________________ प्रथमः सर्गः। 1. येन तथाभूतस्य तन्मुखस्य नलमुखस्य तयोश्चन्द्रपभयो यो तस्या जित्वरं जय. शीलं ततोऽषिकमिति यावत् सुन्दरान्तर नास्ति, यत्र तथाविधे चरापरे जगति 'चराचरं स्याउजगदिति विश्वः / प्रतिमा उपमानं न नामादिति शेषः / अत्र चन्द्रा. रविन्दजयविशेषणतया मुखस्य निरौपम्य प्रतिपादनात् पदार्थहेतुकं कायलिगमलकारः / नदुस्तं दर्पगे- हेतावाक्यपदाथस्वे काग्यलिङ्ग निगद्यते' इति / / 23 // ____अपनो कोडाके लेशमात्र स्मितसे चन्दमाको निन्दित करनेवाले तथा अपने अवयवभूत नेवसे कमशोमाको तिरस्कृत करने वाले नल-मुखको उपमा उन दोनों (चन्द्रमा तथा कमल ) को शोमाको जाननेवाले दूसरे किसो वस्त्वन्तरसे शुन्य संसारमें नहीं थी। [ नळके मुखने अपनी क्रीडापूर्वक मन्द मुस्कानसे चन्द्रमाको जीत किया तथा उस मुखके एक भाग ( नेत्र ) ने कमलशामाको जोत लिया, आरव उस नळके मुखको उपमा संसार भर में कोई नहीं थी, क्योंकि उस प्रकारसे नकमुखके दारा जगत में सबसुन्दर चन्द्रमा तथा कमल पराजित हो चुके थे और दूसरी कोई सुन्दर वस्तु उन ( चन्द्रमा तथा कमल ) को जीतनेवालो जगत् में यो हो नहों, जिसके साथ नल-मुखको उपमा दी जाय / उपमेय की अपेक्षा उपमान पदार्थके श्रेष्ठ होनेपर उपमा दी जाती है, और ऐसा कोई पदार्थ या नहीं, जो नक-मुख से अधिक सुन्दर होकर उपमान हो सके, अतएव नक-मुख अनुपम था] // 23 // सरोरुहं तस्य दृशेव तर्जितं जिताः स्मितेनैव विधोरपि श्रियः / कुतः परं भव्यमहो महोयसी' तदाननस्यापमितो दरिद्रता / / 24 / / उतार्थ मायन्तरेणाह-सराहमिति / तस्य नलस्य रशैव नयनेनैव सरोरुहं पचं तर्जितं व्यकृतम् / स्मितेनैव विधोश्चन्द्रस्य श्रियः कान्तयः अपि जिताः तिरस्कृताः परम अन्यत् आभ्यामिति शेषः मण्यं रम्यं वस्तु कुतः ? न कुनाप्यस्ती. स्यर्थः / अहो आश्वयं तस्य नलस्य यत् आननं मुखं तस्य उपमिती तोलने महीयसी अतिमहती दरिद्रता समावः अत्यन्ताभाव इत्यर्थः। सर्वथा निरुपममस्य मुखमित्या. श्वर्यम् / अत्र वाक्यार्थहेतुकं काग्यलिमलकारः / / 24 // (पुनः उसी वातको प्रकारान्तरसे कहते है-) कमलको उस ( नल ) के मुखने ही बीत किया था चन्द्रमाकी शोमाओंको ( नलकी ) मुस्कानने ही जीत लिया, ( अतः कमल तथा चन्द्रमासे मिन दूसरा क ई पदार्थ कहांसे मिले ? अर्थात् कोई पदार्थ सुन्दर नहीं है ) माश्चर्य है कि उस ( नळ ) के मुखको उपमाको बड़ा मारो कमो पड़ गयो // 24 // स्ववालमारस्य तदुत्तमाङ्गजस्स्वयञ्चमर्यव तुजाभिलाषिणः / अनागसे शंसति बालचापलं पुनः पुनः पुच्छविलालनच्छ लात् / / 25 // 1. 'महीयसाम्' इति पाठान्तरम् /