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योनि
१. योनि सामान्यका लक्षण
सि/२/३२/१८/१० योनिरुपपाददेश पुगचय उपपाद देशके पुद्गल प्रचय रूप योनि है ।
रा. वा /२/३२/१०/१४२/१३ यूयत इति योनि' । = जिसमे जीव जाकर उत्पन्न हो उसका नाम योनि है ।
गो. जी. जी. १/११/२०३/१ योति मिश्रीभवति औदारिकादिनोकवर्गणगते सह संभवते जीवो यस्य सा योनि
पति
स्थानम् । योनि अर्थात मिश्ररूप होता है। जिसमें जीव औदारिकादि नोकर्म वर्गणारूप पुद्गलोके साथ सम्बन्धको प्राप्त होता है, ऐसे जीवके उपजने स्थानका नाम योनि है ।
२. योनि के भेद
१. आकारोंकी अपेक्षा
मू, आ. / ११०२ सखावत्तयजोणी कुम्मुण्णद व सपत्तजोणी य । =शखावर्तयति कुर्मोपोनि वंशपत्रयोनि-इस तरह तीन प्रकारकी आकार योनि होती है। (गो जी./मू./८१/२०३ ) ।
२ शीतोष्णादिकी अपेक्षा
तसू /२/३२ सतिशीतसंवृता सेतरा मिश्राश्चैकदारतयोनय । - संचित, शीत और समृत तथा इनकी प्रतिपक्षभूत अति उष्ण और वि तथा मित्र अद सचितावित शीतोष्ण और संकृतविवृत ये उसकी अर्थात् जन्मकी योनियाँ है । ३२|
३. चौरासी लाख योनियोंकी अपेक्षा
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मू. आ./२२६ णिच्चिदरधादु सत्त य तरु दस विगलिदिएसु छच्चेव । सुरणरयतिरिय चउरी चउदस मणुए सदसहस्सा । २२६ । नित्यनिगोद, इतर निगोद पृथिवीकायसे लेकर वायु कम सात सात लाख योनि है । प्रत्येक वनस्पतिके दश लाखयोनि है, दो इन्द्रिय से चौहन्दी तक सब वह लाख ही है. देव व नारकी और पंचेन्द्री तिर्यंचोके चार-चार लाख योनि है, तथा मनुष्योके चौदह लाख योनि है । सब मिलकर चौरासी लाख योनि हैं । २२६॥ ( मू. आ / ११०४ ), ( बा, अ / ३५ ); ( ति प / ५ / २६७); ( ति प / ८ /७०१ ); (त. सा / २ / ११०-११९) (गो. जी./ /६/२९९) (नि. साता ६.४२)।
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३. सचिताचित योनि के लक्षण स.सि./२/१२/१७-१८८/१० आत्मनश्चेतन्य विशेषपरिणामश्चित्तम् । सह चित्तेन वर्तत इति सचित्त । शीत इति स्पर्शविशेष. "सम्यग् वृत संवृत' । सवृत इति दुरुपलक्ष्यप्रदेश उच्यते । योनिरुपपाददेशपुद्गलप्रच योऽचित्त । मातुरुदरे शुक्रशोणितम चित्तम्, तदात्मना चित्तवता चिता मिश्रण मिश्रयोनि-आरविशेषरूप परिणामको चित्त कहते है। जो उसके साथ रहता है वह सचित्त कहलाता है। शीत यह स्पर्शका एक भेद है । जो भले प्रकार ढका हो मह संवृत कहलाता है. यहाँ समृत ऐसे स्थानको कहते है जो देखने में न आवे । उपपाद देशके पुद्गलप्रचयरूप योनि अचित्त है । माता के उदरमें शुक्र और शोणित चित होते है जिनका सचित माताकी आमाके साथ मिश्रण है इसलिए वह मियोनि है (रा. वा./२/३२१/१-३/१४२/२९) ।
४. सचित्त अचित्तादि योनियों का स्वामित्व
मु. जा. / २०६६-१९०१ पदिय शेरइया संजोगी मत देना। वियलिदिया य वियडा सबुढवियडा य गन्भेसु । १०६६। अश्चित्ता खलु जोणी णेरइयाणं च होड़ देवाणं । मिस्सा य गन्भजम्मा तिविही जोणी दु ऐसा ११००१ सीहा जोणी हा उ
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योनि
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देवाण । तेऊण उसिणजोणी तिविहा जोणी दृ सेसाण | ११०१ | एकेन्द्रिय शारकी, देव इनके सह (दुरुपलक्ष) योनि है, दोइन्द्रियसे चौहद्रोसक विकृत योनि है और गर्भ जो संवृत योनि है | २०६६। अचित्त योनि देव और नारकियोके होती है, गर्भजो के मिश्र अर्थात् सचित्ताचित्त योनि होती है। और शेष मूर्धनो के तीनो ही योनि होती है । ११००१ (दे० आगे स. सि.)। नारकी और देवोके शीत, उष्ण योनि है, तेजस्कायिक जीवो के उष्ण योनि है और शेष एकेन्द्रियादिके दोनो प्रकारको योनि है। | ११०१) (स.सि /२/१२/१००/१० ) ( राधा /२/१२/१८-२६/१४३/१) (taft 19.124-20/20=) | /मू./
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४/२४०-२६५० मिस्स सचितजोगीए । २६४८। सीदं उन्ह मिस्स जोबेस होति गम्भपभत्रेसुं । ताणं भवनि संवदजोणीए मिस्सजोणी य । २१४६| सीदुण्ह मिस्सजोणी सच्चित्ताचित्त मिस्स विउडाय । सम्सुच्छिममणुवाण सम्ममा सचितए होति जोणीओ १२६५०/- १ मनुष्य गर्भज-- गर्भ जन्मसे उत्पन्न जीवोके सचितादि तीन योनियोमेंसे मिश्र (सचित्तासचिश) योनि होती है | २६४८ | गर्भ से उत्पन्न जीवोके शीत, उष्ण और मिश्र योनि होती है। तथा इन्हो गर्भज जीरोके संवृतादिक तीन योनियोमेसे मिश्र योनि होती है | २६४ | २ सम्मूर्च्छन मनुष्य- सम्मूर्छन मनुष्यो के उपर्युक्त सवितादिकमौनी पृष्ण मिश्र (शोषण), सचित, अति मिश्र (सचितावित) और विवृत ये योनियों होती है ।२६६०
ति प / ५ / २३-२६५ उत्पत्ती तिरियाण गन्भजसमुच्छिमोति पत्तेक्क । सचित्तसीद संबद सेदर मिस्सा य जहजोरगं |२| गन्भुन्भवजीवाणं मिस्स सचिणामधेयस्त सीद उन्हें मिस्स सबदजोणिम्मि मिस्सा २६४॥ मृचिचितमितसोरुणा । मिस्स विद वोगीसमा २६५
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शिप //७००००१ भायणये सरजो सियासी वादे सोह अचित्तं संउदया होति सामण्णे । ७००| एदाण चउविहाण सुराण होति जोनीबाट विदिओ १७०१३. गर्भज तिर्यच - तिचोकी उत्पति गर्भ और सम्मूर्छन जन्मसे होती है । इनमेसे प्रत्येक जन्मकी सचित्त, शीत सवृत तथा इनसे विपरीत अति उष्ण विवृत और मिश्र (सचिता चित्त, शीतोष्ण, सतनिवृत्त) ये यथायोग्य योनियों होती है | २१| = गर्भ से उत्पन्न होनेवाले जीवोमे सचित्त नामक योनिमें से मिश्र (सचितावित), शीत, उष्ण, मिश्र (शीतोष्ण) और सबूत योनि मिश्र (निवृत्त) योनि होती है | २१४४ सम्मूर्च्छन तिर्यच सम्मुन के सचिव अचित मिश्र (पिता) शीत. उष्ण मिश्र (शीतोष्ण) और संकृत योनिमे से मिल - विवृत) योनि होती है।२६ २ उपपादनदेव-भवनवासी, व्यन्तर ज्योतिषी और स्पवासियों के उपपाद जन्ममे शीतोष्ण, अचित्त और संवृत योनि होती है। इन चारो प्रकारके सब देवो के सामान्य रूपसे सब योनियों होती है। विशेषरूप से चार लाख योनियाँ होती है । ७००-७०१
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- - साधारण
स. सि / २ / ३२ / ९८६/१ सचित्तयोनय साधारणशरीरा । कुत । परस्पराश्रयत्वात् । इतरे अचित्तयोनयो मिश्रयोनयश्च । शरीरवालोकी सचित्त योनि होती है, क्योकि ये एक दूसरे के आश्रयसे रहते हैं । इनसे अतिरिक्त शेष सम्मूर्च्छन जोवोके अचित्त और मिश्र दोनो प्रकारकी योनियाँ होती है । ( रा. बा / २ / ३२/२०/ १४३/६)।
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५. शंखावर्त आदि योनियोंका स्वामित्व
आ / ११०२-११०३ तत्थ य संखावते नियमादु विवज्जए गम्भो । १११०२॥ कुमुद कोणी तियराश्यीय रामावि य
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