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नियमसार
तथा चोक्तं प्रवचनसारे ह्न
णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा। समदो दुराधिगा जदि बज्झन्ति हि आदिपरिहीणा ।।१०।। णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धण बन्धमणुभवदि ।
लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो ।।११।। तथाहि ह्न
(अनुष्टुभ् ) स्कन्धेस्तैः षट्प्रकारैः किं चतुर्भिरणुभिर्मम।
आत्मानमक्षयं शुद्धं भावयामि मुहुर्मुहुः ।।३९।। पौगलिक बंध के संदर्भ में चर्चा की गई है। यदि उक्त संदर्भ में विशेष जानकारी की भावना हो तो तत्त्वार्थसूत्र की टीका सर्वार्थसिद्धि एवं राजवार्तिक का स्वाध्याय करना चाहिए ।।२५।।
इसके बाद 'तथा चोक्तं प्रवचनसारे ह्न तथा प्रवचनसार में भी कहा है' ह्न कहकर टीकाकार दो गाथायें उद्धृत करते हैं; जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
(हरिगीत ) परमाणुओं का परिणमन सम-विषम अरस्निग्ध हो। अररूक्ष हो तो बंध हो दो अधिक पर न जघन्य हो||१०|| दो अंश चिकने अणु चिकने-रूक्ष हो यदि चार तो।
हो बंध अथवा तीन एवं पाँच में भी बंध हो।।११।। परमाणु के परिणाम स्निग्ध हों या रूक्ष हों, सम अंशवाले हों या विषम अंशवाले हों; यदि समान से दो अधिक अंशवाले हों तो बंधते हैं, जघन्य अंशवाले नहीं बँधते ॥१०॥
दो अंशोंवाला स्निग्ध परमाण, चार अंशोंवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ बंधता है अथवा तीन अंशोंवाला रूक्ष परमाणु, पाँच अंशोंवाले के साथ युक्त होकर बंधता है ।।११।।
इसके बाद तथाहि' कहकर एक छन्द टीकाकार स्वयं प्रस्तुत करते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न
(वीर) छह प्रकार के खंध और हैं चार भेद परमाणु के। हमको क्या लेना-देना इन परमाणु-स्कंधों से || अक्षय सुखनिधि शुद्धातम जो उसे नित्य हम भाते हैं।
उसमें ही अपनापन करके बार-बार हम ध्याते हैं।।३९।। १. प्रवचनसार, गाथा १६५
२. वही, गाथा १६६