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स्वाध्यायो ब्रह्मचर्यं च दानं यजनमेव च। अकार्पण्यमनायासो दयाऽऽहिंसा क्षमादयः॥ जितेन्द्रियत्वं शौचं च मांगल्यं भक्तिरच्युते। शंकरे भास्करे देव्यां धर्मोऽयं मानवः स्मृतः॥
(वा. पु. 11/23-24) स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य, दान, यज्ञ, अकृपणता (उदार दानशीलता), थकान न रखना है * (धार्मिक कार्यों में उत्साह), दया, अहिंसा, क्षमा, जितेन्द्रियता, शौच, मंगलमयता, एवं * अच्युत, शंकर, सूर्य व देवी में भक्ति होना-ये सभी मानवीय धर्म माने गये हैं।
__ } अद्रोहश्चाप्यलोभश्च दमो भूतदया शमः।। ब्रह्मचर्यं तपः शौचमनुक्रोशं क्षमा धृतिः। सनातनस्य धर्मस्य मूलमेतद्दुरासदम्॥
__ (म.पु. 143/31-32) ईर्ष्याहीनता, निर्लोभता, इन्द्रियनिग्रह, जीवों पर दयाभाव, मानसिक स्थिरता, ब्रह्मचर्य, तप, पवित्रता, करुणा, क्षमा और धैर्य-ये सनातन धर्म के मूल ही हैं, जो बड़ी कठिनता से प्राप्त किये जा सकते हैं।
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{10} सामान्यमन्यवर्णानामाश्रमाणाञ्च मे श्रृणु॥ सत्यं शौचमहिंसा च अनसूया तथा क्षमा। आनृशंस्यमकार्पण्यं सन्तोषश्चाष्टमो गुणः॥
___ (मा.पु. 28/31-32) __ (राजकुमार अलर्क की माता 'मदालसा' का कथन-) अन्य वर्णों तथा अन्य आश्रमों के जो सामान्य धर्म हैं, उन्हें मैं बता रही हूं, सुन लो। सत्य, शौच, अहिंसा, अनसूया, क्षमा, दया, अदैन्य और आठवां सन्तोष-ये सभी वर्गों और आश्रमों के लिए सामान्य धर्म हैं।
अहिंसा कोश/3]