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राग
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मोह, राग व द्वेषमें शुभाशुभ विभाग ।
माया लोभादि कषायका लोमने अन्तर्भाव ।
- दे० कषाय /४ । ४ पदार्थमें अच्छा-सुरापना व्यक्तिके रागके कारण होता है।
वास्तवमै पदार्थ इष्टानिष्ट नहीं।
परिग्रहमें राग व इच्छाको प्रधानता ।
भेद व लक्षण
राग सामान्यका लक्षण ।
रामके भेद |
प्रशस्त अप्रशस्त राग । अनुरागका लक्षण | अनुराग के मेद व उनके लक्षण
तृष्णाका लक्षण ।
- दे० उपयोग / II / ४ ।
राग द्वेष सामान्य निर्देश
अर्थ प्रति परिणमन धानका नहीं रागका कार्य है।
राग द्वेष दोनों परस्पर सापेक्ष है ।
- दे० परिग्रह / ३ |
आशा व तृष्णामें अन्तर ।
तृष्णाकी अनन्तता |
रागका जीव स्वभाव व निभाना या सहेतुक न
अहेतुकपना । परोपकार व स्वोपकारार्थं रागप्रवृति ।
- दे० विभाव / ३.५ ।
-दे० उपकार ।
परोपकार व खोपकारार्थ उपदेश प्रवृत्ति ।
- दे० उपदेश ।
रागादि भाव कथचित् पौगलिक है। दे० मूर्त १९
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व्यक्ताव्यक्त राग निर्देश
व्यक्ताव्यक्त रागका स्वरूप ।
अप्रमत्त गुणस्थान तक राग व्यक्त रहता है ।
ऊपर के गुणस्थानोंमें राग अव्यक्त है।
शुक्ल ध्यानमें रागका कथंचित् सद्भाव ।
केवली में इच्छाका अभाव ।
- दे० विकल्प / ७ । --दे० केवली / ६ ।
रागमें इष्टानिष्टता
राग ही बन्धका प्रधान कारण है । दे० वन्ध / ३ | राग हेव है।
मोक्षके प्रतिका राग भी कचित् देव है।
पुण्यके प्रतिका राग भी हेय है । मोक्षके प्रतिका राग कनिष्ट है।
तृष्णाके निषेधका कारण ।
-३० पृग्य / ३ ।
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ख्याति लाभ आदिकी भावनासे सुकृत नष्ट हो जाते है ।
६ लोकैषणारहित ही तप आदिक सार्थक है ।
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राग टाळनेका उपाय
इच्छा निरोध ।
रागका अभाव सम्भव है ।
राग टालनेका निश्चय उपाय ।
राग टालनेका व्यवहार उपाय ।
तृष्णा सोबनेका उपाय।
तृष्णाको वश करनेकी महत्ता
१. भेद व लक्षण
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
- दे० तप / १ ।
सम्यग्दष्टिकी विरागता तथा तत्सम्बन्धी शंका समाधान
१ सम्यग्दृष्टिको रागका अभाव तथा उसका कारण । निचली भूमिका रागका अभाव कैसे सम्भव है । सम्यग्दृष्टि न राग टालनेकी उतावली करता है और न ही उद्यम छोड़ता है। -३० नियति/२/४
३ सम्यग्दृष्टिको ही यथार्थ वैराग्य सम्भव है ।
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सरागी सम्यग्दृष्टि विरामी है।
घरमें वैराग्य व वनमें राग सम्भव है।
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६ सम्यग्दृष्टिको राग नही तो भोग क्यों भोगता है
विषय सेवता भी असेवक है।
भोगोंकी आकाक्षाके अभाव मे भी वह व्रतादि क्यों करता है
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१. भेद व लक्षण
१. राग सामान्यका लक्षण
१२/४,२,८८/२०३८ माया-सोय- हास्यरसयो रागमाया. लोभ, तीन वेद, हास्य और रति इनका नाम राग है। ससा / आ. ५१ य प्रतिरूपो राग स सर्वोऽपि नास्ति जीवस्य... 1यह प्रीति रूप राग भी जीवका नहीं है।
प्र. सा /त प्र / ८५ अभीष्टविषयप्रसङ्गेन रागम् । आसक्तिसे रागको ।
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पका / त प्र / १३१
चारित्रमोहनीयविपाकमध्ये प्रीपती रागद्वेषौ । - चारित्र मोहनीय कर्म के उदयसे जो इसके रस विपाकका कारण पाय इष्ट-अनिष्ट पदार्थोंमे जो प्रीति- अप्रीति रूप परिणाम होय उसका नाम राग द्वेष है।
सात / २०१/१२/२६ राममनद कोधादिकमायोत्पादकश्चारित्रमोही ज्ञातव्यः । राग द्वेष शब्द से क्रोधादि कषायके उत्पादक चारित्र मोहको जानना चाहिए । (प.का./ता. / २३/७२ /= ) 1
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- इष्ट विषयोकी
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