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प्रमुखका भाषण. मुः बंबइकी कन्फरेंसमें पूर्व निवासी हमारे मित्र राय बद्रिदासजी बहादुर सभापतिका पद लिया था। फेर मुम्बडोदाके तिसरी महासभामें हमारे परम मित्र स्वग्रामवासी राय बुधसिंहजी बहादुरको प्रमुख पदका सम्मान दिया गया । आज मुझेभी आप लोगांने वही सुअवसर दिया है । आज मुझे ऐसे नगरमें आनेका मौका मिला हे कि समग्र भारतवर्षम ऐसे जैन बंधुओका एकत्र समाबेश और दुसरी जगह नहीं देख पडता । इस शहरको एक जैनियोंकी पूरी कहनी चाहिये कि जहां सैकडों, हजारो सद्गृहस्थ, सामि भाइयोंके दर्शनका और देव गुरु धर्मका लाभ सदा विद्यमान है । इस कारणसे मझे औरभी आनंद होता है।
पूर्वक महाशयोंने जिन विषयों को कहा है उसी विषयका पिष्टपेषण कर आपका कालक्षेपकरना यद्यपि अनुचित है तथापि दो एक विषय ऐसे है कि उनको जबतक पूर्णरूपसे ब्यबहार में न लावे तब तक उन विषयों में कहना निरर्थक न होगा । क्यों कि जब कोइ रोग विशेष रुपले शरीरमें अपना अधिकार. जमा लेता है तो यावतकाल पय्यन्त उस रोगको निवृत्ति नहीं होती तब तक बैद्य परिक्षित औपधिका प्रयोग करताही चला जाता है । आशा है कि आज जो कुछ मै कहूंगा आपसजन केवळ गुणग्राहकतासे कृपा पूर्वक सुनेगे ।
धर्म शिक्षा । ___ इह अलार संसार में धार्मिक, बावहारीक, शारीरिक और नैतिक उन्नतियों में धर्मकी उन्नतिही श्रेष्ट और मुख्य वस्तु है सिवाय इसके हम एक पगभी आगे नहीं बढासकते । संसारमै चाहे जिधर नजर क्यों न डालो धर्मकी रोशनीही देख पडती है । जो मूर्ख धर्मको छोडकर अंधेरेमें विचरता है वह पग पग पर ठोकर खाताहै हमारा धर्म रोज मर्रह के कामके साथ मिला हुआ होना चाहिये । जो काम हम धर्मके अनुसार न करेंगे उसीमे धाका खायेंगे । इसीकी अवनतिसे ही हमारी यह दुर्दशा हो रहो है । इसी के सुधारके लिये आप सब भ्रातृगण तथा वहनें यहां पर उपस्थित हुई है । यहि हमारे धर्मकी सर्वदेशव्यापकता, परमार्थिक तथा लौकिक कार्यसाधनोपयोगिनी विद्याकी पराकाष्टाका ध्यान किया जाय और उसके साथ वर्तमान कालकी तुलना की जाय तो किसीसे अश्रुपात किये विना नहि रहा जाती। अब किंचिन्मात्र इस जैन धर्मकी ओर दृष्टि किजिये तो आपको निश्चय हो जायगा कि जैन धर्मके जो सिद्धान्त है उनकी मुख्य प्रवृति परमार्थिक ही है। सलारिक कार्य को जैन धर्मके आचार्य तथा उसके रहस्य वेत्ताओंने गौण माना है । देखिये । तत्वार्थ सुत्रजीमे प्रथमही किस वस्तुका वर्णन है : " सम्यग्दर्शनशानचारत्राणि मोक्षमार्गः" । इसका तात्पर्य यह है कि सम्यक् ज्ञान सम्यग्दर्शन तथा सम्यक चारित्र है। मोक्ष मार्ग है, अर्थातू तिनेके मेलसे मोक्ष होता है । इन सबको पूर्ण रुपले व्याख्या करनेसे समय अधिक लगेगा, यहा दर्शानेका यह ही हेतु हे कि मोक्षकोही प्रधान रख कर उसका स्वरुप समजनेके अर्थ अन्य सर्व पदार्थो की व्याख्या की गई है। इसमेंसे एक की व्याख्या करनेसे एक एक ग्रन्थ होसक्ता है, और आचार्यों ने किया भी है । परन्तु यहां पर मेरा अभिप्राय केवल आपलोगोंका चित्त इस