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निश्चयपरमावश्यक अधिकार
( अनुष्टुभ् )
इत्थं बुद्ध्वा जिनेन्द्रस्य मार्गं निर्वाणकारणम् । निर्वाणसंपदं याति यस्तं वंदे पुनः पुनः ।। २४९ ।। ( द्रुतविलंबित)
स्ववशयोगिनिकायविशेषक प्रहतचारुवधूकनकस्पृह । त्वमसि नश्शरणं भवकानने स्मरकिरातशरक्षतचेतसाम् ।।२५० ।।
पंच बाणों के धारक कामदेव के नाशक ज्ञान; दर्शन, चारित्र, तप और वीर्यरूप पाँच आचारों से सुशोभित आकृतिवाले अवंचक गुरु के वाक्य ही मुक्ति संपदा के कारण हैं। इसप्रकार इस कलश में यही कहा गया है कि सर्वज्ञ भगवान की वाणी के अनुसार कहे गये अवंचक गुरुओं के वचन ही मुक्तिमार्ग में सहयोगी होते हैं । २४८ ॥
तीसरे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
(दोहा)
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जिनप्रतिपादित मुक्तिमग इसप्रकार से जान ।
मुक्ति संपदा जो लहे उसको सतत् प्रणाम ||२४९||
मुक्ति का कारण जो जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रतिपादित मार्ग है; उसे इसप्रकार जानकर जो निर्वाण प्राप्त करता है; मैं उसे बारम्बार वंदन करता हूँ।
इस छन्द में जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रतिपादित मुक्तिमार्ग को जानकर, अपनाकर, अपने जीवन में उतार कर मुक्ति प्राप्त करनेवाले सन्तों की अतिभक्तिपूर्वक वन्दना की गई है ।। २४९ ।। चौथे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
(रोला )
कनक कामिनी की वांछा का नाश किया हो ।
सर्वश्रेष्ठ है सभी योगियों में जो योगी ।। काम भील के काम तीर से घायल हम सब ।
योगी ! तुम भववन में हो शरण हमारे || २५०|| कंचन-कामिनी की कामना को नाश करनेवाले योगी ही योगियों के समूह में सर्वश्रेष्ठ योगी हैं। हे सर्वश्रेष्ठ योगी कामदेवरूपी भील के तीर से घायल चित्तवाले हम लोगों के लिए आप भवरूप भयंकर वन में एकमात्र शरण हैं ।
इस छन्द में भी कंचन-कामिनी की वांछा से रहित मुनिराजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की गई है और कहा गया है कि वे कामविजयी मुनिराज कामवासना त्रस्त हम लोगों के लिए एकमात्र शरण हैं ।। २५०।।