Book Title: Niyamsara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 496
________________ ३. गाथा एवं कलशों का पद्यानुवाद भी सरस है, पद्य भी गद्य जैसा ही है, अन्वय लगाने की आवश्यकता नहीं है । ४. टीका, गाथा एवं कलशों के भाव को व्यक्त करनेवाला हिन्दी टीकाकार का विशेष स्पष्टीकरण मूल ग्रंथ के प्राणभूत विषय को स्पष्ट करने में पूर्णतः समर्थ है। ५. महत्त्वपूर्ण गाथाओं का भाव विस्तार से सोदाहरण समझाया गया है। ६. टीका में उद्धृत गाथाएँ एवं श्लोकों का संदर्भ देकर पद्यानुवाद भी दिया है। ७. इस ग्रन्थ की ऐसी कोई हिन्दी, गुजराती, मराठी और कन्नड़ टीका उपलब्ध नहीं है, जिसमें टीकाकार द्वारा ही किया गया गाथाओं और कलशों का पद्यानुवाद दिया गया हो; पर इस टीका में टीकाकार द्वारा ही किया गया गाथाओं और कलशों का हिन्दी पद्यानुवाद दिया गया है। ८. सरलता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जिसके कारण साधारण से साधारण अनभ्यासी पाठकों का भी प्रवेश नियमसार और तात्पर्यवृत्ति टीका में सहज हो जायेगा। ९. लागत मूल्य १०५/- होने पर भी दातारों के सहयोग से ५०/- में जितनी चाहे, उतनी संख्या में सर्वत्र सहज उपलब्ध होना भी एक ऐसा कारण है कि जिसके कारण यह कृति प्रत्येक मंदिर में प्रतिदिन के स्वाध्याय में रखी जावेगी और न केवल वक्ता के हाथ में, अपितु प्रत्येक श्रोता के हाथ में भी यह उपलब्ध रहेगी। इसके अतिरिक्त प्रस्तावना के रूप में ग्रन्थ और ग्रन्थकार का विस्तृत परिचय भी डॉ. भारिल्ल ने स्वयं लिखा है। मैं एक छोटी सी बात लिखने में भी गौरव का अनुभव करता हूँ कि मैं डॉ. भारिल्ल की प्रत्येक कृति का अध्ययन प्रकाशन से पूर्व ही कर लेता हूँ। इस नियमसार की आत्मप्रबोधिनी टीका को भी मैंने प्रकाशन से पूर्व सूक्ष्मता से अनेक बार स्वयं पढ़ा है। इस ग्रंथ के बाह्य सौन्दर्य को बढाने के लिए भी हमने ७ प्रकार के जिन टाइपों का प्रयोग किया है; वे इसप्रकार हैं ह्न १. मूल गाथा एकदम बड़े-बड़े टाइप में दी है । २. गाथा की संस्कृत छाया का टाइप अलग है। ३. गाथा के अर्थ के लिए बोल्ड- इटैलिक टाइप का प्रयोग किया है। ४. गाथा पद्यानुवाद भिन्न-भिन्न प्रकार के टाइप में है । ५. मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेवकृत तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीका का टाइप अपने में स्वतंत्र है। ६. तात्पर्यवृत्ति के संस्कृत गद्य का हिन्दी अनुवाद का टाइप स्वतंत्र है। ७. हिन्दी टीकाकार डॉ. भारिल्ल के विवेचन का टाइप तो अलग है ही, उसमें भी जो भाग अति महत्त्वपूर्ण है, उसे और भी भिन्न तथापि बड़े अक्षरों में देने का प्रयास किया गया है। इतनी सशक्त, सरल, सुबोध और सार्थक टीका की रचना के लिए हिन्दी टीकाकार डॉ. भारिल्ल; सुन्दरतम प्रकाशन के लिए प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल; शुद्ध मुद्रण, कम्पोजिंग और सेटिंग के लिए दिनेश शास्त्री और लगभग आधी से भी कम कीमत में उपलब्ध कराने वाले आर्थिक सहयोगियों के हम हृदय से आभारी हैं और सभी को कोटिशः धन्यवाद देते हैं। जिनवाणी के सार नियमसार का हार्द समझने में यह कृति अत्यन्त उपयोगी है। हमें विश्वास है कि पाठकगण नियमसार की विषयवस्तु को समझने के लिए इस कृति का भरपूर उपयोग अवश्य करेंगे। १३ नवम्बर २०१२ ई. (महावीर निर्वाणोत्सव ) ह्न ब्र. यशपाल जैन एम.ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.)

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