिकासे वेष्टित है। इसके बहुमध्य भागमें एक पीठ है, जो आठ योजन ऊँचा है तथा मूलमें १२ और ऊपर ४ योजन विस्तृत है। पीठके मध्य में मूलवृक्ष है, जो कुल आठ योजन ऊँचा है। उसका स्कन्ध दो योजन ऊंचा तथा एक कोस मोटा है। (ति प./४/२१५१-२१५५), (रा. वा/३/७/१/ १६६/१६), (ह पु/५/१७३-१७७ ); (त्रि. सा./६३६-६४१/६४८); (ज प/६/६०-६४, १५४-१५५)। ३ इस वृक्षकी चारो दिशाओ में छह-छह योजन लम्बी तथा इतने ही अन्तरालसे स्थित चार महाशाखाएँ है। शाल्मली वृक्षको दक्षिण शाखापर और जम्बूवृक्षकी उत्तर शाखापर जिनभवन है। शेष तीन शाखाओंपर व्यन्तर देवोंके भवन हैं। तहाँ शाल्मली वृक्षपर वेणु व वेणुधारी तथा जम्बू वृक्षपर इस द्वीपके रक्षक आदृत व अनादृत नामके देव रहते है। (ति, प/४/२१५६-२१६५-२१६६ ): (रा वा/३/१०/१३/१७४/७+१७५/२५),(ह. पु./५/१७७-१८२+१८६), (त्रि. सा./६४७-६४६+६५२); (ज. प./६/६५-६७-८६; १५६-१६०)।
४, इस स्थल पर एकके पीछे एक करके १२ वेदियाँ है, जिनके बीच १२ भूमियाँ हैं। यहाँ पर ह. पु में वापियों आदि वाली ५ भूमियोको छोडकर केवल परिवार वृक्षों वाली ७ भूमियों बतायी है। (ति. प./४/१२६७ ), (ह पु/५/१८३); (त्रि. सा./६४१); (ज प./६/१५१-१५२)। इन सात भूमियोंमें आदृत युगल या वेणुयुगलके परिवार देवोंके वृक्ष है। ५. तहाँ प्रथम भूमिके मध्य में उपरोक्त मूल वृक्ष स्थित है। द्वितीयमें वन-बापिकाएँ है। तृतीयकी प्रत्येक दिशामें २७ करके कुल १०८ वृक्ष महामान्यों अर्थात त्रायस्त्रिशोके है। चतुर्थ की चारों दिशाओं में चार द्वार है, जिनपर स्थित वृक्षोपर उसकी देवियाँ रहती हैं। पाँचवी में केवल वापियाँ है। छठी में वनखण्ड है। सातवींकी चारो दिशाओ में कुल १६००० वृक्ष अगरक्षकोके है । अष्टमकी वायव्य, ईशान व उत्तर दिशामें कुल ४००० वृक्ष सामानिकोके है। नवमकी आग्नेय दिशामें कुल ३२००० वृक्ष आभ्यन्तर पारिषदोंके है। दसवींकी दक्षिण दिशामें ४०,००० वृक्ष मध्यम पारिषदोके है। ग्यारहवीं की नैऋत्य दिशामें ४८००० वृक्ष बाह्य पारिषदोके है। बारहबौंकी पश्चिम दिशामें सात वृक्ष अनोक महत्तरोके है। सब वृक्ष मिलकर १४०१२० होते है। (ति प./ ४/२१६९-२१८१), (रा वा./३/१०/१३/१७४/१०), (ह. पु./५/१८३-१८६), (त्रि. सा./६४२-६४६), (ज.प/६/६८-७४,१६२१६७)। ६. स्थलके चारों ओर तीन वन स्वण्ड हैं। प्रथमकी चारो दिशाओमें देवोंके निवासभूत चार प्रासाद है। विदिशाओमें से प्रत्येकमें चार-चार पुष्करिणी है प्रत्येक पुष्करिणीकी चारों दिशाओं में आठ-आठ कूट है। प्रत्येक कूटपर चार-चार प्रासाद है। जिनपर उन आहत आदि देवोंके परिवार देव रहते है। [ रा. वा। मे इसी प्रकार प्रासादों के चारो तरफ भी आठ कूट बताये है ] इन
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org