Book Title: Niyamsara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 471
________________ शुद्धोपयोग अधिकार जीवाण पुग्गलाणं गमणं जाणेहि जाव धम्मत्थी । धम्मत्थिकायभावे तत्तो परदो ण गच्छंति । । १८४ । । जीवानां पुद्गलानां गमनं जानीहि यावद्धर्मास्तिकः। धर्मास्तिकायाभावे तस्मात्परतो न गच्छंति । । १८४।। अत्र सिद्धक्षेत्रादुपरि जीवपुद्गलानां गमनं निषिद्धम् । जीवानां स्वभावक्रिया सिद्धिगमनं, विभावक्रिया षट्कापक्रमयुक्तत्वं, पुद्गलानां स्वभावक्रिया परमाणुगतिः, विभावक्रिया द्व्यणुकादिस्कन्धगतिः । अतोऽमीषां त्रिलोकशिखरादुपरि गतिक्रिया नास्ति, परतो गतिहेतोर्धर्मास्तिकायाभावात्; यथा जलाभावे मत्स्यानां गतिक्रिया नास्ति । अत एव यावद्धर्मास्तिदेखते। इस लोक में यदि कोई भव्य जीव सर्व कर्मों का निर्मूलन करता है तो भव्यजीव मुक्तिलक्ष्मीरूपी वल्लभा का वल्लभ होता है । इस छन्द में यह कहा गया है कि मुक्ति और मुक्त जीव में हमें कोई अन्तर दिखाई नहीं देता । तात्पर्य यह है कि ये दोनों एक ही हैं। जो भव्यजीव अष्टकर्मों का नाश करते हैं; वे भव्यजीव मुक्तिरूपी लक्ष्मी के पति होते हैं, मुक्ति को प्राप्त करते हैं ।। ३०३ || ४७१ विगत गाथा में कहा था कि सिद्धत्व और निर्वाण एक ही है और इस गाथा में यह कहा जा रहा है कि जहाँ तक धर्मद्रव्य है, जीव और पुद्गलों का गमन वहीं तक है । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत ) जीव अर पुद्गलों का बस वहाँ तक ही गमन है । जहाँ तक धर्मास्ति है आगे न उनका गमन है || १८४ ॥ जहाँ तक धर्मास्तिकाय है; वहाँ तक जीव और पुद्गलों का गमन होता है ऐसा जानो । धर्मास्तिकाय के अभाव में उसके आगे वे जीव और पुद्गल नहीं जाते । इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न “यहाँ इस गाथा में सिद्धक्षेत्र के ऊपर जीव और पुद्गलों के गमन का निषेध किया गया है। जीवों की स्वभावक्रिया सिद्धिगमन है अर्थात् सिद्धक्षेत्र तक जाने की है और विभावक्रिया अगले भव जाते समय छह दिशाओं में गमन है। पुद्गलों की स्वभावक्रिया परमाणु की गति है, गतिप्रमाण है और विभावक्रिया दो अणुओं से अनंत परमाणुओं तक के स्कंधों की गति प्रमाण है। इसलिए इन जीव और पुद्गलों की गतिक्रिया त्रिलोक के शिखर के ऊपर नहीं है; क्योंकि आगे गति के निमित्तभूत धर्मास्तिकाय का अभाव है । जिसप्रकार जल के अभाव में मछलियों की गतिक्रिया नहीं होती; उसीप्रकार जहाँ तक

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