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જેન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ.
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भारी.
तथा दो पैर थे, परंतु इसके वहुतसे सिर थे । एक सिर पर जर्मनी, एक पर फ्रेंच. एक पर इटालि, एक पर रुस और एक पर इङ्गलण्ड लिखा हुया था । इस्से यह प्रकट होता था कि राक्षस महादेश है और उस राक्षस का हरएक सिर युरोप की शक्तियों का स्थान अधिकार किये हुये है। हरएक मस्तक एक दूसरों को निगलनेके लिये मुह वाये हुये थे । इस तसवीरके निचे लिखा हुया था “ युरोपकी शक्तियां । इस तसवीर से यह मालुम होता है कि युरोपकी शक्तियां एक दूसरेकी शत्रु है: जब उनमें किसी को अवसर मिलेगा तो वह दुसरेको अथवा सबको निगल जायगी। जबानी मित्रता चाहे कितनी क्यों न हो, एक दसरी शक्तियोंके सम्राटों में नातारिस्ता क्यों नहीं तथापि जब मौका मिलेगा तब कोई शक्ति दुसरेको न छोडेगी, निगल जायगी । अब दुसरी तस. चौरका हाल सुनिये । इसमें राक्षसके हाथ पैर बहुत थे पर मस्तक एक था । और इस तसवीरके निचे लिखा हुया था कि " विदेशमें शक्तियां अर्थात जब युरोय छोड कर इह शक्तियां दुसरे पर चढाइ करती है तब एक हो जाती है । जब एक होकर यह किसी पर चढाई करती है तो उसका तमाम हो जाता है । इसी तरहसे भाइयों हममें चाहे कितनाही झगडा क्यों नहीं परन्तु जातीय उन्नति करनेके समय हमें जरुर एक हो जाना चाहिये. एसा नहीं किया जायगा तो हमारे समाजको शक्ति न्युन हो जायगी । इस लिये हम सबको परस्परमें स्नेह भावकी वृद्धिकर कुसपरुप राक्षसको दुर हठाके ऐक्यभाव धारन करना चाहिये ।
जीर्ण मन्दिरोद्धार और ग्राचीन शिला लेग्य । राजप्रतिनिधि होकर लोर्ड करझन जब प्रथम इस देशमें आये थे उस बखत राजधानी कलकत्तेमें उनका स्वागत हमारी जाति के तरफ से किया गया था और उसके उत्तरमें ऊनोने यह कहा था कि जैन लोग ही वाणिज्य तथा दानमें भारतवर्षमें प्रधान है. । हम अपने पुगने मन्दिरो से यह साबित कर दिखाया है कि भारतवर्ष एक समय उन्नतिके शिखर पर आरुढ था । परन्तु हाय । आज अपनी गिरी दशाको याद करते आंखों से आंसु टपकने लगते हैं। अभी तक हमारे मन्दिरो का बुरा हाल है ॥ जरा उस और नजर डालिये देखियेगा कि यहां का कारूकार्य खचित पत्थरजाता रहा है, वहां का मुलम्मा हमेशा के लिये अतीतके गर्भ में लीन होगया है ॥ अंगरेज हजारों कोसोंखे इस देशमें आनकर पुरानी स्मृतियोंकी रक्षा करनेका बहुतही चष्टा करते हैं। और हमलोग अपनी पवित्र मूर्तियोंकी स्थानकी ओर नजर तक भी न डालत ॥ हाय ! हमारी जाति के वह महानुभाव कहां है कि जिनकी कीर्तियां देखकर स्वदेशवासियोकी कौन कहे, पाश्चात्य जातियोंको आंखेभी चौंधिया जाती है ॥ अब बताइये भाइयो जिन पवित्र मूर्ति तथा मन्दिरों के लिये हमारी प्रसिद्धि है तथा धर्मके अनुसार जिसको गरम्मत करना हमाग फर्ज है, यहां तक के नवीन मन्दिर प्रतिष्ठासे जीर्णोद्धारमें अष्टगुण फल ज्यादे होता है, हम ऊसके लिये क्या कर रहे हैं ? भाइयो जितना शीघ्र हो सके मन्दिरोंको मरम्मत करवा कर पुरानी कीर्तियो की रक्षा कर अपनी उन्नत गौरवको गारत होनेसे बचाइये और साथही साथ धर्मकी पूंजीको बढाइये ॥