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लोक
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१. लोकस्वरूपका तुलनात्मक अध्ययन
४. बौद्धाभिमत भूगोल परिचय
(५वीं शताब्दीके वसुबन्धुकृत अभिधर्मकोशके आधार पर ति प.. प्र८७/H. L Jain द्वारा कथितका भावार्थ)। लोक्के अधोभागमें १६००,००० योजन ऊँचा अपरिमित वायुमण्डल है। इसके ऊपर ११२०,००० योजन ऊँचा जलमण्डल है। इस जलमण्डलमे ३२०,००० यो० भूमण्डल है। इस भूमण्डलके बीच में मेरु पर्वत है। आगे ८०००० योजन विस्तृत सीता (समुद्र) है जो मेरुको चारो ओरसे वेष्टित करके स्थित है। इसके आगे ४०,००० योजन विस्तृत युगन्धर पर्वत वलयाकारसे स्थित है। इसके आगे भी इसी प्रकार एक एक सीता (समुद्र) के अन्तरालसे उत्तरोतर आधे आधे विस्तारसे युक्त क्रमश ईषाधर, खदिरक, सुदर्शन, अश्वकर्ण, विनतक,
और निमिधर पर्वत है। अन्तमें लोहमय चक्रवाल पर्वत है। निमिन्धर और चक्रवाल पर्वतोके मध्यमै जो समुद्र स्थित है उसमे मेरुको पूर्वादि दिशाओमे क्रममे अर्धचन्द्राकार पूर्व विदेह, शकटा
कार जम्बूद्वीप, मण्डलाकार अबरगोदानीय और समचतुष्कोण उत्तरकुरु ये चार द्वीप स्थित है। इन चारोके पार्श्व भागोमे दो-दो अन्तद्वीप है। उनमेसे जम्बूद्वोपके पासवाले चमरद्वीपमे राक्षसोका और शेष द्वीपोंमे मनुष्योंका निवास है। जम्बूद्वीपमे उत्तर की ओर कीटाद्रि (छोटे पर्वत) तथा उनके आगे हिमवान पर्वत अवस्थित है। उसके आगे अनबतप्त नामक अगाध सरोवर है, जिसमेसे गगा सिन्धु वश्च और सोता ये नदियों निकलती है। उक्त सरोवरके समीपमें जम्बु वृक्ष है। जिसके कारण इस द्वीपका 'जम्बू' ऐसा नाम पडा है। जम्बूद्वीपके नोचे २०,००० योजन प्रमाण अवीचि नामक नरक है। उसके ऊपर क्रमश प्रतापन आदि सात नरक और है। इन नरकोके चारो पार्श्व भागोमें कुक्ल, कुणप क्षुरमार्गादिक और खारोदक (अभिपत्रवन, श्यामशबल-श्व-स्थान, अय शाल्मली बन और बैतरणीनदी) ये चार उत्सद है। इन नरकोके धरातलमें आठ शीत नरक और है। भूमिसे ४०,००० योजन ऊपर जाकर चन्द्र सूर्य
भूमण्डल
चित्र-५
KARANAMA
S/REL
ATERAरक पर्तत १०,००० को
रिक पता ५०,०००
MERE
अश्वक) पर्वत २५०० .
---३२० ०७० सोनन
प्रमाण भूमण्डल जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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