Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, १. ]
कदिअणियोगद्दारे मंगलायरणं
[११
तिव्वकसाइंदिय- मोहविजयादो । होदु णाम सयलजिणणमोक्कारो पावप्पणासओ, तत्थ सव्वगुणाणमुवलंभादो | ण देसजिणागमेदेसु तदणुवलंभादो ति ? ण, सयलजिणेसु व देसजिसु तिन्हं रयणाणमुवलंभादो । ण च तिरयणवदिरित्ता देवत्तणिबंधणा सयलजिणे के वि गुणा संति, अणुवलंभादो । तदा सयलजिणणमोक्कारो व्व देसजिणणमोक्कारो वि सयलकम्मक्खयकारओ त्ति दट्ठव्वो । सयलासयलजिणट्ठियतिरयणाणं ण समाणत्तं, संपुण्णासं पुण्णाणं समाणत्तविरोहादो | संपुण्णतिरयणकज्जम संपुण्णतिरयणाणि ण करेंति, असमाणत्तादो त्तिण, णाण- दंसण-चरणाणमुप्पणसमाणत्तुवलंभादो । ण च असमाणाणं कज्जं असमाणमेव त्ति नियमो अस्थि, संपुण्णग्गणा कीरमाणदाहकज्जस्स तदवयवे वि उवलंभादो, अमियघडसएण कीरमाणणिव्विसीकरणादिकज्जस्स अभियस्स चुलुवे वि उवलंभादो वा । ण च तिरयणाणं देसजिणट्ठियाणं सयलजिणट्ठिएहि भेओ, बज्झतरंगा से सत्यपडिबद्धत्तणेण समाणवलंभादो ।
साधु तीव्र कषाय, इन्द्रिय एवं मोहके जीत लेनेके कारण देश जिन हैं ।
शंका - सकलजिननमस्कार पापका नाशक भले ही हो, क्योंकि, उनमें सब गुण पाये जाते हैं । किन्तु देशजिनोंको किया गया नमस्कार पापप्रणाशक नहीं हो सकता, क्योंकि, इनमें वे सब गुण नहीं पाये जाते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि सकल जिनोंके समान देश जिनोंमें भी तीन रत्न पाये जाते हैं । और तीन रत्नोंके सिवाय सकल जिनमें देवत्वके कारणभूत अन्य कोई भी गुण हैं नहीं, क्योंकि, वे पाये नहीं जाते । इसलिये सकल जिन के नमस्कारके समान देश जिनोंका नमस्कार भी सब कर्मोंका क्षयकारक है, ऐसा निश्चय करना चाहिये ।
शंका - सकल जिनों और देश जिनोंमें स्थित तीन रत्नोंके समानता नहीं हो सकती, क्योंकि, सम्पूर्ण और असम्पूर्णकी समानताका विरोध है । सम्पूर्ण रत्नत्रयका कार्य असम्पूर्ण रत्नत्रय नहीं करते, क्योंकि, वे असमान हैं ?
समाधान – नहीं, क्योंकि ज्ञान, दर्शन और चारित्रके सम्बन्धमें उत्पन्न हुई समानता उनमें पायी जाती है । और असमानों का कार्य असमान ही हो ऐसा नियम नहीं है, क्योंकि, सम्पूर्ण अग्निके द्वारा किया जानेवाला दाह कार्य उसके अवयव में भी पाया जाता है, अथवा अमृतके सैकडों घड़ोंसे किया जानेवाला निर्विषीकरणादि कार्य चुल्लू भर अमृतमें भी पाया जाता है । इसके अतिरिक्त देश जिनोंमें स्थित तीन रत्नोंका सकल जिनोंमें स्थित रत्नत्रय से कोई भेद भी नहीं है, क्योंकि, बाह्य और अभ्यन्तर समस्त पदार्थोंसे संबद्ध होनेकी अपेक्षा समानता पायी जाती है । और आविर्भाव
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