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नियमसार
अन्यनिरपेक्षो य: परिणाम: स स्वभावपर्यायः।
स्कंधस्वरूपेण पुन: परिणाम: स विभावपर्यायः ।।२८।। पुद्गलपर्यायस्वरूपाख्यानमेतत् । परमाणुपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्याय: परमपारिणामिकभावलक्षण: वस्तुगतषट्प्रकारहानिवृद्धिरूप: अतिसूक्ष्मः अर्थपर्यायात्मकः सादिसनिधनोऽपि परद्रव्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मकः । अथवा हि एकस्मिन् समयेऽप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वात् सूक्ष्मऋजुसूत्रनयात्मकः । स्कन्धपर्याय: स्वजातीयबन्धलक्षणलक्षितत्वादशुद्ध इति ।
(मालिनी) परपरिणतिदूरे शुद्धपर्यायरूपे
सति न च परमाणो: स्कन्धपर्यायशब्दः। भगवति जिननाथे पंचबाणस्य वार्ता
न च भवति यथेयं सोऽपि नित्यं तथैव ।।४२।। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न
(हरिगीत) स्वभाविक पर्याय पर निरपेक्ष ही होती सदा।
पर विभाविक पर्याय तो स्कंध ही होती सदा ||२८|| अन्य की अपेक्षा से रहित जो परिणाम है; वह स्वभावपर्याय है और स्कंधरूप परिणाम विभावपर्याय है।
इस गाथा का भाव टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्र
"यह पुद्गलपर्याय के स्वरूप का व्याख्यान है । परमाणुरूप पर्याय पुद्गल की शुद्ध पर्याय है । वह परमाणु पर्याय परमपारिणामिकभाव स्वरूप है, षट्गुणी हानि-वृद्धिरूप है, अतिसूक्ष्म है, अर्थपर्यायात्मक है । सादि-सान्त होने पर भी परद्रव्य से निरपेक्ष होने के कारण शुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मक है अथवा एक समय में भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होने से सूक्ष्मऋजूसूत्रनयात्मक है। स्कंधपर्याय स्वजातीयबंधरूपलक्षण से लक्षित होने से अशुद्ध है।"
इसप्रकार इस गाथा में यही कहा गया है कि अन्य की अपेक्षा से रहित होने से परमाणुरूप पर्याय पुद्गल द्रव्य की शुद्धपर्याय है और समानजातीयबंधरूपस्कंधपर्याय विभाव पर्याय है। पुद्गल द्रव्य की परमाणुरूपशुद्ध अर्थपर्याय षट्गुणी हानि-वृद्धिरूप है, अत्यन्त सूक्ष्म है और परमपारिणामिकभावस्वरूप है।
नयों की दृष्टि से विचार करने पर यह या तो अनुपचरितशुद्धसद्भूतव्यवहारनय का विषय बनेगी या फिर सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय का विषय बनेगी ||२८||