Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 421
________________ १८०७] estat चुडी पहीरनेका बंध करनेके लीये विनंति [ ३७५ अब वक्त नही हे निर उद्यम रहनेका । केलवणी देकर स्वको करीये पका ॥ अपनी औलाद कुसंगतसें दुख पाते ॥ ८ ॥ चुडी सब पढो पढावो जैन साला मांई । बेकार ऐसा मत खर्चे तुम भाइ ॥ नुगते भोजन कर क्यों बुधी बीगडाते ॥ ९ ॥ चुडीछोटी उमर में बीयाव कभी न कराना । बुढे बावाके धनसें मत ललचाना ॥ कन्या विक्रयके फदमें क्यों फसाते ॥ १० ॥ चुडी पेसे कारन छोटी उमर परनाते । विधवाके दुखकी कुरणां घट नहीं लाते | धिकार जनम तक माता पिता वो पाते ॥ ११ ॥ चुडी - जबसें हींद में डाकतर पादरी रहते । तबसें ये मांस आहार उत्तेजन देतें ॥ साठ हजार गाय नीत युरुपीयन कटवाते ॥ १२ ॥ चुडी जबसें कटती गउ हींदके मांही । नाताकत हो गये सब ये हींदु भाई || तीस करोड प्रजा गउ कटनेसें दुख पाते ॥ १३ ॥ ये सपतम एडवर्ड बडे इनसाफी कहाते । वीनंती करने में सबी हुकम मीलेजाते || तुम सब हींदु मील क्यों नही गउ बचाते ॥ १४ ॥ कंजुसी माणस अनुकंपा नही लाते । धन सींच २ के जेरी सर्प हो जाते ॥ क्यों नही चेतो तुम कुरणावंत कहाते ॥ १५ ॥ धरी देह स्वजात स्वदेश दाश नही धारी । निज धर्म टेक विन जननी बोझां मारी ।। जैनी कहलाकर कयों कुसंप तुम चाहते || १६ || चुडी धर्म उन्नति काजे कमेटी स्थापो भाई । हैसीयत मुजब दो सालाना चीत चाई ॥ फी रूपीये पीछे पाई देते क्यों ही चकाते ॥ १७ ॥ दुजेकी निन्दा तुम क्यों करना चाहते । एब अपनी २ सबी मीटाओ भ्राते || विनै भक्ति संधकी क्यों कर चित नही लाते ॥ १८ ॥ श्री वीर प्रभुका हुकम सबी मन धारो । सब मील कर बंधव अपना भला विचारो ॥ क्यों न बीचार उचार आचारसम वरताते ॥ १९ ॥ चुडी चुडी सुलेह रक्षकको 'प्रतिनिधि ठेराओ । इस माया नसेमें मत कोई फुलाओ ॥ कयों तन मन धन नही सुऋत मांय लगाते ॥ २० ॥ सब गांम २ के पंचोंसे अर्ज हमारी । ये चुडी करदो बंद सुधारो नारी ॥ कहे वीरपुत्र तुम दयावंत कहलाते ॥ २१ ॥ चुडी जीतमल लोढा. ( मालवा ) मंदसोर.

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