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सन्धि 1. मंगलाचरण एवं आद्य-प्रशस्ति-वर्णन के बाद वैजयन्त-विमान से कनकप्रभ देव का जीव चयकर
महारानी वामादेवी के गर्भ में आया। (कडवक-21) सन्धि 2. काशी-देश के राजा हयसेन के यहाँ पार्श्वनाथ का जन्म एवं उनकी बाल-लीलाएँ (कडवक-18) सन्धि 3. राजा हयसेन के दरबार में यवन-नरेन्द्र के राजदूत का आगमन (कडवक-20)। सन्धि 4. राजकुमार पार्श्व का यवन-नरेन्द्र से युद्ध तथा मामा रविकीर्ति द्वारा पार्श्व के पराक्रम की प्रशंसा (कडवक-24) सन्धि 5. रविकीर्ति द्वारा पार्श्व से अपनी पुत्री-प्रभावती के साथ विवाह कर लेने का प्रस्ताव, किन्तु संयोगवश
इसी बीच में वन में जाकर जलते हुए नाग-नागिनी को उनके अन्तिम समय में कुमार पार्श्व द्वारा मन्त्र
प्रदान एवं उसी समय उन्हें वैराग्य। (कडवक-15) सन्धि 6-7. पार्श्व-तपस्या एवं उन पर कमठ द्वारा किया गया घोर उपसर्ग (कडवक-19+18=37) सन्धि 8-9. कैवल्य-प्राप्ति, समवशरण-रचना तथा धर्मोपदेश (कडवक-12+21=33) सन्धि 10. रविकीर्ति द्वारा दीक्षा-ग्रहण (कडवक-19) सन्धि 11. धर्मोपदेश (कडवक-25) सन्धि 12. (पार्श्व के भवान्तर तथा हयसेन द्वारा दीक्षा-ग्रहण एवं पार्श्व के लिये मोक्ष-प्राप्ति (कड़वक-18) तथा
अन्त्य-प्रशस्ति।
पप-20)
कवि का समकालीन राजा अनंगपाल तोमर
कवि श्रीधर द्वारा उल्लिखित कौन था वह राजा अनंगपाल तोमर और क्यों पड़ा था उसका नाम अनंगपाल? इसकी सार्थकता के लिए प्राच्य भारतीय पुराणेतिहास तथा समकालीन अनुश्रुतियों का अध्ययन आवश्यक है। पुराकाल में दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ था, जिसमें पाण्डव-परीक्षित के बाद 66 राजाओं ने राज्य किया और जिनमें अन्तिम राजा का नाम राजपाल था। उसे कुमायूँ के राजा शुकवन्त ने मार डाला और उसे (शुकवन्त को) भी उज्जयिनी-नरेश विक्रमादित्य ने पराजित कर उससे इन्द्रप्रस्थ का राज्य हड़प लिया था किन्तु उसने इन्द्रप्रस्थ को अपनी राजधानी न बनाकर उज्जयिनी को अपना शासन-केन्द्र बनाया।
इधर पराजित राजा शुकवन्त के वंशजों ने अवसर पाकर चम्बल-क्षेत्र (तंवरघार) में अपना शासन-केन्द्र स्थापित कर लिया, जो लगभग 700 वर्षों तक चला और इसी समय से इस राजवंश को 'तँवर या तोमर-कुल' कहा जाने लगा। उस समय कुरुक्षेत्र का प्रदेश अनंग-प्रदेश के रूप में प्रसिद्ध था। 'आइने-अकबरी' के अनुसार विल्हणदेव तोमर ने उक्त अनंगप्रदेश को अपना शासन-केन्द्र बनाया था। तत्पश्चात् उसने इन्द्रप्रस्थ में अपनी राजधानी स्थापित की और किसी विशेष कारणवश उसने उसका (इन्द्रप्रस्थ अथवा दिल्ली का) नाम अनंगपुर रखा। तत्पश्चात् तो वहाँ के परवर्ती शासकों ने भी अपना विरुद अनंगपाल रखा। इस प्रकार अनंगपुर का प्रथम शासक अनंगपाल तोमर था, जो अपनी परम्परा का अनंगपुर अथवा दिल्ली (दिल्ली) का प्रथम शासक था। इसके बाद अनेक तोमर राजाओं ने वहाँ शासन किया। त्रिभुवनपति-त्रिभुवनपाल अथवा अनंगपाल (तृतीय)
बुध श्रीधर ने प्रस्तुत पा.च. की प्रशस्ति में गयणमंडलालग्गु सालु के वर्णन-प्रसंग में चक्रवर्ती के समान जिस मर राजा का उल्लेख किया है. उसने उसे त्रिभवनपति अथवा अनंगपाल कहते हुए उसे महान योद्धा कहा है और उसे समुद्री शंख के आकार वाले गुजरात तक राज्य-विस्तार करने वाला बतलाया है।
1. विशेष के लिये देखिये दिल्ली के तोमर' 18/88 2. विशेष के लिये देखिये दिल्ली के तोमर' 18/883
3. पासणाहचरिउ 1/3/15
32 :: पासणाहचरिउ