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प्रमुखका भाषण.
बोर्डि खोलनेकी आवश्यकता। ऊंची केलवणी और प्राथमिक शिक्षा उभयोंको उन्नति, पूर्णता तथा उत्तमताके लिए बडे बडे नगरोंमें बोर्ड अर्थात् जैन छात्रालय अवशा स्थापन होना चाहिये । क्यों वि इसके बिना बहतही हाने है बलकि एक प्रकारसे इसके सिवाय हमारी शिक्षा रुव रही है। सिवाय सेठ साहुकारोंके अन्यान्य स्थितिके लोगोंको उच्च शिक्षा पानेमें इस लिये रुकावट हाती है, कि जिस स्थानमें एम, बिए, तथा वकालत, डाक्टरी आदिव शिक्षा दी जाती है वहांका बाय नहीं उठा सकते; ओर जो वाय उठानेके समर्थ हैं, वे में उत्तम प्रवन्ध न होनेसे अपने बालकोंको वहां पर नहीं भेज सक्ते। इस कारण उन बााडै आदिमै उद्यमकी आवशाकता प्रतित होती है । यह जैन बोर्डिं इस प्रकारक होना चाहिये कि जिसमें जैन मतके बालक सुख प्रर्बक रह सकें और सबके भोजन शयनादिका उत्तम प्रबंध हो । एक ऐसे निरिक्षक [ इन्स्पेक्टर ] के अधिकारमें सस छात्र रहै जो सच्चरित्र और विद्वान हो जिससेकि गत्रिमे जब सब वालक एकत्र हो उनको एक या आधे घंटा धामिक और नैतिक शिक्षा देसकें। इस बोर्डिसे अनेव लाभ है । सब बालक इसमें रहकर निज २ अभिष्ट कालेजोंमें पढते हुये इसमें बिन किसी प्रकारके वा अल्प बायके रह सकेंगे । परस्परकी सहायतासे बिद्योन्नति में सुगम
ता होगी । उत्तम सचरित्र मनुप्यके निरीक्षणमें रहनेस चाल चलन नष्ट होनेका भर | नहीं रहेगा । जो बायके अभावसे पढना त्याग देते है, वे पढ सकेंगे । सबको एक शुद्ध भोजन मिल सकेगा; इत्यादि अनेक लाभ है । यह बोर्डिं शहरके उत्तम भाग तथा जहांसे सब कालेजों में जानेमें सुगमता हो ऐसे स्थानमें होना चाहिये। दीन और योग्य छात्रोंके वृत्तिका भी उत्तम प्रबंध होना अत्याबशाक है ।
शिल्प शिक्षाकी आवश्यकता । एक समय भारतवर्षकी उन्नति शिल्प कलासे हुइथी. ढाकेका मलमल, मकरानवे पत्थरका कारुकार्य और . मुर्शिदाबादके हथिदांतका शिल्प आजतक बिदेशीयोक अचम्बित करते हैं । मलमलका आदर युगेपकी रमणियां आजतक करती हैं । पत्थर का कारुकार्य अगरजो इस देशसे बहुत कुछ जाता रहा है, तथापि जो निशानियां वर्स मान हैं, केवल उसको देखकर अंगरेज भारतबासियौंको सन्मान करते है; और भारत वासीयोमेसे गौरव हमारा ही है कि आजतक श्री आबुजिके मंदिरका कारुकार्य न के वल हमारी शिल्पकला वलकि सभ्यताका परिचय देता है । आबुही का मन्दिर सूक्ष कारुकार्य पृथिविके कुल मंदिरोंसे बढ़ कर है ।
आजकल हमारी ऐसी दुईशा हुई है कि हम पुरानी शिल्पकलायोंको भूलकर नौक गेको तलाशमें भटकते फिरते हैं । ऐसी शिल्पकला जिनको हम काममें ला सक्ते हैं क्यों उनका उद्योग न करें ? एक समय हमहीने न केवल शिल्पकला बलकि सौदागरी की उन्नति कर कुल पृथिविके अधिवासीयोको स्तम्भित किया था। भारतवर्षसे भेजे हु इन्य कुल पृथिवीमें आदरसे ग्रहण किये जाते थे । उस समय जैनोयोनही वाणिज्य