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{15} अहिंसा सत्यमक्रोधो दानमेतच्चतुष्टयम्। अजातशत्रो सेवस्व धर्म एष सनातनः॥
(म.भा.13/162/23) (भीष्म का युधिष्ठिर को उपदेश-) अहिंसा, सत्य, अक्रोध, और दान-इन चारों का सदा सेवन करो। यह सनातन धर्म है।
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{16} कर्मणा मनसा वाचा सर्वभूतेषु सर्वदा। हिंसाविरामको धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्॥
(ग.पु.1/229.14) मन, वचन व कर्म से सर्वदा सभी प्राणियों की हिंसा से निवृत्त होना परम सुखकारी # अहिंसा धर्म है।
{17} अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा। अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः।।
(म.भा.12/162/21) मन, वाणी और क्रिया द्वारा सभी प्राणियों के साथ कभी द्रोह न करना तथा दया व दान-ये सभी अहिंसात्मक कार्य सब श्रेष्ठ पुरुषों के सनातन धर्म के रूप में मान्य हैं। अहिंसाःदशांग धर्म का एक विशेष अंग
{18} ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा नित्यवर्तनैः। दानेन नियमैश्चापि क्षमाशौचेन वल्लभ॥ अहिंसया च शक्त्या वाऽस्तेयेनापि प्रवर्तते। एतैर्दशभिरंगैश्च धर्ममेवं प्रसूयते॥ संपूर्णो जायते धर्म अंगैर्गर्भो यथोदरे।
___ (प.पु. 5/89/8-10) जिस प्रकार (नारी के) उदर में गर्भ विविध अंगों से परिपूर्ण होकर जन्म लेता है, + उसी प्रकार 'धर्म' दश अंगों से समृद्ध/परिपूर्ण होकर ही मूर्तिमान होता है। वे दश अंग हैंH (1) ब्रह्मचर्य, (2) सत्य, (3) तप, (4) नित्यकर्म, (5) दान, (6) नियम, (7) क्षमा,
(8) शौच, (9) अहिंसा, और (10) अस्तेय।
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अहिंसा कोश/5]