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જૈન ારન્સ હેડ.
[ मुखारी
ये । खुद गवर्नमेंटने पशुयोंके लिये अलग ( वेटर्नरी ) डाक्टर नियत कर रखे हैं, प रन्तु यदि उनके प्रबन्धके साथ साथ हमारी सहायता उनको मिली तो हर शहर तथा गांव ऐसे डाक्टरखाने प्रतिष्ठित हो जायेंगे । जिस तरहसे हमारे शरीर में बिमारी रहने पर हमकों तकलीफ होती है वैसेही जानवरोंमेंभी बिमारीयोंका असर रहने से उनको कष्ट होता है, इसलिये हमें पशुयोंके डाक्टर नियत करनेका शीघ्र प्रबन्ध करना चाहिये |
निराश्रिताश्रय | हमारी जातिके जो भाई अपने बालबच्चोंके लिये कुछ छोड़ी नहीं जा सकते जिनके बच्चे चिथडे पहने दरबदर फिरते हैं; क्या उनके लिये आपके दिल में जराभी रहम नही आती ? जब आपका बेटा बेटी आपसे अच्छा पोशाक मांगता है तब क्या आपका ख्याल उन यतीमों की ओर नही जाता । जो महाशयको दुसरेकी तकलिफ देख कर हदयमें चोट नही पहुंचती, वे अपने बालबच्चों की भी उन्नति नही कर सकते । हमारे ख्यालमें हर एक नगर में पंचायतीके मन्दिर वा दादाबाडीके सम्हालनेके लिये स्थानीय
गृहस्थोंकी अलग कमीटी होनी चाहिये । इस कमीटीको उचित है की पंचायतीकी तर्फसे एक निराश्रिताश्रय बनाय और उसीमें जातीय यतीमों को रखनेका प्रबन्ध करें । यह ख्याल न करना चाहिये कि यतीमोंको खाना कपडा देने ही पर हमारा फर्ज अदा हो गया । उनकी शिक्षाकीभी व्यवस्था करनी चाहिये । किताबी शि क्षा पानेके बाद शिल्प कला आदि सिकनेकाभी अवश्य प्रबन्ध होना चाहिये, कारण हमारी जातीनें व्यापारसेही उन्नति को; इसलिये यह मार्ग कभी न छोडना चाहिये
इसके हाथ एक और फन्ड एसा खोलना चाहिये कि जिससे गरीब विधवायोंको सहायता मिला करे । पूर्वोक्त कमिटीको ऐसा विधवायोंकी एक फहरिस्त बनानी चाहिये, जिन विधवायोको खाने कपडेका पूरा कष्ट हो । फंडकी आमदनीके अनुसार इन विधवायोंको माहवरी कुछ कुछ वृत्ति दी जाय जिससे उनका थोडा बहुत अभाव दुर हो सके । हमारी जातिमें ऐसी हजारो विधवा है जिनको दो वखता खाना मिलना कठिन है, परन्तु असराफ घरा नेकी होकर वे दुसरेके पास हाथ पसार नही
सकती । क्या हमें उनके लिये यतीम खानेके ऐसा कई फंड न खोलना चाहिये ?
हानिकारक रिवाज.
शायद ही दुनिया के परदे पर ऐसी कोई जाति है जिसमें हानिकारक रिवाज न हो यूरोपके अधिवासी जो अपनेको सभ्य समाजका आदर्श समजत हैं उनमेभी हजारों हानिकारक रिवाजे है । यहां पर मैं उन रिवाजोका उल्लेख करना नहीं चाहता; परन्तु यह बात निश्चय है कि जब जो हमारे राजा बनते हैं हम उनके कइ रिवाजोंका, चाहे वे बुरे हों या भले अनुकरण कर लेते हैं । अंग्रेजो के साथ राजा प्रजाका प्रबन्ध होने से भारतवासियों के कई रिवाज तथा चाल चलन धीरे धीरे बहुत कुछ बदलता जाता है । मैं यह कहना नहीं चाहताकि जितना पाश्चात्य रिवाजोंके अनुकरण हुये हैं वे सब हानि कारक हैं केबल तात्पर्य यह है कि राजाके जातिके सहित पाला पडने से अधिन जातिके रिवाजो में कुछ न कुछ फरक पडही जाता है । ऐसी बहुत रिवाजें हममें प्रचलित
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