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लोक
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१. लोकस्वरूपका तुलनात्मक अध्ययन
व उत्तरकुरु) उसके वर्ष बनकर रह जाते है। और भारतवर्ष नामवाला एक अन्य वर्ष (क्षेत्र) भी उसीके भीतर कल्पित कर लिया जाता है । ४. चातुर्डीपी भूगोलका भारत ( जम्बूद्वीप ) जो मेरु तक पहुँचता है, सप्तद्वीपिक भूगोल में जम्बूद्वीपके तीन वर्षों या क्षेत्रों में विभक्त हो गया है-भारतवर्ष, किपुरुष व हरिवर्ष । भारतका वर्ष पर्वत हिमालय है। किपुरुष हिमालयके परभागमें मगोलोकी बस्ती है, जहाँसे सरस्वती नदीका उद्गम होता है, तथा जिसका नाम आज भी कन्नौर में अवशिष्ट है। यह वर्ष पहले तिब्बत तक पहुँचता था, क्योकि वहाँ तक मगालोकी बस्ती पायी जाती है। तथा इसका वर्ष पर्वत हेमकूट है, जो कतिपय स्थानों में हिमालयान्तर्गत ही वणित हुषा है। (जैन मान्यतामे किपुरुषके स्थानपर हैमवत और हिमकूटके स्थानपर महाहिमवानका उल्लेख है)। हरिवर्षसे हिरातका तात्पर्य है जिसका पर्वत निषध है, जो मेरु तक पहुंचता है। इसी हरिवर्षका नाम अवेस्तामे हरिवरजी मिलता है। इस प्रकार रम्यक, हिरण्यमय और उत्तरकुरु नामक वषोंमे विभक्त होकर चातुर्कीपिक भूगोलबाले उत्तरकुरु महाद्वीपके तीन वर्ष बन गये है। ६. किन्तु पूर्व और पश्चिमके भद्राश्व व केतुमाल द्वीप यथापूर्व दोके दो ही
चालूपिक भूगोल परिचय
(वायुपुराण) चित्र-८
(सप्त दीपक गोल की अपेक्षा यह अधिक प्राचीन है
उत्तर कुरु (वर्तमान सीदिया)
TEAमगी पर्वत Lankar श्वेत पर्वत
मण्डलमें ५०० मील तक उत्तरोत्तर तरलता जैन मान्य तीन बातवलयौबत ही है। ३, एशिया आदि महाद्वीप जैनमान्य भरतादि क्षेत्रोके साथ काफी अशमें मिलते है (दे० अगला शीर्षक)। ४. बार्य व म्लेच्छ जातियोंका यथायोग्य अवस्थान भी जैममान्यताको सर्वथा उल्लघन करनेको समर्थ नहीं।। सूर्य-चन्द्र आदिके अवस्थानमैं तथा उनपर जीव राशि सम्बन्धी विचारमें अवश्य दोनो मान्यताओमे भेद है। अनुमधान किया जाय तो इसमें भी कुछ न कुछ समन्बय प्राप्त किया जा सक्ता है।
सातवीं आठवीं शताब्दी के वैविक विचारको ने लोक के इस चित्रण को बासना के विश्लेषण के रूप में उपस्थित क्यिा है (जै २१)। यथा-अधोलोक बासना ग्रस्त व्यक्ति की तम पूर्ण वह स्थिति जिसमें कि उसे हिताहित का कुछ भी विवेक नहीं होता और स्वार्थ सिद्धि के क्षेत्र में बड़े से बड़े अन्याय तथा अत्याचार करते हुए भी जहां उसे यह प्रतीति नहीं होती कि उसने कुछ बुरा किया है। मध्य लोक उसकी यह स्थिति है जिसमें कि उसे हिताहित का विवेक जागृत हो जाता है परन्तु वासना की प्रबलता के कारण अहित से हटकर हित की ओर झुकने का सत्य पुरुषार्थ जागृत करने की सामथ्र्य उसमें नही होती है। इसके ऊपर ज्योतिष लोक या अन्तरिक्ष लोक उसकी साधना वाली वह स्थिति है जिसमे उसके भीतर उत्तरोत्तर उन्नत पारमार्थिक अनुभूतिये झलक दिखाने लगती है। इसके अन्तर्गत पहले बिद्य तलोक आता है जिसमें क्षण भर को तत्व दर्शन होकर लुप्त हो जाता है। तदनन्तर तारा लोक आता है जिसमें तात्त्विक अनुभूतियों की झलक टिमटिमाती या आख मिचौनी खेलती प्रतीत होती है। अर्थात् कभी स्वरूप में प्रवेश होता है और कभी पुन विषयासक्ति जागृत हो जाती है। इसके पश्चात् सूर्य लोक आता है जिसमें ज्ञान सूर्य का उदय होता है, और इसके पश्चात् अन्त में चन्द्र लोक आता है जहाँ पहुँचने पर साधक समता भूमि में प्रवेश पाकर अत्यन्त शान्त हो जाता है। उर्ध्व लोक के अन्तर्गत तीन भूमिये है-महर्लोक, जनलोक और तप लोक । पहली भूमि में वह अर्थात् उसकी ज्ञान चेतना लोकालोक में व्याप्त होकर महान हो जाती है, दूसरो भूमियें कृतकृत्यता की
और तीसरी भूमिमें अनन्त आनन्द की अनुभूति में वह सदा के लिए लय हो जाती है। यह मान्यता जैन के अध्यात्म के साथ शत प्रतिशत नहीं तो ८० प्रतिशत मेल अवश्य खाती है । ७. चातुोंपिक भूगोल परिचय ( ज. प./प्र. १३८१H. L. Jain का भावार्थ )१ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित सम्पूर्णानन्द अभिनन्दन ग्रन्थमें दिये गये, श्री रायकृष्णदासजीके एक लेखके अनुसार, वेदिक धर्म मान्य सप्तद्वीपिक भूगोल (दे० शीर्षक न०३) को अपेक्षा चातुदीपिक भूगोल अधिक प्राचीन है। इसका अस्तित्व अब भी वायुपुराणमें कुछ-कुछ मिलता है। चीनी यात्री मेगस्थनीजके समयमें भी यही भूगोल प्रचलित था, क्योकि वह लिखता है-भारतके सीमान्तपर तोन और देश माने जाते है-सौदिया, बेक्ट्रिया तथा एरियाना। सीदियासे उसके भद्राश्व व उत्तर कुरु तथा बैक्ट्रिया व एरियानासे केतुमाल द्वीप अभिप्रेत है। अशोकके समय में भी यही भूगोल प्रचलित था, क्योकि उसके शिलालेखों में जम्बूद्वीप भारतवर्ष की सज्ञा है। महाभाष्यमें आकर सर्वप्रथम सप्तद्वीपिक भूगोलकी चर्चा है। अतएव वह अशोक तथा महाभाष्यकाल के बीच की सपना जान पड़ती है। २ सप्तदीपिक भूगोलकी भॉति यह चातुर्दीपिक भूगोल कल्पनामात्र नहीं है, बल्कि इसका आधार वास्तविक है। उसका सामजस्य आधुनिक भूगोलसे हो जाता है। ३ चातुर्दी पिक भूगोलमें जम्बूद्वीप पृथिवी के चार महाद्वीपी में से एक है और भारतवर्ष जम्बूद्वीपका ही दूसरा नाम है। वही सप्तद्वीपिक भूगोल में आकर इतना बड़ा हो जाता है कि उसकी बराबरीवाले अन्य तीन द्वीप (भद्राश्व, केतुमाल
WARNनील पर्वत
पश्चिम विदेह
/"पूर्व विदेह" (केतुमालद्वीप)
(भद्राश्व द्वीप) (वर्तमान बेक्ट्रिया)
(बर्तमान सीदिया और एरियाना)/ (वर्तमान पामार)
WD निषध पर्वत हरितष (अमेना पर हम हमक्ट पर्वत लिपुरम (वर्तमानजोर हिमवान पर्वत
भारत / जम्बू द्वीप (वर्तमान भारतवर्ष)
मटा दीपिक भूगोलके उत्तर
"हाजम्बदीपनाम से प्रसिद्ध
अंतर काल में दह सारा का सारा नोट अशोकके अनुसार 'जम्दीप भारतवर्षका ही नाम है २- मैगस्थनीजके अनुसार भारतवर्षकी सीमापर सीदिया
बैक्ट्रिया और ररिचाना द्वीप अवस्थित है। रह गये। अन्तर केवल इतना है कि यहाँ वे दो महाद्वीप न होकर एक द्वीपके अन्तर्गत दो वर्ष या क्षेत्र है। साथ ही मेरुको मेखलित करनेवाला, सप्तद्वीपिक भूगोलका, इलावृत भी एक स्वतन्त्र वर्ष बन गया है । ७. यो उक्त चार दीपासे पल्लवित भारतवर्ष आदि तीन दक्षिणी, हरिवर्ष आदि तीन उत्तरो, भद्राश्व व केतुमाल ये दो पूर्व व पश्चिमी तथा इलावृत नामका केन्द्रीय वर्ष, जम्बूद्वीपके नौ वर्षों की रचना कर रहा है। ८ [जैनाभिमत भूगोलमें ६ को बजाय १० वर्षोंका उल्लेख है। भारतवर्ष, किपुरुष व हरिवर्ष के स्थानपर भरत. हैमवत व हरि ये तीन मेरुके दक्षिणमें है। रम्यक, हिरण्यमय तथा उत्तरकुरुके स्थानपर रम्यक हैरण्यवत व ऐरावत ये तीन मेरुके उत्तरमें है। भद्राश्व व केतुमाल के स्थानपर पूर्व विदेह व पश्चिमविदेह ये दो मेरुके पूर्व व पश्चिममें है। तथा इलावृत्तके स्थानपर देवकुरु व
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