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लोक
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३. जम्बूद्वीप निर्देश ७. पाण्डुकशिला निर्देश
८. अन्य पर्वतोंका निर्देश पाण्डुक शिला १०० योजन लम्बी ५० योजन चौडी है, मध्यमे ८ १ भरत, ऐरावत व विदेह इन तीनको छोडकर शेष हैमवत आदि योजन ऊँची है और दोनों ओर क्रमश हीन होती गयी है। इस
चार क्षेत्रोके बहुमध्य भागमें एक-एक नाभिगिरि है। (हे. पु//
१६१), (त्रि सा./७१८-०१६), (ज.प/३/२०६); (वि. दे० प्रकार यह अर्धचन्द्राकार है। इसके बहुमध्य देशमें तीन पीठ युक्त
लोक/k)। ये चारो पर्वत ऊपर-नीचे समान गोल आकार वाले है। एक सिंहासन है और सिंहासनके दोनो पार्श्व भागोमे तीन पीठ (ति प./४।१७०४), (त्रि. सा./७१८), (ज. प /३/२१०)। युक्त ही एक भद्रासन है । भगवान के जन्माभिषेकके अवसरपर
चित्र सं०-२१ सौधर्म व ऐशानेन्द्र दोनों इन्द्र भद्रासनोंपर स्थित होते हैं और
स्वाति देवका विहार स्थान, भगवानको मध्य सिहासनपर विराजमान करते हैं। (ति.प./४/
नाभि गिरि १८१६-१८२६). (रा. वा./३/१०/१३/१८०/२०); (ह. पू./२/३४६-३९२); (त्रि. सा./६३५-६३६), (ज.प./४/१४२-१४७)।
दृष्टि नं.१
6460 यो न दृष्टि नं.२
चित्र-२०
STAGE0या
पाण्डुक शिला
20०० यो
-2000यो
दीव
भद्रासन
सिंहासन
भद्रासन
V-AVHAVITA
च्यो०
तोरणद्वार २. मेरु पर्वतकी विदिशाओं में हाथी के दॉतके आकारवाले चार गजदन्त पर्वत हैं। जो एक ओर तो निषध व नील कुलाचलोको और दूसरी तरफ मेरुको स्पर्श करते है। तहाँ भी मेरु पर्वतके मध्यप्रदेशमें केवल एक-एक प्रदेश उससे संलग्न है। (ति, प./४/२०१२-२०१४) । ति. प. के अनुसार इन पर्वतोके परभाग भद्रशाल वनकी वेदीको स्पर्श करते है, क्योकि वहाँ उनके मध्यका अन्तराल ५३००० यो० बताया गया है। तथा सग्गायणीके अनुसार उन वेदियोसै ५०० यो० हटकर स्थित है, क्योकि वहाँ उनके मध्यका अन्तराल ५२००० यो० बताया है। (दे० लोक/६/३ में देवकुरुव उत्तरकुरुका विस्तार)। अपनी-अपनी मान्यताके अनुसार उन वायव्य आदि दिशाओमें जो-जो भी नामवाले पर्वत है, उनपर क्रमसे ७,६,७६ कूट है (ति.प./४/२०३१, २०४६, २०५८, २०६०); (ह.पु/१/२१६),(विशेष दे० लोक/५/३)। मतान्तरसे इन पर क्रमसे ७,१०,७,६ कूट है। (रा. वा/३/१०/१३/१७३/२३,३०,१४,१८)। चित्र सं०-२२ गजदन्त
नील पर्वत नोट दृष्टिनर की अपेक्षा ऊँचाई
Peo यो द्रष्टिनं.२ दोनो तरफ ५०० यो० है।
(भद्रासन मी २५०१० (इसीके तुल्य है।
सिहास
---५००/
UHMA
५००००
HERE यो
INDIA
-५०० योले
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