Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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( २ )
खंडागमकी प्रस्तावना
मथुरा, की ओरसे उसका कार्य भी प्रारम्भ हो गया, तथा सेठ गुलाबचंदजी शोलापुरकी सद्भावनासे महाधवलके सम्बन्धमें भी एक समिति सुसंगठित हो गई है। श्रीयुक्त मंजैयाजी हेगडेने तीनों सिद्धान्तों के मूलपाठको ताड़पत्रीय प्रतियोंके आधारसे प्रकाशित करनेकी स्कीम भी प्रस्तुत की है । प्रकाशित सिद्धान्तका स्वाध्याय भी अनेक मंदिरों और शास्त्रभंडारों व गृहों में हो रहा है। यही नहीं, बम्बईकी माणिकचंद जैन परीक्षालय समितिने अपनी गत बैठक में धवलसिद्धान्तक प्रथम भाग सत्प्ररूपणाको अपनी सर्वोच्च शास्त्री परीक्षाके पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर इन सिद्धान्तोंके समयोचित पठन-पाठन का मार्ग भी खोल दिया है ।
इस सब प्रगतिसे विद्वत्संसार को बड़ा हर्ष है । किन्तु एकाध विद्वान् अभी ऐसे भी हैं जिन्हें इन सिद्धान्तों का यह उद्धार प्रचार उचित नही जंचता । उनके विचारसे न तो इन ग्रंथोंका मुद्रण होना चाहिये, और न इन्हें विद्यालयोंनें अध्ययन-अध्यापनका विषय बनाना चाहिये । यहां तक कि गृहस्थमात्रको इनके पढनेका निषेध कर देना चाहिये । उनका यह विवेक निम्नलिखित आगम और युक्ति पर निर्भर है
( १ ) अनेक प्राचीन ग्रंथों में यह उपदेश पाया जाता है कि गृहस्थोंको सिद्धान्तोंके श्रवण, पठन या अध्ययनका अधिकार नहीं है ।
( २ ) सिद्धान्तग्रन्थ दो ही हैं जो कि धवल, जयधवल, महाधवल के रूपमें टीका द्वारा उपलब्ध हैं, बाकी सभी शास्त्र सिद्धान्तग्रंथ नहीं हैं ।
प्रथम बात की पुष्टिमें निम्न लिखित ग्रंथोंके अवतरण दिये गये हैं—
( १ ) वसुनन्दि श्रावकाचार, (२) श्रुतसागरकृत षट्प्राभृतटीका, (३) वामदेवकृत भावसंग्रह, (४) मेधावीकृत धर्मसंग्रह श्रावकाचार ( ५ ) धर्मोपदेशपीयूषवर्षाकर श्रावकाचार,
* देखो पं. मक्खनलाल शास्त्री लिखित 'सिद्धान्तशास्त्र और उनके अध्ययनका अधिकार', मोरेना, वी. सं. २४६८. १ दिपडिम वीरचरिया तियालजोगेसु णत्थि अहियारो । सिद्धंत-रहस्साण वि अक्षयणं देसावरदाणं ॥ ३१२ ॥ ( वसुनन्दि- श्रावकाचार )
२ वीरचर्या च सूर्यप्रतिमा त्रैकाल्ययोगनियमश्च । सिद्धान्तरहस्यादिष्वध्ययनं नास्ति देशविरतानाम् ॥ ( श्रुतसागर-षट्प्राभृतटीका )
३ नास्ति त्रिकालयोगोऽस्य प्रतिमा चार्कसम्मुखा । रहस्यग्रंथ सिद्धान्तश्रवणे नाधिकारिता ॥ ५४७ ॥ ( वामदेव - भावसंग्रह )
४ कल्प्यन्ते वीरचर्याहः प्रतिमातापनादयः । न श्रावकस्य सिद्धान्तरहस्याध्ययनादिकम् ॥ ७४ ॥ (मेधावी - धर्म संग्रहश्रावकाचार )
५ त्रिकालयोगनियमो वीरचर्या च सर्वथा । सिद्धान्ताध्ययनं सूर्यप्रतिमा नास्ति तस्य वै ॥ ( धर्मोपदेशपीयूषवर्षाकर-श्रावकाचार )
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