________________
१८०७ ।
.
प्रमुखका भाषण.
कन्या विक्रय हमारे यहां का एक और रिवाज बहुत ही खराब है । मैंने बङ्गालेमें रहकर देखा है कि बंगाली पुत्र विक्री करते हैं । जब किसी के पुत्रके विवाहका समय होता है तो वह लडकि वालेसें हजार मांगता है । यदि लडकोवाला देनेपर राजी हूया तो अ. पने पुत्रकी शादी उस लडकीसे करते हैं नही तो अन्यत्र कन्याकी तलाश करते हैं। यह लोग इस बुरे रिवाजको रोकनेका चेष्टा कर रहे हैं क्या हमें भी इस समय कन्या वेचनेका रिवाज बंध न करना चाहिये ? कन्या क्या माल असबाबोंमे है कि जो अधिक मुल्य देगा उसीको बेचडालोगे ? फर्ज करो किसी मनुष्यकी कन्याको खरिद कर शादि की । जब वह कन्या युवति होगी तो वह क्या उसके पिताको यह कहक र गालि न देगी कि जिससे मैंने इस दुनियाको देखा उसीने मेरी जिन्दगी बरबादकी मुझे उमर भरके लिये विधवा बनाया । क्या जवान विधवा लडकिको देखकर ऐसा कोई पापाण हृदय पिता है कि जिसके आंखोसे आंसु नही टपकता ? क्या उसके जिन्दगी के उत्तरदाता हम न होगे।
वृद्ध विवाह । वृद्धावस्थामें विवाह भी अति ही हानिकारक है, क्योंकि इस दशामें केवल विषयलालसासे विवाह कीया जाता है । इस दशामें जो कुछ कुल कलंक आदिका दोष तथा अन्य प्रकारकी हानि होती है, वे किसी प्रकारसे छिपी नहीं है । इस बृद्ध विवाहका मूल कारण वा प्रबल सहायक कन्याविक्रय है । यदि यह कन्या विक्रय बंध कर दीया जाय तो अधिकांशमें यह वृद्धविवाह स्वयं बंध हो जायगा ।
एक स्त्रीकी विद्यमानतामें दूसरा विवाह । । कोई कोई पुरुष एक स्त्रीकी विद्यमानतामें पुनः विवाह करते हैं ।अपने समाज में ऐसी हानिकारक प्रथा कदापि रहना उचित नहीं है । मनुष्यों के संस्कारोंमे विवाहही प्रधान संस्कार है । इस विषयपर अधिक कहनेकी आवश्यकता नही । जिसको धर्म साक्षिपूर्वक हाथ पकडकर अपने सुख दुःखका साथी बनाया, ऐसी अबलामें अनुचित दोषों के कारण या केवल इंद्रिय सेवनार्थ उसको छोडकर दुसरा विवाह क. . रना, धर्मसे पतित होना ओर इस लोक परलोक के मुखसे वंचित रहना है । ऐसी रीति जहां तक होसके शीघ्र अपनी जाति और समाजसे दूर किया जाय उतनाही भला है।
जैन लॉ। . अपने व्यवहारिक उन्नति के बच्चने योग्य विषयमें “ जैन ला" अर्थात् जैन मत के अनुसार व्यवहार शास्त्रमें क्या कथन है वा आजकल किस रीतिसे बह वर्ता जा- .