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सुख-सुविधा सम्पन्न आवास तथा साहित्यिक सन्दर्भ-सामग्री के साथ-साथ लेखनोपकरण-सामग्री की उत्तम व्यवस्था कर दी तथा ग्रन्थ के प्रणयनोपरान्त उसने (नट्टल ने) उसका सार्वजनिक सम्मान कर उसे पुरस्कृत भी किया।
पासणाहचरिउ की प्रशस्ति एवं पुष्पिकाओं के अनुसार साहू नट्टल अपने समय का सबसे बड़ा सार्थवाह था। देश-विदेश में उसके उच्चकोटि के व्यापारिक सम्बन्ध थे। उसने अपनी व्यापारिक सुविधा के लिए-अंग, बंग कलिंग, गौड़, केरल, कर्नाटक, चोल, द्रविड, पांचाल, सिन्धु, खस, मालवा, लाट, जट्ट, भोट्ट (भूटान), नेपाल, टक्क, कोंकण, महाराष्ट्र, भादानक, हरयाणा, मगध, गुजरात, सौराष्ट्र आदि देशों में अपनी व्यापारिक कोठियाँ (Chambers for Business Centres) भी स्थापित की थीं और उनके माध्यम से वह आयात (Import) एवं निर्यात (Export) किया करता था।
वह ढिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल (तृतीय) का विश्वस्त-पात्र, तथा सम्भवतः राज्य-सभासद एवं आर्थिक सलाहकार भी था। वह सचरित, उदार, सज्जन, जिनवाणी-भक्त एवं स्वाध्याय-प्रेमी श्रावक था। लेखकों एवं कवियों का आदर-बहुमान कर उन्हें निरन्तर पुरस्कृत करता रहता था। पर्युषण में वह दशधर्मो का पालन करता था। वह अत्यन्त विनीत, निरभिमानी, गुरुजनों, वरिष्ठजनों तथा माता-पिता का परम भक्त, महामुनियों का उपासक, दानी और अग्रवाल-वंश का तिलक माना जाता था।
श्रीधर ने अपनी प्रशस्तियों एवं पुष्पिकाओं में नटल का आलंकारिक भाषा-शैली में विविध गेयपदों में जैसा हृदयावर्जक परिचय दिया है, वह अपभ्रंश के “अभिमानमेरु" जैसे विरुदधारी महाकवि पुष्पदन्त और उनके आश्रयदाता महामन्त्री भरत एवं नन्न का बरबस स्मरण करा देता है। गयणमंडलालग्गु सालु
बुध श्रीधर ने दिल्ली के जिस “गयणमंडलालग्गु सालु की चर्चा की है, क्या था वह गगनचुम्बी सालु ? उसका अर्थ गगनचुम्बी कीर्तिस्तम्भ है और बतलाया गया है कि उसका निर्माण राजा अनंगपाल ने एक दुर्धर शत्रु पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में कराया था।
बध श्रीधर ने भी उसका उल्लेख नाभेय-मन्दिर के निर्माण के प्रसंग में किया है। यथार्थतः जितने भी मध्यकालीन कलापूर्ण जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ, उनकी यह विशेषता रही है कि उनमें उनकी भव्यता, विशालता, उत्त्तुंगता तथा सुरक्षा की दृष्टि से गगनचुम्बी कलापूर्ण उपवन-सम्पन्न एक विशाल चतुर्दिक परकोट, जिसके मुख्य प्रवेश द्वार के भीतर तथा मुख्य वेदिका के सम्मुख एक उत्तुंग कलापूर्ण मानस्तम्भ भी निर्मित कराया जाता था। चूंकि नट्टल ने उक्त मन्दिर शास्त्रोक्त-पद्धति से निर्मित कराया था, अतः उसमें मानस्तम्भ अवश्य रहा होगा और वह मानस्तम्भ भी ‘गयणमंडलालग्गु' ही रहा होगा। कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कुतुब-मीनार एवं कुतुब्बुल-इस्लाम-मस्जिद का निर्माण ___ मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद उसके परम विश्वस्त गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक (वि.सं. 1250) ने जब दिल्ली के शासन की बागडोर संभाली, तभी नाभेय-मन्दिर, उसके मानस्तम्भ तथा अनंग-सरोवर के आसपास जितने भी धर्मायतन एवं कीर्तिस्तम्भ, मानस्तम्भ आदि थे, सभी को तोड़-फोड़कर उनकी वास्तुओं से उसने कुतुब मीनार एवं कुतुब्बल-इस्लाम-मस्जिद का निर्माण करा दिया था। इस प्रकार तोमरकालीन धर्मायतन, मानस्तम्भ, कीर्तिस्तम्भ,
1. पास. अन्त्य प्रशस्ति 3। 2. पास. अन्त्य प्रशस्ति 31 3. विशेष के लिये देखिये भारतीय ज्ञानपीठ (कलकत्ता) द्वारा प्रकाशित 'ज्ञानोदय' (सचित्र मासिक जन. 1962, पृ. 88-90 में
प्रकाशित मेरा निबन्ध।
प्रस्तावना :: 35