________________
चलाराधना
आचाप्तः
ARTS
सविस्तर मागवचन, और सादे अर्थो ममता दुभागो उसके ऊपर श्रद्धा रखता है क्या वही सभ्यहष्टि है ? वही सम्यक्त्वाराधक है ? ऐसी शंका होनेपर आचार्य अन्य भी सम्यग्दृष्टि होता है ऐसा आगेकी गाथामें उत्तर कहते हैं
हिन्दी अर्थ-धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, काल, व जीव इन छह द्रव्योंको जिनेश्वरकी आज्ञासे श्रद्धान करनेवाला आत्मा सम्यक्त्वका आराधक होता है.
विशेषार्थ-जीव और पुद्गल ये दो पदार्थ जहां रहे हैं ऐसे आकाशप्रदेशसे प्रदेशांतरमें दुसरेके निमित्तसे अथवा स्वभावतः गमन करते हैं, इन ो ही द्रव्योंमें क्रियायत्व धर्म है. परंतु धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन द्रव्योंमें क्रिया नहीं है, जिनेंद्र. मगवान इनको निष्क्रिय कहते हैं, जीव और पुगलद्रव्यमें एक स्थानसे दुसरे स्थानमें गमन क्रिया होने में धर्मद्रव्य कारण माना गया है, अर्थात् धर्मद्रव्यमें गतिहेतुत्व यह धर्म है. अधर्म द्रव्यमें स्थितिहेतुत्व धर्म है. इसके निमित्तसे जीव और पुद्गलमें स्थिरता आती है. यद्यपि जीव पुद्गलादि भी गतिके लिये कारण होते है तो भी धर्मद्रव्यकाही यह असाधारण स्वभाव है अतः जीव पुद्गलको 'धर्म' ऐसी संज्ञा प्राप्त नहीं होती है. रूदि नियतविषयमही प्रवृत्त होती है ऐसा पूर्वमें कह चुके हैं. धर्मद्रव्य जैसा जीवपुद्गलके मतिमें उदासीन कारण है वैसा जीर गतिमें उदासीन नहीं है. वह दुसरेको गतिकार्यमें प्रेरक होता है. इस लिये उदासीन रूपसे गनिहेतुत्व धर्मद्रव्यमही है अन्यत्र नहीं है.
अधर्मद्रव्य जीच पुद्गलके स्थिरतामें उदासीन कारण है. उदासीनरूपसे स्थितीको हेतु हो जाना यह स्वभाव अधर्मद्रव्यके सिवाय अन्यद्रव्यमें नहीं पाया जाता है. धर्मद्रन्थ और अधर्मद्रव्यके असंख्यात प्रदेश है, परंतु इनके ये प्रदेश आपस में मिलकर एकताको प्राप्त हुये हैं. ये द्रव्य सूक्ष्म, निःक्रिय और रूप, रस, गंध, स्पर्श इन गुणोंसे रहित अर्थात अमृत हैं.
आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी है. संपूर्ण द्रव्योंकों अवकाश देनेका सामथ्र्य इसमें है. पुद्गल रूप, रस, गंध, स्पर्श इन गुणोंसे युक्त रहता है. उसके अणु व स्कंध ऐसे दो भेद है, कालके व्यवहारकाल व निश्यकाल ऐसे दो भेद हैं. जीव ज्ञान व दर्शनोपयोगमय है. ऐसे छह द्रव्योंका जिनेश्वरकी आज्ञासे जो श्रद्धान करता है वह सम्यक्त्वाराधक है. तथा जो निक्षेप नय वगैरहका आश्रय करके जीवादि पदार्थों का स्वरूप समझकर श्रद्धान करता है वह भी सम्यक्त्वका आराधक है. .-..