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बोल १९ वां पृष्ठ १३८ से १४० तक ___ चोर भार हिंसक आदि महारम्भी प्राणीको चोरी जारी हिंसा मादि महारम्भका कार्य करनेके लिये दान देनेसे मृगालोढ़के दुःख भोगनेका प्रश्न विपाक सूत्रमें किया गया है अनुकम्पा दानसे नहीं।
बोल २० वां पृष्ठ १४० से १४२ तक क्रोधी, मानी, मायी और हिंसा, झूठ, चोरी और परिप्रहके सेवी ब्राह्मणको उक्तराध्ययनके अध्याय १२ गाथा २४ में पापकारी क्षेत्र कहा है सभी ब्राह्मणको नहीं।।
बोल २१ वां पृ० १४२ से १४६ तक व्यभिचारिणी स्त्रीको रख कर भाड़े पर उससे व्यभिचार कराना पन्द्रहवें कर्मावानका सेवन करना है हीन दीन दुःखीको अनुकम्पा दान देना अथवा साधुसे इतरको पोषण करना नहीं। .
.. बोल २२ वां पृ० १४६ से १४८ तक किसी भी अभिप्रायसे अपने माश्रित प्राणीका क्य, वन्धन छविच्छेद और अतिभार आदि डालनेसे अतिचार होता है प्राणवियोग करने के अभिप्रायसे ही नहीं क्योंकि वह अनाचार है।
बोल,२३ वां पृष्ट १४९ से १५१ तक ..भिक्षुकोंका बेरोक टोक प्रवेश करनेके लिये तुङ्गिया नगरीके श्रावकोंके दरवाजे खुले रहते थे। .
बोल २४ वां पृष्ठ १५१ से १६० तक। श्रावकको अप्रत्याख्यान (अव्रत ) की क्रिया नहीं लगती।
बोल २५ वां पृष्ठ १६१ से १६२ तक जैसे मिथ्यादर्शन के अंशतः नहीं हटने पर भी श्रावकको , मिथ्यात्वको क्रिया नहीं लगती उसी तरह अप्रत्याख्यानसे अंशतः नहीं हटने पर भी श्रावकको मप्रत्याख्यानिकी क्रिया नहीं लगती है।।
बोल २६ वा पृष्ठ १६३ से १६५ तक . . . . भगवती शतक ३ उद्देशा १ में श्रावकके हित, सुख, पथ्य और मनुकम्पाकी इच्छा करनेसे सनत्कुमार देवेन्द्रको भव सिद्धिसे लेकर यावत् चरम होना कहा है। रखवाई सूत्रमें श्रावकको धार्मिक, धर्मानुग, धर्मेष्ट, धर्माख्यायी धर्म प्ररंजन आदि कहा है। -
बोल २७ वां पृष्ठ १६६ से १६७ तक . ... .. जिसमें भाव शस्त्र मौजूद है वह यदि कुपात्र है तो फिर षष्ट गुण स्थान वाले
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