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કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ
[३थुमारी ता है या स्थान स्थान के प्रथायोंमें क्या क्या भेद और सरकारी कायदेमें कोन कोन विषय प्रामाणिक सिद्ध हूया है इत्यादि विषयोंपर जरुर विचारना चाहिये । और इसके अभावसे अपनी जाति और समाजमें क्या क्या दुर्दशाहो रही है सो किसीसे अविदित नहीं है । हिन्दु मुसलमान वगेरह जातिके पृथक् पृथक् ग्रन्थ बहुत दिनोसे विद्यमान हैं या नगीन भी प्रकाशित होते हैं और सरकारी न्यायालयमें प्रसिद्ध है परन्तु बडे शोककी बात है कि आज तक हमारा एकभी ग्रन्थ पूर्णरुपसे या अंगरेजी भाषान्तर सहित प्रकाश नही हुया कि जिसको विचारपतिके सम्मुख दाखिल किया जा सके । अब अवसर आ गया है, अपने विद्वानोंको उपरोक्त योग्य विषयपर पूर्ण ध्यान देकर यह अभाव दूर करना चाहिये । मैं आशा करता हूं कि अन्यान्य ठहराव के साथ आप इसे भी स्थान दें, और एक सबकमिटी नियत कर इसका पूरा पूरा चर्चा करें।
युनिवर्सिटी में जैन साहित्य । " और उपयोगी विषयोंमे युनिवर्सिटियोंकी पाठ्य पुस्तकोंमे जैन मत के दर्शन तथा काव्य साहित्य आदि ग्रन्थोको नियत कराना । गत कनफरेंसके १६ में ठरावमें अपने जैन श्वेताम्बर आम्नाय के ग्रन्थों को संस्कृत साहित्य के भितर दाखिल करने के विषयमें योग्य प्रयत्न करनेको आवश्यकता बताई गईथी, लेकीन इस पर कोई विशेष उद्यम नही हुया । भारतवर्षमें कलकत्ता, इलाहाबाद, पंजाब, बम्बई, और मद्रास, कुल ५ विश्वविद्यालय है । प्रथम तो वहां पर वर्तमान में जो २ संस्क्रत ग्रन्थकी पढाई होती है उसी दरजे की अपने आचार्यो और विद्वानोंके बनाये हुए ग्रन्थोंका प्रकाश होना चाहिये । पश्चात् कनफरेंस के तर्फ से उद्यम करनेसे शीघ्र ही मनोरथ सिद्ध होसकेंगा अन्यथा केवल ठराव करनेसे कुछ लाभ नहीं । हमारे यहां ग्रन्थोंकी न्युनता नही है किन्तु भेद इतनाही है कि अन्यमत के ग्रन्थ मुद्रित होनेसे प्रकट हो गये है, ओर हमारे ग्रन्थ मुद्रित न होने से अभी छिपे हुये है। संस्कृत तथा प्राकृत भंडार को जैसे अन्य मतके ग्रंथ अलंकृत करतेहै उसी भांति जैन मतके ग्रंथभी संस्कृत तथा प्राकृत भंडार को पुर्णरुप से भुषित करते है, पर प्राकृत भंडार की मूर्ति तो जैन ग्रन्थ ही से होती है । और संस्कृत में हमारे मतके काव्य, रघुवंश माघ आदि काव्यो से कुछ कम नहीं हैं । यद्यपि दौर्भाग्य से हमारे मत के अनेक ग्रंथ लुप्त हो गये है ओर होते जाते है, तथापि हमारे गौरव को संरक्षार्थ अब भी बहूत ग्रंथ है । केवल आवश्यक्ता इस बात की है कि पुर्ण उद्योग तथा उत्साहके साथ उनको प्रकट करवाना चाहिये । सरकारी पवित्रागीरियो में हमारे ग्रंथों के नियत होने से बहुत ही लाभ है । निज मत की उ