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कान्फरन्सकी जय करने लगे. जब आपने प्रान्तिक कान्फरन्स भरनेके लिये कहा तो सर्व महाशयोंने आन्तरिक हृदयसे सहानुभुती प्रकाशित की और आपकों
अग्रसर होनेके लिये आग्रह कीया. ३ बन्डी गुमानज ने श्रीयुक्त रावत साहब व सर्व जैन संघकों धन्यवाद दीया. उसदिन अनुमान २००० स्त्री पुरूष एकत्रित थे. सभा विसर्जन हुई.
दुसरे दिन रथ पिछा जलुस सहीत मंदिरजीमें पहुंचाया गया. उसी दीनभी शोभाका रंग चमकिला था.
तीसरे दिन उक्त मुनिश्रीके उपदेशसे वहांके श्रावकोंने निम्न लिखित प्रतिज्ञा की. १ मंदिरजी गये बिगेर भोजन नहीं करेंगें. २ मंदिरजीमें ढुंढिये साधु उतरते थे सो अब नहीं उतरेंगे. ३ देवद्रव्यका हीसाब जुदा रखेंगें. ४ और जो जो असातना मंदिरमें होतीथीं अब नहीं होने देंगें.
ईसही तरह कुछ समय हुवा उक्त मुनिश्रीके उपदेशसे मनासामें ध्वजा दंडादी प्रतिष्ठाका महोत्सव अच्छी तरह हुवाथा जीसमें ईन्दोर राज्यके २२ मेलके सुबे साहबश्री हीरालालजी कोठारीने ईमदाद देकर अच्छा उत्साह दिखलायाथा. ईसहीसे मेरी समझमें ईस तरफ । मुनिराजोंका पधारना अवश्यकिय और लाभजनक है.
आशाहै के मुनिमहाराज पन्यासजी श्री सिद्धिविजयजी व मुनिमहाराज श्रीअमीविजयजी जीनके चतुर्मासके लिये रतलाम और बडनगरके श्रावकोंने विनंती कीहै. बाद चतुर्मासेके मेरी प्रार्थनापर अवश्य गोर फरमावेंगे. ईत्यलाम्.
शाह रतनलाल सीपाणी. मु० जावद मालवा.
000जोधपुर राज्य तर्फसे मळेला परवाना. मारवाडकी डायरेक्टरीके अनुभवसे विदित हुआके मारवाड प्रांतके मंदिरोंका हिसाब खाता दुरूस्त नहीं, और हमारे भाई देव द्रव्यसे दुषित होनेकी वजहसे कई तराहकी असातनामें देव मंदिरोंमें पुजनादि प्रबन्ध या बिना देखरेख विरान और दुसरोंके कबजेमें और मरमत तलब आदि हैं. कई अर्से तक विचारास करते हुवे हमारे कोन्फरन्सके उत्पादक नररत्न मिस्टर गुलाबचन्दजी साहेब ढढ्ढा व हमारे परम पुज्यनीय धर्मिष्ट शेठ वीरचंद दीपचंद साहेब सी. आई. ई. जनरल सेक्रेटरी श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरन्सकी सहायता और मेरे परम मित्रा स्वधर्मी बन्धु