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नियमसार
तथा चोक्तं प्रवचनसारव्याख्यायाम् ।
(वसंततिलका) द्रव्यानुसारि चरणं चरणानुसारि
द्रव्यं मिथो द्वयमिदं ननु सव्यपेक्षम् । तस्मान्मुमुक्षुरधिरोहतु मोक्षमार्ग
द्रव्यं प्रतीत्य यदि वा चरणं प्रतीत्य ॥५६॥ करके पर्याय में भी पूर्ण शुद्ध होना चाहते थे। इसलिए इसप्रकार के चिन्तन में रत थे कि मैं तो ज्ञान-दर्शनस्वभावी आत्मा हूँ, बाह्यभावों में से कोई भी मेरा नहीं है।।१०३।।
इसके बाद टीकाकार मुनिराज तथा 'चोक्तं प्रवचनसार व्याख्यायाम् ह्न तथा प्रवचनसार की व्याख्या तत्त्वप्रदीपिका टीका में भी कहा है' ह ऐसा लिखकर एक छन्द प्रस्तुत करते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न
(दोहा) चरण द्रव्य अनुसार हो द्रव्य चरण अनुसार।
शिवपथगामी बनो तुम दोनों के अनुसार ||५६|| चरण द्रव्यानुसार होता है और द्रव्य चरणानुसार होता है ह इसप्रकार वे दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। इसलिए या तो द्रव्य का आश्रय लेकर अथवा तो चरण का आश्रय लेकर ममक्ष अर्थात् ज्ञानी श्रावक और मुनिराज मोक्षमार्ग में आरोहण करो।
इसप्रकार इस कलश में कहते हैं कि द्रव्यानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन-ज्ञान प्राप्त करके चरणानुयोगानुसार चारित्र धारण करना चाहिए । यही द्रव्यानुसार चरण है।
आत्मज्ञान के पहले जीवन में सदाचार अत्यन्त आवश्यक है। अष्ट मूलगुणों का पालन और सप्त व्यसनों का त्याग हुए बिना आत्मज्ञान होना असंभव नहीं तो दुःसाध्य अवश्य है, अत्यन्त दुर्लभ है। इसी को चरणानुयोगानुसार द्रव्य कहते हैं।
प्रश्न : सदाचारी जीवन बिना आत्मज्ञान संभव नहीं ह्न यह कहने में आपको संकोच क्यों हो रहा है ?
उत्तर : इसलिए कि भगवान महावीर के जीव को शेर की पर्याय में ऐसा हो गया था: पर यह राजमार्ग नहीं है। राजमार्ग तो यही है कि सदाचारी को ही आत्मज्ञान होता है।।५६|| - इसके बाद टीकाकार मुनिराज एक छन्द स्वयं लिखते हैं, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार हैह्न
१.प्रवचनसार, श्लोक १२