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दिल्ली के तोमरवंशी राजाओं की नामावली में त्रिभुवनपति का अपरनाम त्रिभुवनपालदेव' (अपरनाम विजयपाल देव) भी बतलाया गया है, जिसका राज्यकाल वि.सं. 1187-1208 (सन् 1130-1151) बतलाया गया है। बुध श्रीधर ने इसी राजा को त्रिभुवनपति अथवा अनंगपाल तोमर (तृतीय) कहा है, जो उसके द्वारा विरचित पासणाहचरिउ के लेखन-समाप्ति-काल के समय ढिल्ली का शासक था।
महाकवि केशवदास का एतद्विषयक सन्दर्भ ___हिन्दी के महाकवि केशवदास, जिनके पूर्वज उक्त तोमर-राजाओं के पुरोहित थे और उसके बदले में तोमरराजाओं ने उन्हें चम्बल-क्षेत्र में 700 ग्राम भेंट स्वरूप देकर अपना पुरोहित-सामन्त घोषित किया था। उन्होंने अपने 'कविप्रया' नामक ग्रन्थ में उक्त त्रिभुवनपाल तोमर को सोमवंशी यदुकुल-कलश कहा है। पं. हरिहर निवास द्विवेदी के अनुसार कवि केशव तोमर-राजाओं के लिए 'सोमवंशी यदुकुल-कलश' लिखते थे। अतः केशव का त्रिभुवनपाल नरेश, अनंगपाल तोमर तृतीय ही रहा होगा, जिसका समर्थन बुध श्रीधर के उक्त कथन से भी हो जाता है। ___'इन्द्रप्रस्थ प्रबन्ध (अज्ञात कर्तृक, 18वीं सदी) नामक ग्रन्थ में उल्लिखित दिल्ली-शाखा के तोमर-वंशी 20 राजाओं में से उक्त अनंगपाल अन्तिम 20वाँ राजा था। इसकी वंशावली के अनुसार अनंगपाल नाम के तीन राजा हुए, जिनमें से बुध श्रीधर कालीन अनंगपाल तीसरा था। उसने अनेक शत्रुओं के समान ही जिस दुर्जेय हम्मीर-वीर को भी बुरी तरह पराजित किया था, प्रतीत होता है कि वह कांगड़ा नरेश हाहुलिराव-हम्मीर रहा होगा, जो एक बार हुँकार भरकर अरिदल में जा घुसता था और फिर उसे रौंद ही डालता था। इसके कारण हम्मीर को 'हाहुलिराव' की उपाधि प्रदान की गई थी, जैसा कि चंदवरदाई कृत 'पृथिवीराजरासो' के एक सन्दर्भ में मिलता है
हाँ कहते ढीलन करिय हलकारिय अरि मथ्य।
ताथें विरद हम्मीर को 'हाहुलिराव' सुकथ्य ।। सम्भवतः इसी हम्मीर-वीर को उक्त राजा अनंगपाल (तृतीय) ने हराया होगा। युद्ध में वीर हम्मीर के पराजित होते ही उसके साथ उसके अन्य साथी-राजा भी भाग खड़े हुए थे, जैसा कि पासणाहचरिउ में भी उल्लेख मिलता है। यथा
सेंधव सोण कीर हम्मीर वि संगरु मेल्लि चल्लिया।। अर्थात् राजा हम्मीर के पराजित होते ही सिन्धु, सोन एवं कीर-नरेश भी संग्राम छोड़कर भाग गये।'
यह तो सर्वविदित ही है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं को यह जानकारी हो गई थी कि हिन्दू लोग गायों को अवध्य मानते हैं तथा उन्हें माता कहकर पूजते हैं। अतः वे (मुस्लिम आक्रान्ता) यद्ध-प्रयाण के समय गायों को आगे रखकर चला करते थे। कवि ने इस तथ्य की ओर अन्योक्ति के माध्यम से संकेत भी किया है -
1. दिल्ली के तोमर, पृ. 237
दिल्ली के तोमर, पृ. 237 पासणाहचरिउ, 1/4/1 दे. दिल्ली के तोमर, पृ. 236-237 जगपावन वैकुण्ठपति रामचन्द्र यह नाम। मथुरामंडल में दिये तिन्हें सात सौ ग्राम ।।
सोमवंश यदुकुल कलश त्रिभुवनपाल नरेश। फेरि दिये कलिकालपुर तेई तिन्हें सुदेश।। -कवि-प्रिया (कविकेशवदास कृत)। 5. वही 6. राजस्थान पुरातत्व विद्या मन्दिर जोधपुर (1963) से प्रकाशित।
पासणाह 4/13/2 8. पासणाह 4/13/4
प्रस्तावना :: 33