Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, २. च आविभावाणाविभावकओ विसेसो तेसिं सरूवेण समाणत्तस्स विणासओ, आविब्भूदसूरमंडलस्स अणाविन्भूदसूरमंडलस्स सूरमंडलत्तणेण समाणत्तुवलंभादो।
८एवं दव्वट्टियजणाणुग्गहढ णमोक्कारं गोदमभडारओ महाकम्मपयडिपाहुडस्स आदिम्हि काऊण पज्जवट्ठियणयाणुग्गहट्टमुत्तरसुत्ताणि भणदि
णमो ओहिजिणाणं ॥२॥
ओहिसदो अप्पाणम्मि वट्टदे, 'ओहि त्ति आह' इदि एत्थ अप्पाणभिम पउत्तिदसणादो । सब्भावासब्भावट्ठवणासु वि वट्टदे, 'एसो सो ओहि' त्ति आरोवबलेण ओहिणा एगतं गयदव्वाणमुवलंभादो । कत्थ वि मज्जाए वट्टदे, जहा 'माणुसखेत्तोही माणुसुत्तरसेलो', 'लोगोही तणुवायपरंतो' ति। कत्थ वि णाणे वट्टदे 'ओहिणा जाणदि' त्ति । एत्थ णाणे वट्टमाणो ओहिसद्दो घेत्तव्यो । मज्जाए रूढो ओहिसदो कथं णाणे वट्टदे ? ण, उवयारेण असिसहिचरियस्स
वं अनाविर्भावसे किया गया भेद स्वरूपसे उनकी समानताका विनाशक नहीं है, क्योंकि, आविर्भूत सूर्यमण्डल और अनाविर्भूत सूर्यमण्डलके सूर्यमण्डलस्वकी अपेक्षा समानता पायी जाती है।
इस प्रकार द्रव्यार्थिक जनोंके अनुग्रहार्थ गौतम भट्टारक महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके आदिमें नमस्कार करके पर्यायार्थिकनय युक्त शिष्योंके अनुग्रहार्थ उत्तर सूत्रोंको कहते हैं
अवधि जिनोंको नमस्कार हो ॥ २ ॥
अवधि शब्द आत्माके अर्थ में होता है, क्योंकि, ' अवधि इस प्रकार आत्मा कहा जाता है' (?) इस प्रकार यहां आत्मा अर्थमें अवधि शब्दकी प्रवृत्ति देखी जाती है। सद्भाव और असद्भाव रूप स्थापनामें भी यह अवधि शब्द रहता है, क्योंकि, 'यह वह अवधि है' इस प्रकार आरोपके बलसे अवधिके साथ एकताको प्राप्त द्रव्य पाये जाते हैं । कहींपर मर्यादाके अर्थमें भी इस शब्दका प्रयोग होता है; जैसे, मानुषक्षेत्रकी अवधि ( मर्यादा) मानुषोत्तर पर्वत है; लोककी अवधि तनुवात पर्यन्त है । कहींपर ज्ञान अर्थमें भी यह शब्द आता है; जैसे अवधि (शान ) से जानता है। यहांपर अवधि शब्दको ज्ञानके अर्यमें ग्रहण करना चाहिये।
शंका-मर्यादा अर्थमें रूढ़ अवधि शब्द शानके अर्थमें कैसे रहता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि जिस प्रकार असिसे सहचरित पुरुषके लिये उपचारसे
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