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इष्टाचारो दमोऽहिंसा दानं स्वाध्यायकर्म च। अयञ्च परमो धर्मो यद्योगेनात्मदर्शनम्॥
(ग.पु. 1/93/8) लोकमान्य आचार, दम (जितेन्द्रियता), अहिंसा, दान, स्वाध्याय एवं योगसाधना द्वारा आत्मसाक्षात्कार-ये उत्कृष्ट धर्म हैं।
{5} अहिंसा सत्यमक्रोध आनृशंस्यं दमस्तथा। आर्जवं चैव राजेन्द्र निश्चितं धर्मलक्षणम्॥
(म.भा. 13/22/19) अहिंसा, सत्य, अक्रोध, कोमलता (दया), इन्द्रिय-संयम और सरलता-ये धर्म के निश्चित (स्थायी) लक्षण हैं।
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वेदाभ्यासस्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः॥ अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम्॥
(अ.पु. 162/4-5) वेदाभ्यास, तप, ज्ञान, इन्द्रिय-संयम, अहिंसा, गुरु-सेवा- ये सभी (प्रवृत्तिपरक धर्म) परम निःश्रेयसकारी धर्म हैं।
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अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियसंयमः। दानं दया च क्षान्तिश्च ब्रह्मचर्यममानिता॥ शुभा सत्या च मधुरा वाङ् नित्यं सत्क्रियारतिः। सदाचारनिषेवित्वं परलोकप्रदायकाः॥
___ (वा.पु. 15/2-3) (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) शौच, (5) इन्द्रिय-संयम, (6) दान, (7) दया, (8) क्षमा, (9) ब्रह्मचर्य, (10) निरभिमानता, (11) शुभ, सत्य व मधुरवाणी, (12) सदा सत्कर्म में अनुरक्ति, (13) सदाचार-सेवन- ये सभी धर्म परलोक को सुधारने वाले हैं।
(वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/2