________________
राजप्रासाद, एवं अनंग-सरोवर आदि के अवशेष पासणाहचरिउ की प्रशस्ति में, क्वचित् कदाचित् इतिहास के पृष्ठों में तथा वर्तमानकालीन महरौली के भूखण्ड पर धुंधले रूप में बिखरे पड़े हैं। Daily Tribune (चण्डीगढ़) की सूचना
चण्डीगढ से प्रकाशित Daily Tribune के दिनांक 24/8/1976 के अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसके अनुसार दिल्ली के सुलतानों ने जैनियों एवं हिन्दू-मन्दिरों को तोड़-फोड़कर कुतुबमीनार का निर्माण कराया था। इसका समर्थन इस तथ्य से हुआ कि पुरातत्ववेत्ताओं के अपने सर्वेक्षण के क्रम में उन्हें कुतुबमीनार के निचले भागों में जैन तीर्थकरों तथा हिन्दू अवतारों की मूर्तियों का पता चला था। उनकी इन खोजों से वे समस्त भ्रान्त धारणाएँ निर्मल हो गईं, जब यह कहा जाता था कि यह मीनार दिल्ली के अन्तिम सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने अपनी बेटी के यमुना-दर्शन हेतु बनवाई थी।
उक्त ऐतिहासिक स्मारक-कुतुबमीनार के जीर्णोद्धार कराते समय भी अप्रत्याशित रूप से उसके मलवे में से जैन तीर्थकरों की 20 तथा एक भगवान विष्णु की, इस प्रकार कुल मिलकार 21 मूर्तियाँ उस समय उपलब्ध हुई थीं। प्राकृतिक एवं मानवीय प्रताडनाओं तथा धूलिधूसरित रहने पर भी इन मूर्तियों के कला-वैभव में कोई अन्तर नहीं आया है। ये सभी उपलब्ध मूर्तियाँ पार्श्ववर्ती एक संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं।
उक्त टिब्यन के अनसार इस कतबमीनार की बनावट इस्लामी है। कतबमीनार को बनवाने वाले दिल्ली के पहले सुल्तान कुतबुददीन ऐबक (वि.सं. 1250) के शहर गजनी में कुतुबमीनार के दो नमूने टूटी-फूटी अवस्था में अभी तक सुरक्षित हैं। यह तथ्य है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद ही कुतुबमीनार के निर्माण के लिये उसकी नींव उक्त सुल्तान द्वारा रखी गई तथा सुल्तान के उत्तराधिकारी अल्तुतमश ने उस कार्य को वि.सं. 1287 में पूरा कराया था।
उक्त ट्रिब्यून के अनुसार ही— “कुतुबमीनार के पास जिस स्थल पर लोहे की लाट लगी हुई है, वहाँ जैनियों का बावन-शिखरों वाला एक भव्य जैन मन्दिर था। उसकी बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर तीर्थंकर प्रतिमाएँ खड्गासन एवं पद्मासन दोनों ही मुद्राओं वाली स्थापित थीं। कुतुबमीनार बनाते समय उसके निचले भागों में सम्भवतः इसी जैन मन्दिर की मूर्तियों को दबा दिया गया था।"
"अशोककालीन लोहे की लाट किसी अन्य स्थान से ले आकर मुगल-काल में यहाँ आरोपित की गई है।
उक्त ट्रिब्यून के कथन से तो यही विदित होता है कि नट्टल साहू द्वारा निर्मित नाभेय (आदिनाथ) मन्दिर का विशाल परिसर वर्तमानकालीन कुतुबमीनार के परिसर से लेकर वर्तमान कालीन अशोककालीन लोहे की लाट के परिसर तक विस्तृत था। मुहम्मद गोरी का आक्रमण
महाकवि बुध श्रीधर ने कुमार पार्श्व के माध्यम से जिस यवनराज की चर्चा की है तथा कुमार पार्श्व के साथ जिस प्रकार से भयंकर युद्ध का वर्णन किया गया है, कौन था वह यवनराज ?
इस तथ्य के स्पष्टीकरण के लिये प्रस्तुत पासणाहचरिउ की प्रशस्ति तथा मध्यकालीन भारतीय इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है। पासणाहचरिउ के रचना-समाप्तिकाल वि.सं. 1189 (सन् 1132 ई.) के अथवा बुध श्रीधर के अन्तिम रचना-समाप्ति-काल (वि.सं. 1230, सन् 1173) के लगभग दो दशक बाद ही दिल्ली के तत्कालीन सम्राट और राजा अनंगपाल तोमर (तृतीय) के दौहित्र सम्राट् पृथ्वीराज चौहान पर मुहम्मद गौरी ने (वि.सं. 1248 (सन् 1191) में आक्रमण कर दिया और 5 दिन के भीषण युद्ध के बाद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को अपने पिंजड़े में बन्द कर लिया।
1. विशेष के लिये देखिये मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म। -(पं. हीरालाल दुग्गड़, दिल्ली 1979), पृ. 369
36. पासणाहचरित्र